डॉ मनीष जैसल
हिंदुस्तान एक बार फिर शर्मसार हुआ है। देश के दरिंदों ने जिस तरह एक मासूम लड़की के साथ बलात्कार किया निंदनीय है। निर्भया केस के बाद बदले क़ानून के बावजूद भी देश में बलात्कारियों के मंसूबे कम नही हो रहे। उत्तरप्रदेश से लेकर राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्यों में ऐसे तमाम केस रोज़ाना आपको सुनाई दे रहे होंगे।
राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का पिछले साल का ही आँकड़ा उठा कर देखे तो पाते हैं कि भारत में 88 रेप केस रोज़ाना हो रहे हैं और उनमें 11 फ़ीसदी रेप दलितों के साथ हुए हैं।
देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों कॉग्रेस और भाजपा शासित राज्यों के ज़रिए समझे तो राजस्थान में 6000 और उत्तर प्रदेश में 3065 रेप के मामले 2019 में दर्ज हुए थे। चूँकि प्रशासन रेप के मामलों में तभी तत्पर रही ही नहि इसलिए इसके असल आँकड़े के तौर पर देखना ग़लत होगा। संख्या और भी बढ़ी हुई मानी जा सकती है।
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उत्तर प्रदेश के हाथरस में बीते दिनों जो हो रहा है वह शर्मनाक और चिंताजनक है। 14 सितम्बर से लेकर आज तक में पीड़ित परिवार का दर्द सिर्फ़ और सिर्फ़ उस परिवार को ही महसूस हो रहा होगा अन्य किसी को नही। इवेंट के तौर पर टीवी मीडिया, और राजनेताओं ने जिस तरह से देखा है वह भी चिंता जनक है।
हाथरस में पीड़ित परिवार के सामाजिक स्वरूप को समझिए तो मालूम देगा कि उस गाँव में इस वाल्मीकि समाज के गिने चुने ही लोग रहते हैं ऐसे में जातीय वर्चस्व को नज़रंदाज नही किया जा सकता। रेप के एक कारण यह भी हो सकता है। रेप पीड़ित का आख़िरी स्टेटमेंट और अब मीडिया में पीड़ित परिवार की चल रही बाइट को ग़ौर से देखा सुना जाए तो यह और भी स्पष्ट हो जाएगा कि अब भी समाज का एक वर्ग डरा सहमा हुआ है।
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पीड़ित के परिवार के आस पास हो रही जातीय पंचायतें गांधी के सपनों के भारत के बिलकुल उलट दिखती है। इन पंचायतों को इसलिए नही गांधी प्रभावी माना करते थे। मौजूदा हाथरस केस के अभियुक्तों के साथ साथ पुलिस और प्रदेश प्रसाशन, सरकार और विपक्षी पार्टियों की भूमिका पर संदेह स्पष्ट है।
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मौक़े पर रोटियाँ सेंकने और राजनीति चमकाने वाले विपक्षी नेता आज सवालों के घेरे में दिख रहे हैं। वहीं मीडिया ने इसे टीआरपी के खेल में इस तरह सजाया कि अब ख़ुद के चैनल की विचारधारा को जस्टिफ़ाई करना मुश्किल हो रहा है।
हाथरस की पीड़ित के परिवार को इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरत परिवार की सुरक्षा, और बेटी को न्याय की है। आस पास के लोगों द्वारा जिस तरह की धमकियाँ दे रहे हैं ऐसे में कुछ दिनों बाद उनकी जान को ख़तरा भी हो सकता है।
स्थानीय प्रसाशन के साथ ज़िला मजिस्ट्रेट, एसडीएम और अन्य पुलिस के अधिकारी इस मामले में जिस तरह का ढुलमुल रवैया और ग़ैरज़िम्मेदाराना काम करते हुए दिखे हैं वह भारत के भविष्य के लिए सही नही है। आधी रात में पीड़िता को ज्वलनशील पदार्थ के साथ बिना पारिवारिक अनुमति के जला देना मानवीय हक़ों के साथ साथ सांस्कृतिक हितों का भी अपमान है।
हिंदू संस्कृति और सभ्यता का इससे बड़ा अपमान और भला क्या होगा? इन्हीं मौक़ों को विपक्षी पार्टी के राजनेता, कार्यकर्ता के साथ मीडिया भी अपनी टीआरपी के लिए भुना रही है। पीड़िता के हक़ और सुरक्षा की गारंटी ना सत्ता पक्ष ले रहा है न ही विपक्षी। यह घोर निंदनीय है।
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(लेखक मंदसौर विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफ़ेसर हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)