जुबिली न्यूज डेस्क
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 में होने वाले हैं। सूबे के सभी दल चुनावी रणनीतियां बनाने में लगे हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी लगातार दूसरी बार सत्ता की कुर्सी पर बैठने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं और विपक्ष कोई ऐसा मौका नहीं देना चाहते, जिसके वजह से विरोधी उनपर हावी हों।
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हालांकि, हाथरस कांड के वजह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विपक्ष के साथ-साथ मीडिया और अपनों की आलोचना भी झेल रहे हैं। एक तरफ पूरा विपक्ष सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक योगी सरकार पर हमलावर है। वहीं, दूसरी ओर बताया जा रहा है कि हाथरस मामले में सरकार की लापरवाही और गैरजिम्मेदार रवैये की वजह से आरएसएस भी सीएम योगी से नाराज है।
दरअसल, हाथरस कांड में पीड़ित परिवार वाल्मीकि समाज से ताल्लुक रखता है जबकि आरोपी सवर्ण जाति ठाकुर समुदाय से आते हैं। पहले पीड़िता की एफआईआर दर्ज होने में देरी हुई और उसके बाद उसकी मौत होने के बाद बिना उसके परिवार से पूछे और विश्वास में लिए अंतिम संस्कार कर दिया गया, इस वजह से वाल्मीकि समाज में सरकार को लेकर काफी नाराजगी है। साथ ही योगी सरकार पर सवर्ण जाति के आरोपियों को बचाने का भी आरोप लगाया जा रहा है।
सूत्रों की माने तो आरएसएस के पदाधिकारी पीड़ित परिवार के साथ हुए अन्याय और सरकार की लापरवाही से खफा है। इसकी वजह वाल्मीकि समाज में पैदा हुई नाराजगी को बताया जा रहा है। दरअसल, यूपी में वाल्मीकि समाज के वोटरों संघ और बीजेपी के करीब बताए जाते हैं।
इस बात को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि वाल्मीकि समुदाय से आने वाले कामेश्वर चौपाल को श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में जगह दी गई है। वीएचपी ने उन्हें 1989 में अयोध्या में शिलान्यास के लिए प्रथम कारसेवक के रूप में चुना था। आरएसएस भी गैर-जाटव दलितों को साधने के अपने प्रयासों के तहत हिंदुत्व, राम मंदिर और वाल्मीकि रामायण के जरिए वाल्मीकियों के बीच लंबे समय से निरंतर काम रहा है।
संघ और बीजेपी यूपी और अन्य राज्यों में वाल्मीकियों की रैली में इस सफलता को महत्व देते रहे हैं। यह संघ परिवार के लिए राजनीतिक निवेश की तरह था जो हाथरस घटना से तितर-बितर हुआ है। इस घटना ने ठाकुरों और वाल्मीकि समाज को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया है।
देखा जाए तो बीजेपी ने तीन उत्तर भारतीय राज्यों यूपी, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में तीन ठाकुर नेताओं को मुख्यमंत्री बनाकर सवर्णों के बीच एक संदेश देने का काम किया था। तीनों ही राज्यों में 2022 को चुनाव होने वाले हैं। यूपी में जहां पिछले चुनाव में बीजेपी की जीत में दलित वोटों ने अहम भूमिका निभाई थी।
अब देखना ये होगा कि और बीजेपी और केंद्र इसे मुद्दे को संघ परिवार की अंदरूनी कलह के रूप में सुलझा पाएगी या फिर यह घटना पार्टी के लिए तीन चुनावी राज्यों में राजनीतिक और सामाजिक रूप से गहरा असर डालेगी।
इस मुद्दे पर जब हमने वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल से बात की तो उन्होंने बताया कि जब भी प्रदेश में इस तरह के कांड होते हैं, जिसमें बीजेपी और सरकार की छवि को नुकसान पहुंचने की संभावना होती है तो संघ की लोकल यूनिट एक्टिव हो जाती है और अपनी रिपोर्ट बीजेपी आलाकमान को भेजती है।
साथ ही डैमेज कंट्रोल के लिए अपनी सलाह भी देती है। हाथरस कांड के वजह से बीजेपी और योगी सरकार की छवि को नुकसान तो हुआ है साथ ही आगामी चुनाव में भी नुकसान हो सकता है।
दूसरी ओर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी के हाथरस दौरे से पार्टी एक बार फिर यूपी में सक्रिय होती दिखी है। हालांकि, सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की है कि हाथरस घटना बीजेपी और योगी सरकार को खासकर वाल्मिकी समाज में कितना नुकसान पहुंचाएगी?
साथ ही 2022 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस यूपी के मुख्य विपक्षी दल सपा-बसपा की अपेक्षा कितनी मजबूती से उभरेगी और इसमें राहुल-प्रियंका का हालिया दौरा कितना फायदेमंद साबित होगा?
समाजवादी पार्टी और बीएसपी की तुलना में कांग्रेस के मुख्य नेताओं का हाथरस घटना के विरोध में जमीन पर उतरना और लगातार सक्रिय रहना, इसने यूपी की राजनीति में फर्क डाला है। अब कांग्रेस की कोशिश इस असर को बनाए रखने की है।
शायद इसीलिए कांग्रेस हाथरस घटना को पूरे देश में बीजेपी के खिलाफ अवसर के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश में है। इसी के चलते कांग्रेस ने अपने नेताओं से सोमवार को देशभर के जिले और राज्य मुख्यालय में हाथरस घटना के खिलाफ सत्याग्रह का आह्वान किया है।