जुबिली स्पेशल डेस्क
उत्तर प्रदेश का हाथरस शहर एकाएक सुर्खियों में आ गया है लेकिन किसी अच्छी खबर के लिए नहीं बल्कि एक लड़की की इज्जत को तार-तार करने और यूपी पुलिस के अमानवीय चेहरे की वजह से।
सत्ता हो या विपक्ष सभी इस घटना पर अफसोस जाहिर कर रहे हैं लेकिन इस पूरी घटना पर खाकी धारक पुलिसकर्मियों का बर्ताव सवालों के घेरे में है।
शासन से लेकर प्रशासन मानो इस पूरी घटना को छुपाने के लिए ड्यूटी कर रहा लेकिन ऐसा क्यों कर रहा है, इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है।
योगी के रामराज में रसूकदारों के लिए कानून केवल अब मजाक बनकर रह गया है। इसका जीता जागता सबूत है हाथरस की घटना। रसूकदारों के आगे खाकी वर्दी वालों ने भी सरेंडर कर दिया लेकिन जब मामला मीडिया में आया तो मजबूरन आठ दिन पर एक्शन लिया गया लेकिन इस दौरान जो कुछ हुआ वो शायद खाकी का बदरंग चेहरा सामने आया है।
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यूपी के हाथरस में एक दलित युवती की सामूहिक बलात्कार के बाद मौत के बाद परिवार की मंजूरी के बगैर उसको अंतिम संस्कार करने की वजह से यूपी पुलिस और राज्य की सरकार कटघरे में हैं। वहीं इस मामले में राजनीति भी चरम पर है।
हाल के दिनों में यूपी में दलितों के खिलाफ अपराध ने तेजी पकड़ ली है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का आंकड़ा भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है। जानकारी के मुताबिक साल 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 405,861 मामले सामने आए थे जबकि इसमें 59,853 मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए थे।
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रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में महिलाओं एवं दलितों के खिलाफ अपराध में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई हुई इस दौरान बलात्कार के प्रतिदिन कम से कम 87 मामले सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश में साल दर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
भारत में 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 405,861 मामले दर्ज किया गया है जबकि इनमें 59,853 केस केवल यूपी में दर्ज कराया गया है। इसी तरह साल 2018 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 59,445 मामले और साल 2017 में 56,011 मामले सामने आए थे।
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उत्तर प्रदेश में दहेज के 2,410 मामले दर्ज किए गए। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 में एसिड अटैक के कुल 150 मामले सामने आए, जिनमें से 42 उत्तर प्रदेश से हैं। उत्तर प्रदेश में पॉस्को अधिनियम के तहत नाबालिगों के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा 7,444 मामले दर्ज किए गए।
यूपी में कानून की धज्ज्यिां उड़ाने में अपराधी अब कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं जबकि सरकार केवल मीडिया में इनको खत्म करने के बड़े-बड़े दावे करती है लेकिन जमीनी स्तर पर सच्चाई यही है कि अपराधियों में अब न तो सरकार का खौफ है और न ही खाकी का डर।
क्या हुआ था हाथरस
घटना 14 सितम्बर की है। उसके साथ कुछ लोगों ने मिलकर गैंग रेप किया और मरने के लिए खेल में खून में लथपथ छोड़ दिया। लड़की के शरीर पर जख्म ऐसे-ऐसे थे जिसे सूनकर आम इंसान भी खून के आंसू रोने पर मजबूर हो जाये।
आनन-फानन में लड़की की जिंदगी बचाने के लिए अस्पताल लाया गया लेकिन फिर उसे बड़े अस्पताल दिल्ली के सफदरगंज भर्ती कराया गया। इसके बाद उसे बचाने के लिए डॉक्टरों की लम्बी टीम लगी लेकिन भगवान ने उसकी जिंदगी खत्म करने का फैसला कर लिया था और उसकी मौत हो गई।
जब जिंदा थी तब भी उसके साथ कम जुल्म नहीं हुआ और जब मर गई तो उसकोउसकी मौत के बाद जिस तरह से पुलिस ने उसका अंतिम संस्कार किया उसने पुलिस पर ही सवालिया निशान लगा दिए। रात के अंधेरे में हाथरस की बेटी का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
इतना ही नहीं उसके गांव तक कोई पहुंच सके उसके लिए यूपी पुलिस ने खास इंतेजाम कर डाले। एक दलित बेटी की मौत का मामला तूल पकड़ता जा रहा है लेकिन इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है।
इस पूरी घटना पर दलित चिंतक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि हाल के दिनों में दलितों पर अत्याचार बढ़ गया है और मौजूदा सरकार भी दलितों पर अत्याचार को रोकने के लिए नाकाम रही है और केंद्र और राज्य सरकार दोनों दलितों को दबाने का काम कर रही है।
उन्होंने पुलिस के रवैया पर कहा कि ये कोई नई बात नहीं सरकारों के इशारों पर शासन-प्रशासन काम करता है। मौजूदा सरकार ने ब्यूरोक्रेसी को अपने कब्जे में कर रखा है।
पुलिस के पूर्व आधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हाथरस कांड में पुलिस के बर्ताव पर सवाल उठ रहा है लेकिन लोगों को मालूम नहीं है आखिर क्या है पूरा सच।
उन्होंने कहा कि पुलिस पर सवाल उठाना आसान है लेकिन उनके ऊपर अच्छाखासा दबाव होता है और सरकारी दबाव अक्सर ड्यूटी के दौरान दिखता है। हाथरस की घटना में भी यही सबकुछ देखने को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जहां तक लड़की का दाह संस्कार रात करने की बात है तो डीएम ने यह कड़ा कदम केवल शहर में अमन-चैन को कायम रखने के लिए किया होगा।
उन्होंने कहा कि डीएम के पास इस तरह का पावर होता है कि उसके लगता है कि शहर में इस वजह दंगा हो सकता है तो इस वजह रात के अंधेरे में लड़की अंतिम संस्कार किया गया। हालांकि उन्होंने कहा कि अगर पुलिस किसी तरह से एफआईआर लिखने में आना-कानी करती है तो यह नहीं होना चाहिए। जो भी पुलिसकर्मी इस तरह का काम करते हैं, उनको सजा मिलनी चाहिए।