नवेद शिकोह
देश जब सुबह सो कर उठा तो उसे पता चला कि देश की बेटी ख़ाक हो गई थी। हमें खबर ही नहीं हुई और ये दुखियारी बेटी रात दो से तीन के दरम्यान जला दी गई।
जलती बेटी की आग की लपटों की ख़ामोश तस्वीर देखकर अफसोस हुआ। सब बेखबर रहे और वो ख़ाक़ हो गई।
जबकि आज के वैज्ञानिक युग में कितना सब कुछ आसान हो गया है। ख़ासकर आज के दौर की एंडवास इम्फारमेशन टैक्नोलॉजी हमें सारी ख़बरें दे देती है।
लेकिन दुर्भाग्य कि एक लड़की ख़ाक हो गई लेकिन हमें उसपर हुए जुल्म से जुड़ी कई पुष्ट ख़बरें नहीं मिलीं।
जैसे-ये लड़की देश की बेटी थी या दलित की बेटी !
अगर वो दलित की नहीं देश की बेटी थी तो देश के कुछ लोग बेटी की हत्या के विरोध का विरोध क्यों कर रहे हैं। आज की निर्भया के सामूहिक बलात्कार और हत्या पर दुख व्यक्त करने और इस जुल्य का विरोध करने वालों को कुछ लोग गिद्ध क्यों कह रहे हैं !
इस खबर की पुष्टि से पहले ही इस बेटी को खाक क्यों कर दिया गया !
क्या रेप के बाद हत्या के दौरान उसकी जीभ काटी गई थी.. रीढ़ की हड्डी तोड़ी गई थी ! या नहीं।
ये ख़बर पुष्ट होती इससे पहले ये बेटी ख़ाक हो गई।
इस तरह के सवाल हो रहे हैं कि रेपिस्ट फलां जाति-धर्म का था तो कम विरोध हुआ था तो फिर इस रेप पर ज्यादा विरोध क्यों !
सचमुच, बिना धार्मिक विधिविधान के एक बेटी की जलती लाश की तरह हम, हमारी सरकारें, हमारा प्रशासन, हमारी मानवता, संस्कार, कानून-व्यवस्था, सामाजिक जिम्मेदारियां ख़ाक होती जा रही हैं।
और हम बेख़बर हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)