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सुशासन बाबू को मोदी की लोकप्रियता का सहारा

कृष्णमोहन झा

बिहार विधान सभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद राज्य में चुनावी समीकरणों पर चर्चा शुरू हो गई है। पिछले पंद्रह सालों से राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी में से कोई भी दो दलों का गठबंधन राज्य में सरकार बनाने में सफल होता रहा है परंतु इन पंद्रह सालों में  नीतिश कुमार  हमेशा ही  सत्ता की चाबी अपने पास रखने में सफल रहे हैं और  थोड़े समय के लिए जीतन राम मांझी को छोड़कर किसी अन्य नेता को उन्होंने मुख्यमंत्री की  कुर्सी पर काविज नहीं होने दिया।

2005 और 2010के विधान सभा चुनावों में जब नीतिश कुमार की पार्टी जदयू और भाजपा के गठबंधन ने बहुमत हासिल किया था तब भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतिश कुमार काविज हुए थे और जब 2015 के  विधान सभा  चुनावो में राजद, जदयू एवं कांग्रेस के महागठबंधन ने बहुमत हासिल किया तब भी जदयू की  सीटें राजद से कम होने के बावजूद नीतिश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला था।

उस समय राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के दोनों  बेटे तेजस्वी और तेजप्रताप यादव नीतिश कुमार से आयु में  बहुत छोटे होने और राजनीतिक अनुभव हीनता के कारण मुख्यमंत्री पद के लिए दावा पेश करने की स्थिति में नहीं थे। नीतिश कुमार ने कुछ समय तक महागठबंधन सरकार का मुख्यमंत्री रहने के बाद फिर से अपने दल  का उसी भारतीय जनता पार्टी के साथ गठजोड़ कर लिया जिसके साथ अपनी 18साल पुरानी दोस्ती को उन्होंने 2013 में इसलिए एक झटके में तोड़ दिया था कि उसने 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार क्यों घोषित कर दिया।

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भाजपा से नाता तोड़ कर मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की लालसा के कारण वे अपने पुराने राजनीतिक विरोधी लालूयादव की शरण में चले गए और 2015 में लालू की पार्टी राजद व कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर पुनः मुख्यमंत्री पद हासिल करने का मार्ग आसान कर लिया। 2015के विधान सभा चुनावों में महागठबंधन को बहुमत मिलने के बाद नीतिश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गए परंतु जल्द ही उन्हें उस भूल का अहसास हो गया कि जो उन्होने भाजपा के साथ अपने दल की 18साल साल पुरानी दोस्ती तोड़ कर की थी ।

इसलिए उन्होंने राजद व कांग्रेस को ठेंगा दिखाकर भाजपा के साथ सुलह कर ली ताकि 2020तक मुख्यमंत्री बने रहें। दरअसल बिहार में भारतीय जनता पार्टी के पास नीतिश के कद का कोई नेता न होने के कारण उन्हें बड़े भाई जैसा सम्मान देना उसकी मजबूरी है और नीतिश भी पिछले चुनावों में भाजपा की इस मजबूरी का फायदा उठाने से नहीं चूके हैं  लेकिन इन चुनावों में स्थिति बदल चुकी है ।

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नीतिश ने अपने पहले कार्यकाल में सुशासन बाबू की जो छवि अर्जित की थी वह अब धूमिल पड़ चुकी है। उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और अक्षमता के आरोप लग रहे हैं । इस बारिश में राज्य के अनेक हिस्सों में आई भयावह बाढ में जिस तरह नवनिर्मित पुल बह जाने की खबरें सुनने को मिली वे नीतिश कुमार की सुशासन बाबू  की छवि धूमिल ही हुई है। 

लाक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों और कोटा में फंसे छात्रों को वापस बिहार लाने में उन्होंने जो उदासीनता दिखाई उसने भी राज्य की जनता के एक वर्ग को उनसे दूर कर दिया। मुजफ्फरपुर के बालिका गृह कांड में भी अपनी सरकार की  एक मंत्री का इस्तीफा लेने में उन्होंने जो देर लगाई उसने भी नीतिश कुमार को वालों के घेरे में ला दिया।

कुल मिलाकर इस बार नीतिश कुमार की  राह आसानी दिखाई नहीं दे  रही है। इन विधान सभा चुनावों में शायद भाजपा से बड़े  भाई जैसा सम्मान मिलने की उम्मीद भी छोड़ चुके हैं । उन्हें यह अहसास हो चुका है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई लोकप्रियता का सहारा लिए बिना वे पुन: मुख्यमंत्री बनने का सपना नहीं देख सकते इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ में वे अब कोई संकोच नहीं करते।

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अनेक अवसरों पर यह वे कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी ही सर्वथा उपयुक्त हैं। अगर आज प्रधानमंत्री मोदी को  देश का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता स्वीकार करने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है तो इसकी सबसे बड़ी और एकमात्र वजह यही है कि आसन्न विधान सभा चुनावों के बाद भी वे मुख्यमंत्री पद की कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते। राज्य विधान सभा चुनावों में असली मुकाबला दो गठबंधनों के बीच ही होने जा रहा है।

एक तरफ वर्तमान सत्तारूढ़ गठबंधन है जिसमें जदयू भाजपा और लोकजनशक्ति पार्टी शामिल हैं और दूसरी वह महागठबंधन है जिसमें राजग ,कांग्रेस और वामदल शामिल हैं। इस महागठबंधन में पहले उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी शामिल थी जो अब राजग में वापसी के लिए एडी चोटी का जोर लगाकर थकने के बाद अब मायावती की बसपा के साथ समझौते की संभावनाएं तलाश रही है।

मुख्य मंत्री नीतिश कुमार उन्हें राजग में पुनः प्रवेश देने के प्रश्न पर मौन हैं। नीतिश कुमार तो पहले केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान की लोक जन शक्ति पार्टी को भी बहुत महत्व दिए जाने के पक्ष में नहीं थे परंतु अब उनके रुख में नरमी दिखाई दे रही है।

गौरतलब है कि रामविलास पासवान के सांसद बेटे  चिराग पासवान सार्वजनिक रूप से नीतिश सरकार की आलोचना कर चुके हैं और उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि अगर सत्तारूढ़ गठबंधन नीतिश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव मैदान में उतरता है तो उसे जनता के आक्रोश का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।

चिराग पासवान ने आगामी चुनावों में लोक जन शक्ति पार्टी के लिए 42 सीटों की मांग कर दी है और अगर 42सीटें नहीं दी जाती हैं तो कम से कम 34 सीटें दी जाएं जिनमें से 20सीटें उनके पसंद की हों। यही नहीं वे यह भी चाहते हैं कि राज्य विधान परिषद् में राज्यपाल जो 12सदस्य मनोनीत करते हैं उनमें दो सदस्य लोकजनशक्ति पार्टी के हों।

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बताया जाता है कि चिराग पासवान विधान सभा चुनावों में लोक जन शक्ति पार्टी की स्थिति इतनी  मजबूत कर लेना चाहते हैं कि राज्य में पुन:राजग सरकार बनने पर वे उपमुख्य मंत्री पद के लिए दावेदारी पेश कर सकें। अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई तो लोकजनशक्ति पार्टी राज्य विधान सभा की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने के  विकल्प पर भी  विचार कर सकती है यद्यपि ऐसी स्थिति निर्मित होने की संभावना नहीं के बराबर है क्योंकि लोक जनशक्ति पार्टी के ही कई नेता राजग से संबंध तोड़ने के पक्ष में नहीं हैं। अब देखना यह है कि चिराग पासवान इस सौदेबाजी में कितने सफल हो पाते हैं।

राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में भी अभी तक सीटों के बंटवारे पर राजद और कांग्रेस के बीच खींचतान जारी है। कांग्रेस ने धमकी है कि सीटों के बटवारे में उसके सम्मान पर आंच आई तो वह महागठबंधन से अलग होकर चुनाव लडेगी |राजद के चुनाव अभियान के मुखिया तेजस्वी यादव कांग्रेस की शर्तों के कारण दिक्कत में आ गए हैं। उनके लिए यह राहत की बात है कि वामदलों ने अभी कोई मांग सामने नहीं रखी है। तेजस्वी यादव ने घोषणा की है कि अगर उनका दल सत्ता में आता है तो राज्य के बेरोजगार युवकों के लिए 10लाख सरकारी नौकरियों की व्यवस्था की जाएगी।

बिहार विधान सभा चुनावों के लिए नामांकन की प्रक्रिया 1 अक्टूबर से प्रारंभ हो रही है और अभी तक कोई भी दल अपने उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी नहीं कर पाया है। इससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है किे सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्षी महागठबंधन में सीटों के लिए कितनी खींचतान मची हुई है।

ओपीनियन पोल के नतीजे यह संकेत दे रहे हैं किचुनावों के बाद फिर से राजग की सरकार बनने की संभावनाएं प्रबल हैं परंतु इस सवाल का जवाब आसान नहीं है कि मुख्यमंत्री पद की दौड़ में क्या नीतिश कुमार इस बार भी आगे निकल जाएंगे।

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)

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