शबाहत हुसैन विजेता
लखनऊ. उत्तर प्रदेश की आठ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तारीखों की घोषणा चुनाव आयोग 29 सितम्बर को करेगा. उत्तर प्रदेश में टूंडला (फिरोजाबाद), स्वार (रामपुर), बुलंदशहर, नौगांवा सादात (अमरोहा), घाटमपुर (कानपुर), बांगरमऊ (उन्नाव), मल्हनी (जौनपुर) और देवरिया सदर की सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तरफ नज़र दौड़ाएं तो सत्ता पक्ष के लिए सबसे प्रतिष्ठापरक सीट स्वार (रामपुर) है. बीजेपी समाजवादी पार्टी को झटका देना चाहती है.
स्वार समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आज़म खां के बेटे अब्दुल्ला आज़म के अयोग्य ठहराए जाने के बाद खाली हुई थी. अब्दुल्ला आज़म पर आरोप है कि चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने अपना गलत जन्म प्रमाणपत्र बनवाया. आरोप है कि अब्दुल्ला आज़म चुनाव लड़ने की उम्र के ही नहीं थे लेकिन गलत प्रमाण पत्र बनवाकर वह चुनाव लड़े और जीतकर विधायक बन गए थे. अयोग्य ठहराए जाने के बाद से आजम खां, उनकी पत्नी तंजीन फात्मा और बेटा अब्दुल्ला आज़म सीतापुर जेल में बंद हैं.
अब्दुल्ला आज़म के अयोग्य ठहराए जाने के बाद रामपुर की स्वार सीट रिक्त हो गई थी. अब उपचुनाव दस्तक दे रहा है तो यह सवाल बड़ा हो गया है कि उपचुनाव में अब्दुल्ला आज़म चुनाव लड़ पायेंगे या नहीं क्योंकि चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देने की वजह से चुनाव आयोग उनके चुनाव लड़ने पर छह साल की पाबंदी भी लगा सकता है.
चुनाव लड़ने के लिए हलफनामे में जानकारी छुपाने का यह पहला मामला नहीं है. इस तरह के आरोप मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री और प्रधानमंत्री तक पर लगते रहे हैं. कुछ मामलों को कोर्ट की सख्ती भी देखने को मिली है.
चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार हलफनामे में गलत जानकारी देकर चुनाव जीत जाते हैं. कई बार चुनाव आयोग के पास शिकायतें आती हैं और उन शिकायतों पर फैसला आते-आते नए चुनाव का समय आ जाता है. चुनाव आयोग में शिकायत के बाद भी कार्रवाई क्योंन नहीं हो पाती इस मुद्दे को देखें तो पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी के 28 नवम्बर 2018 के बयान पर ध्यान देना होगा.
नसीम जैदी का कहना है कि चुनाव आयोग के अधिकार बहुत सीमित होते हैं. वह हर मुद्दे पर अकेले फैसला नहीं ले सकता है. नसीम जैदी ने बताया था कि हलफनामा साफ़-सुथरे चुनाव कराने के लिए भरवाया जाता है. यह हलफनामा इसलिए भरवाया जाता है ताकि मतदाता अपने उम्मीदवार को अच्छी तरह से जान सके. प्रत्याशी ने क्या सही और क्या गलत भरा है इसकी जानकारी तभी हो पाती है जब उसे कोई शिकायत मिलती है.
चुनाव आयोग को अगर यह शिकायत मिलती है कि किसी प्रत्याशी ने अपनी सम्पत्ति की गलत जानकारी दी है तो आयोग उस मामले को आयकर विभाग को जांच के लिए भेज देता है. इसी तरह से जिस तरह की शिकायत आती है उससे सम्बंधित विभाग को आयोग रेफर कर देता है.
हालांकि भारतीय क़ानून में झूठा हलफनामा दाखिल करने पर छह महीने की सजा का प्राविधान है. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे को लेकर बीजेपी नेता अश्वनी उपाध्याय ने एक याचिका दायर कर यह मांग की थी कि इस सजा को बढ़ाकर दो साल कर दिया जाए साथ ही ऐसे उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दे दिया जाए.
चुनाव आयोग ने भी सुप्रीम कोर्ट को यह सुझाव दिया था कि झूठा हलफनामा देने के मामले में सजा के तौर पर जुर्माने का प्राविधान खत्म कर दिया जाए और सजा को छह महीने से बढाकर दो साल कर दिया जाए.
विधि आयोग ने भी सुप्रीम कोर्ट में यह सिफारिश की थी कि झूठे हलफनामे को चुनाव के भ्रष्ट तरीके में शामिल किया जाए. विधि आयोग ने यह भी कहा था कि धर्म, भाषा, वर्ण, वर्ग, जाति और समुदाय के आधार पर नफरत फैलाने को चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना गया है. साथ ही झूठे हलफनामे को चुनाव अपराध माना जाए.
झूठे हलफनामे देने वाले कौन हैं?
अब्दुल्ला आज़म झूठा हलफनामा देने की वजह से जेल में हैं. उनकी विधानसभा की सदस्यता भी इसी वजह से गई है. इससे पहले के चुनावों में जिन लोगों पर झूठे हलफनामे के इल्जाम लगे हैं उनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस का नाम भी शामिल है.
वर्ष 2012 के चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने हलफनामे में अपनी पत्नी की जानकारी छुपाई थी. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. नरेन्द्र मोदी ने हलफनामे का वह कालम खाली छोड़ दिया था जिसमें उन्हें अपनी पत्नी का नाम लिखना था. 2012 के चुनाव में हलफनामे में यह जानकारी छुपाने पर हुए हंगामे की वजह से ही नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में हलफनामे में अपनी पत्नी जसोदा बेन का नाम दर्ज किया.
कांग्रेस ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी पर चुनावी हलफनामे में गांधीनगर के भूखंड के बारे में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया था. कांग्रेस की शिकायत है कि वर्ष 2007, वर्ष 2012 और 2014 के चुनाव के हलफनामे देखे जाएँ तो नरेन्द्र मोदी ने विरोधाभासी जानकारियाँ दी हैं. सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे को लेकर जनहित याचिका भी दायर की गई. इसमें बताया गया कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान नरेन्द्र मोदी के नाम 326.22 वर्ग मीटर का भूखंड आवंटित किया गया था. जिसके लिए उन्होंने एक लाख 30 हज़ार रुपये अदा किये थे. अब उसकी कीमत एक करोड़ 18 लाख रुपये है लेकिन यह जानकारी हलफनामे में नहीं है.
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इसी तरह 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने भूखंड संख्या 411 का ज़िक्र ही नहीं किया. बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाईट पर अपनी सम्पत्ति की घोषणा की तो जिस भूखंड का ज़िक्र किया वह अरुण जेटली के नाम पर दर्ज है.
केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपनी शिक्षा को लेकर हलफनामे में गलत जानकारी दी. वर्ष 2004 में दिल्ली की चांदनी चौक सीट से चुनाव लड़ने वाली स्मृति ईरानी हलफनामे के अनुसार ग्रेजुएट थीं जबकि 2014 में अमेठी में चुनाव लड़ने के दौरान वह यह बताती नज़र आयीं कि उन्होंने ग्रेजुएशन में सिर्फ पहले साल की ही पढ़ाई की है.
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस ने अपने चुनावी हलफनामे में खुद पर चल रहे आपराधिक मामले को छुपा लिया. फणनवीस 15 हज़ार के मुचलके पर ज़मानत हासिल किये थे लेकिन यह जानकारी हलफनामे में नहीं दी गई. महाराष्ट के पूर्व मुख्यमंत्री का इस सम्बन्ध में कहना है कि उनका हलफनामा उनके वकील ने तैयार किया था. उनका कहना है कि उनके खिलाफ जो आपराधिक मामला है वह सार्वजनिक प्रदर्शन से जुड़ा मामला है. इसके अलावा मेरे खिलाफ कोई शिकायत नहीं है. हलफनामा वकील ने बनाया इस वजह से यह मामला लिखे जाने से छूट गया.