गोरखपुर में रहने वाले देवेन्द्र आर्य अपनी हिन्दी गज़लों के लिए पहचाने जाते हैं और सामान्य बोलचाल की भाषा में लिखी उनकी गजलें सहज ही मन में उतर जाती हैं। “चाय सिर्फ़ चाय ही नहीं होती” शीर्षक से कवि और गजलगो देवेन्द्र आर्य ने कविताओं की शृंखला लिख दी है । जुबिली पोस्ट के साहित्य प्रेमी पाठकों के लिए हम उनकी कविता शृंखला प्रस्तुत कर रहे हैं ।
“चाय सिर्फ़ चाय ही नहीं होती”
तुम्हारी चाय ?
डायनिंग टेबल ने पूछा
है न !
चौका बोला
तो यहीं लाओ
साथ ही पीते हैं
प्रस्ताव पुरानेपन के बावज़ूद
प्रफुल्लित करने वाला था
मगर प्रस्ताव और पालन के बीच कई अगर मगर थे
इन्हें सिर्फ घ़ड़ी देखनी आती है
घड़ी के साथ चलना तो हमें है
निठल्ले बैठ कर चाय पीने से बेहतर
कि हाथ भी चलता रहे
चाय का स्वाद बताता है
कि कैसे कोई समय भीतर समय बचाता है
क्या हुआ ?
चाय पीजिए न !
ठंढी हो जाएगी
चौका झांका
और तुम्हारी चाय ?
डायनिंग टेबल ने उलाहना भेजा
चाय सिर्फ़ चाय ही नहीं होती
चाय के मायने बदल जाते हैं वक़्त बे वक़्त
सुबह की चाय का स्वाद
सेवानिवृत्ति के बाद तिजहरिया की चाय का फ्लेवर
किसी को चाय पर बुलाने का मतलब
साथ बैठ कर पीने का अर्थ
चाय सिर्फ़ चाय ही नहीं होती
“ज़रा बेगम को भी महसूस हो कुछ
चलो एक चाय पीते हैं बनाकर कर”
चाय पीनी थी तो कह नहीं सकते थे ?
चाय घर को सरहद में तब्दील कर सकती है
“चाय का रंग बताता है
उसकी आंखों में नफ़रत होगी
बिटिया से भेजवाया है
वरना ख़ुद ही ले आई होती”
चाय अलिखित दास्तान
चाय आत्म स्वीकृति
चाय मंथन
चाय एक शांति वार्ता
कुवांरी चाय
शादीशुदा चाय
विधुर चाय
उफ़ ! चाय है कि बवाले जान
चाय सिर्फ़ चाय ही नहीं होती
उम्र गुज़र जाती है चाय को समझने में
डायनिंग टेबुल को पता है
कि चौके की गर्मी से चाय गरम नहीं रहती
ठंढी चाय गटकने की मजबूरी डायनिंग टेबल को पता है
दूसरा कप चौके से हंसा
अरे आप पीजिए न !
और तुम ?
मैं पी लूंगी
ज़रा सब्ज़ी छौंक दूं
तड़के की झार सोंधी थी
आंखों के लिए झरार भी
चाय तो चौके में भी पी जा सकती है !
हां पी जा सकती है
चाय एक आइडिया भी है
चाय बीच का रास्ता भी
डायनिंग टेबल चौके से चीयर्स कर रहा था
ठंढी पड़ चुकी चाय
रिश्ते को गरमी दे रही थी
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