जुबिली न्यूज डेस्क
महज कुछ घंटे बाद इंडियन प्रीमियर लीग की शुरुआत होगी। आने वाले मैचों में एक टीम की जर्सी बरबस लोगों को आकर्षित करेगी। क्रिक्रेट इतिहास में शायद यह पहली बार होने जा रहा है कि एक टीम के खिलाड़ी एक सैनिटरी पैड के ब्रैंड के लोगों वाली जर्सी पहने हुए होंगे।
जी हां, राजस्थान रॉयल्स टीम के खिलाड़ी ऐसी ही जर्सी में नजर आने वाले हैं। राजस्थान रॉयल्स को उम्मीद है कि इस कदम से माहवारी के टैबू के खिलाफ लड़ाई में सहायता मिलेगी। राजस्थान रॉयल्स टीम के इस पहल से ऐसी उम्मीद जतायी जा रही है कि अब पीरियड पर बहस होगी।
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दुनिया की आधी आबादी अब पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही है। आर्थिक तरक्की में योगदान दे रही है। पर सवाल है कि क्या महिला होना उनके कदम पीछे खींचता है। क्या उनके वायलॉजिकल साइकल मतलब पीरियड आना उनकी तरक्की में आड़े आता है। या अब सोच में बदलाव आने लगा है। मतलब महिलाओं के लिए बदलाव के रास्ते खुल रहे हैं।
महावारी और सैनेटरी पैड्स पर बात करना एक तबके में अब भी वर्जित समझा जाता है। यूनीसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 42 फीसदी लड़किया ऐसी है जिनके पास माहवारी के दौरान सैनेटरी पैड जैसे सुरक्षित माध्यम उपलब्ध नहीं है। जहां तक महिला खिलाड़ी है तो उनकी अपनी चुनौतियां हैं। महिला खिलाड़ी भी सार्वजनिक मंच से इस बात पर जोर दे चुकी हैं कि इस पर बात होनी चाहिए।
एक समय था जब 1995 में महिला टेनिस एसोसियेशन टूर ने महिलाओं के सैनेटरी उत्पाद बनाने वाली कंपनी से करार करने से मना कर दिया था। क्योंकि उसे डर था कि इस स्पांसरशिप डील से छवि पर बुरा असर पड़ेगा। 1995 से लेकर अब तक ये चीजे कुछ हद तक बदली हैं। कई महिला खिलाडिय़ों को उम्मीद है कि राजस्थान रायल के इस कदम से कम से कम एक पहल शुरु होगी। एक ऐसे विषय के बारे में बात होगी जिस पर खुले में इस पर बात नहीं होती।
बेन स्टोक्स, जोस बटलर और जोफ्रा आर्चर जैसे अंग्रेजी खिलाडिय़ों यों के साथ खेलने वाली राजस्थान रॉयल्स ने भारतीय कंपनी “नाइन” को अपना प्रायोजक बनाया है और इसके साथ ही वह किसी भी खेल में सैनिटरी पैड बनाने वाली किसी कंपनी को प्रायोजक बनाने वाली पहली बड़ी टीम बन गई है। जाहिर है जब ये खिलाड़ी इस पर बात करेंगे तो बात दूर तलक जायेगी।
टीम के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर जेक लश मैकक्रम ने कहा, “ये भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में एक टैबू विषय है। भारत में इस विषय को लेकर आम तौर पर जागरूकता का भी अभाव रहता है। सिर्फ पुरुषों में ही नहीं, महिलाओं में भी।” दक्षिण एशिया में कई महिलाओं, और विशेष रूप से किशोरियों के लिए मासिक धर्म लज्जाजनक और अप्रिय होता है।
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पिछले महीने, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को अपने गणतंत्रता दिवस भाषण में मासिक धर्म से संबंधित हाइजीन की बात की थी, जिसकी वजह से उन्हें सोशल मीडिया पर बहुत सराहना मिली थी। नाइन के संस्थापक अमर तुल्सीयान का कहना है कि इस प्रायोजन समझौते के मुख्य लक्ष्यों में से एक पुरुषों में माहवारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, क्योंकि पुरुष अक्सर रोजमर्रा के सामान पर परिवार के खर्चे का नियंत्रण करते हैं। इनमें सैनिटरी उत्पाद भी शामिल हैं।
नाइन के अनुसार भारत में मासिक धर्म से गुजर रही 35 करोड़ महिलाएं और लड़कियां हैं और इनमें से सिर्फ करीब 80 लाख सैनिटरी पैडों का इस्तेमाल करती हैं।
भारत समेत कई देशों में माहवारी के समय महिलाओं को मैला और अशुद्ध माना जाता है। उनके साथ भेदभाव किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, उन्हें मंदिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता है और कुछ प्रकार के भोजन भी नहीं बनाने दिया जाता है।
कई महिलाएं और लड़कियां अस्वास्थ्यकर तरीकों का इस्तेमाल करती है। ऐसा वो या तो जानकारी की कमी की वजह से करती हैं या तो सैनिटरी पैडों तक पहुंच ना होने या उन्हें खरीदने का सामर्थ्य ना होने की वजह से। मैकक्रम ने कहा कि यह ऐसा विषय नहीं है जिसे नजरअंदाज किया जा सके।