नवेद शिकोह
भूखे पेट भजन हो रहा है !
भूखे भजन ना होये गोपाला।
ये कहावत झूठी साबित हो गई है। छोटे-बड़े पर्दे की झूठी अय्यारी के तिलिस्म से जनता को उलझाने का नया प्रयोग फिलहाल तो सफल दिख रहा है।
अच्छे अभिनय और कांग्रेस से अच्छे रिश्तों के होते राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली अभिनेत्री कंगना रनौत के अभिनय ने क्या पहले कभी आपको इतना प्रभावित किया था ! नहीं।
आज उसने दो राजनीति दलों के बीच तलवार के किरदार में जो परफार्मेंस दी है वो सौ राष्ट्रीय पुरस्कारों वाले अभिनय से बढ़ कर है।
क्या आपने कल्पना भी की होगी कि जो टीवी न्यूज एंकर जितनी विकृत पत्रकारिता का चेहरा पेश करगा वो नंबर वन टीआरपी हासिल कर लेगा।
भारतीय जनता का भोला-भाला और भावुक मिज़ाज उनके खुद के लिए और देश के लिए घातक रहा है। बालीवुड बड़ा उद्योग साबित इसलिए हुआ कि इसमें वास्तविकता के परे झूठ खूब परोसा गया। कभी ना पूरे होने वाले सपनों और भावनाओं की बाजीगरी वाली बालीवुड की मसाला फिल्मी कहानियां आम इंसानों को बांध लेती थीं।
दो दशक पहले सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों की वो गहमागहमी सब को याद होगी।
अमिताभ बच्चन जैसे सशक्त अभिनेता फर्श से अर्श पर पंहुचे वाले किरदार निभाकर गरीब दर्शकों को तालियां बजाने पर मजबूर कर देते थे। वास्तविकता से परे कहानियों का ये महानायक जब पर्दे पर रोमांस करता है तो दर्शक सीटियां बजाने लगते हैं। ये वही दर्शक हैं जब वो खुद वास्तविक जीवन में रोमांस करता है तो उसे और उसके पार्टनर को गंध महसूस होने पर सारी फीलिंग किरकिरी हो जाती है।
वजह ये कि जो दस रुपये टिकट लेकर सिनेमा देख रहा है उसके पास नहाने के लिए दस रुपये का साबुन खरीदने का पैसा नहीं। ये झूठे सपनों और भावुक कहानियों के नशे में खुद की वास्तविकता ही भूल गया है।
सपनों की दुनिया में रहने वाला ये दर्शक अपने पड़ोस के टपोरी की गलत हरकत पर जवाब देने की हैसियत नहीं रखता पर जब 90 के दशक में जब पर्दे पर अमिताभ बच्चन शक्तिशाली किरदार अमरीशपुरी को मारने बढ़ते हैं तो दर्शक चिल्लाते हुए कहता है- मार साले को मार…
झूठे सपनों और जज्बाती मसाला कहानियों को देखने वाले आम सिने प्रेमियों जैसी भारत की आम जनता आज भी अभिनय और स्क्रिप्ट की दुनिया की बाजीगरी में फंसकर हकीकत की बदहाली को महसूह तक नहीं कर पा रही।
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कैमरे के जादू से नकली घोड़े पर बैठकर झासी की रानी के किरदार के रण कौशल दिखाकर एक अभिनेत्री दर्शको का दिल जीत लेती है।
इसी तरह इधर काफी वर्षों से टीवी और फिल्म के पहियो से सियासत की गाड़ी चल रही है। भले ही इस गाड़ी के चलने के लिए डीजल-पेट्रोल भी नहीं है।
सब कुछ एक्टिंग और स्क्रिप्ट के हिसाब पर निर्भर है।
टीवी न्यूज चैनल्स के एंकर्स से लेकर फिल्मी कलाकारों का अभिनय और स्क्रिप्ट की बाजीगरी का कमाल आम जनता को अंधा किये है। टीवी और फिल्म के किरदार इसलिए भी बेहतर परफार्मेंस दे रहें क्योंकि उनका सियासी माईबाप कलाकारी का तीसमार ख़ान है।
फिल्मी चरस गांजे से लेकर विवादित और ड्रग एडिक्ट रही एक अभिनेत्री को तब दिनों रात दिखाना जब देश चौतरफ मुसीबतों में घिरा है।आजादी के बाद के तीसरे सबसे बुरे दौर से गुजर रहे भारत को आज मीडिया के जरिए ऐसी भांग चटा दी गई है कि उसे अपने तन बदन तक का होश नहीं।
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बहुत पहले कई बार आपने सिनेमा घरों में भी ऐसे मंजर देखे होंगे। फटे-पुराने कपड़े। चेहरे और शरीर से लग रहा कि ठीक से पेट भी नहीं भरा है। गरीबी और बेरोजगारी की तकलीफें है। फिर भी झूठी दुनिया में मस्त होने का नशा कुछ ऐसा है कि पांच रुपए का सिनेमा का टिकट लेकर आगे की सीट पर बैठे आंखें फोड़ रहे हैं।
ये फिल्म के इमोशनल सीन में रोने लगते है।एक्शन सीन में पर्दे पर हीरो की तस्वीर से कहते हैं कि विलेन को और मारो। गुस्से भरे लहजे में कहते हैं- मार साले को मार..। रोमांटिक सीन में सीटियां बजाने लगते हैं।
बस ऐसा ही हाल देश की अधिकांश परेशान जनता का है। फिल्मी लोगों और न्यूज मीडिया की सियासी परफार्मेंस आमजन को अपने में बांधे है। पर टीवी न्यूज मीडिया और बड़े पर्दे जैसी कलाकारी से सियासत और हुकुमत चल रही हो। और देश ठहर सा गया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)