अविनाश भदौरिया
कांग्रेस द्वारा एक बार फिर से अधीर रंजन चौधरी को पश्चिम बंगाल की कमान दिए जाने के बाद राजनीतिक पंडित चकित हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हाल ही में जिस तरह ममता बनर्जी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच गर्मजोशी दिखी थी उसके बाद उम्मीद लगाई जा रही थी कि विपक्ष एकबार फिर एकजुट होने वाला है। लेकिन ममता बनर्जी के धुर विरोधी अधीर रंजन को कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना कर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के साथ गठबंधन की संभावना को पूरी तरह से खत्म कर दिया है।
कांग्रेस के इस निर्णय पर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि, पार्टी ने यह फैसला इसलिए लिया है क्योंकि राज्य में कांग्रेस अपनी वापसी के लिए लड़ते हुए दिखना चाहती है। मतलब साफ़ है कि अब बंगाल में त्रिकोणात्मक मुकाबला होगा और घमासान लड़ाई होगी। लेकिन सवाल ये भी बड़ा है कि क्या इस मुकाबले में बीजेपी को लाभ होगा ?
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यह सवाल इसलिए है क्योंकि अमूमन ऐसा देखा जाता है कि जब मुकाबला त्रिकोणीय होता है तो बीजेपी को फायदा होता है ऐसे में कांग्रेस का यह निर्णय थोड़ा रास नहीं आता लेकिन जैसा कि हम जानते हैं कि राजनीति में कुछ भी सीधा नहीं होता यानी जो दिख रहा होता है वो होता नहीं और जो हो रहा होता है वो दिखता नहीं। बस ऐसे ही कुछ कांग्रेस के इस निर्णय में भी है।
कांग्रेस द्वारा ममता बनर्जी को नाराज करते हुए अधीर रंजन को इतना महत्व देने के सही मायने समझने के लिए हमें पश्चिम बंगाल की राजनीति को समझना होगा।
सबसे पहले तो यह बता दें कि बंगाल में त्रिकोणीय मुकाबला होने से बीजेपी को लाभ नहीं होगा, यहां अगर विपक्ष एकजुट होकर लड़ता तो बीजेपी को अधिक फायदा होता। इसका उदहारण लोकसभा चुनाव का परिणाम है।
दूसरी बात यह है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट एक बार फिर मिल कर लड़ेंगे। पिछले चुनाव में भी दोनों पार्टियां मिल कर लड़ीं थीं, जिसका बड़ा फायदा कांग्रेस को हुआ था।
अधीर रंजन को लेफ्ट मोर्चे का खास माना जाता है। वहीं राहुल गांधी की भी सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी से अच्छी बनती है। ऐसे में यह तय माना जा सकता है कि कांग्रेस और लेफ्ट में गठबंधन होगा। इसके बाद राज्य में तीसरा मोर्चा भी पूरी ताकत से लड़ेगा। अगर अधीर चौधरी राज्य की राजनीति में नहीं लौटते तो दोनों पार्टियों में बात बन पाना मुश्किल होता।
इसके आलावा अधीर रंजन पर पार्टी के मेहरबान होने की एक और वजह है। इस फैसले से कांग्रेस ने राहुल विरोधियों को भी संदेश दिया है कि उनके समर्थकों को जिम्मेदारी और महत्व मिलता रहेगा। गौरतलब है कि अधीर रंजन राहुल गांधी के पसंदीदा नेता हैं।
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