जुबिली न्यूज़ डेस्क
नयी दिल्ली। कोरोना काल में कई सारी कंपनियां घाटे में आ गई हैं, जिनमें बीएसएनएल भी है। 2002 में जब बीएसएनएल की मोबाइल सेवा कि शुरुआत हुई तब सरकारी अधिकारी से लेकर आम जनता सभी के पास सिर्फ बीएसएनएल का सिम कार्ड होता था लेकिन कुछ सालों में ऐसा क्या हुआ कि प्राइवेट कंपनियां आगे निकल गईं और बीएसएनएल घाटे में आ गई।
19 अक्टूबर 2002 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ से Bsnl मोबाइल सेवा कि शुरुआत की थी। लांच के कुछ महीनों के बाद ही बीएसएनल देश की नंबर वन मोबाइल नेटवर्क कंपनी बन गई थी।
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जब बीएसएनएल की शुरुआत हुई, उस समय प्राइवेट ऑपरेटर 16 रुपए प्रति मिनट कॉल के अलावा 8 रुपए प्रति मिनट इनकमिंग के भी पैसे लेते थे। उस समय बीएसएनएल ने इनकमिंग मुफ्त दी और आउटगोइंग कॉल्स की कीमत भी काफी कम रखी।
2002 से 2005 के बीच Bsnl का गोल्डन टाइम था, जब हर कोई बीएसएनएल का सिम चाहता था और कंपनी के पास 35 हजार करोड़ तक का कैश रिजर्व था। लेकिन 2006 के बाद मोबाइल नेटवर्क में प्राइवेटाइजेशन का दौर आया और कई सारी मोबाइल नेटवर्क कंपनियां बीएसएनएल से आगे निकल गईं।
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ऐसे समय में बीएसएनएल के लिए जरूरी था कि मार्केट में अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए वह जल्द फैसले लें, पर सरकारी कंपनी होने के कारण बीएसएनएल के लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरे होने में महीनों लग गए। लोगों ने नेटवर्क कंजेशन और अन्य समस्याओं के कारण बीएसएनएल छोड़ निजी कंपनियों का रुख कर लिया।
2014 से 2017 तक बीएसएनएल के लिए थोड़ा सही समय आया। इस दौरान Bsnl ने ‘ऑपरेटिंग प्रॉफिट्स’ कमाए। 2014- 15 में बीएसएनएल का ऑपरेटिंग प्रॉफिट 67 करोड़ था, 2015- 16 में 2000 करोड़ और 2016- 17 में 2500 करोड़ था।
लेकिन इस बीच सितंबर 2016 में रिलायंस जियो की एंट्री हुई, जिससे ना सिर्फ बीएसएनएल बल्कि बाजार की सभी टेलीकॉम कंपनियों पर भी असर पड़ा। जियो के प्लान्स और कंपनियों सेवाओं से लोग काफी प्रभावित है। यही कारण है कि पिछले तीन साल से लगातार बीएसएनल नुकसान में है। फिलहाल बीएसएनएल इस स्थिति में नहीं है कि घाटे को सहन कर सके।
नतीजा अब तक कई मोबाइल नेटवर्क कंपनियां नुकसान झेल रही है। लेकिन पिचले साल से बीएसएनएल की हालत काफी पतली हो चुकी है, नौबत यहां तक आ चुकी है कि अब कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़े है और सैकड़ों कर्मचारियों को वीआरएस दिया चुका हैं।
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