Saturday - 2 November 2024 - 10:47 PM

दोस्ती के सौदागर अमर सिंह ने फ्रेंडशिप डे में मौत से की दोस्ती

नवेद शिकोह

अमर सिंह दोस्ती के लिए मशहूर थे, फ्रेंडशिप डे की पूर्व संध्या पर उन्होंने मौत से दोस्ती कर ली। कहते हैं कि दोस्ती जिन्दगी की तरह बेवफा होती है और कभी भी साथ छोड़ देती है। लेकिन मौत महबूबा होती है, इसकी आग़ोश में आने के बाद बेवफाई के खतरे नहीं रहते हैं।

अमर सिंह की पूरी जिन्दगी दोस्ती, वफा और बेवफाई के इर्द-गिर्द घूमती रही।

वैभव, रुतबा और वर्चस्व टूटता है तो जिन्दगी की सांसे भी कमज़ोर पड़ जाती हैं। सियासत में अमर सिंह की अमरगाथा बरकरार रहती यदि भाजपा उन्हें ज़रा भी राजनीति स्पेस का सहारा दे देती या अखिलेश यादव उनसे बेवफाई नहीं करते।
सपा से रिश्ता टूटने के बाद धर्मनिरपेक्षता का चोला उतार हिंदुत्व का लबादा पहनकर अमर सिंह ने भाजपा में स्थान पाने के लिए जितनी हो सकती थी कोशिश की, पर ज़रा भी सफलता नहीं मिली। सियासत की लहरों से बेशकीमती मोतियों को खोज कर राजा को रंक और रंक को राजा बना देने के हुनर वाले इस जादूगर से तालाब से लेकर समुद्र तक ने दूरियां बना लीं तो बिन पानी की मछली की तरह इनके जीने का सिलसिला ही कमजोर पड़ने लगा।
लम्बी जिन्दगी जीने के लिए बीमारियों से लड़ने और जीने की चाह का होना ज़रूरी है। विल पावर ज़रूरी है।

कलमकार से कलम और जौहरी से मोतियों का रिश्ता ना रहे तो उनके अंदर की जिन्दा रहने की ख्वाहिश कम हो जाती हैं।

अमर सिंह की आखिरी उम्मीद भाजपा थी। लखनऊ मे योगी सरकार की इंवेस्टमेंट समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अपने भाषण में अमर सिंह का नाम लेकर उनकी तारीफ की तब उम्मीद जगी कि शायद उन्हें भाजपा में किसी ना किसी रूप में कोई स्थान मिल जाये। पर ऐसा नहीं हुआ। अमर सिंह ने खुद को हिंदुवादी साबित करने वाले खूब बयान दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर खूब आस्था व्यक्त करते हुए दर्जनों बार उनकी तारीफें की। अपनी सम्पत्ति का एक हिस्सा राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सिपुर्द कर दिया। समाजवादी पार्टी को नमाजवादी पार्टी का सुपर हिट नाम दिया। तबलीगी जमात पर खूब बरसे, कांग्रेस को लगातार खरी खोटी सुनाई। अपनी इच्छा भी व्यक्त की कि वो भाजपा से जुड़ना चाहते हैं। लेकिन उनके लाख जतन के बाद भी भाजपा ने उन्हें मौका नहीं दिया।

अमर सिंह कहते थे कि कांग्रेस ने उन्हें बड़ा धोखा दिया था। रिस्क लेकर उन्होंने यूपीए सरकार बचवायी और इसके इनाम में यूपीए सरकार ने ही उन्हें जेल भिजवा दिया।

वो लोकदल में चुनाव लड़े और हारे, फिर इस छोटे दल में कुछ बचा नहीं था।

वो समाजवादी पार्टी जिसको उन्होंने नये रंग रूप में ढाला। ब्रांडिग की। राष्ट्रीय राजनीति से जोड़ा, ग्लैमरस रंगों से रंगा और आर्थिक रीढ़ मजबूत की। इसी सपा में अमर सिंह का अमर रहना नामुमकिन हो गया था। अखिलेश युग में जब मुलायम सिंह हाशिये पर आ गये तो मुलायम की परछायीं का अस्तित्व कैसे बचता !

सेतु सहारा होता है। मज़बूत लोगों को नहीं मजबूर लोगों को सहारे की जरुरत होती है। पिछले काफी वर्षों से भाजपा मजबूती से सत्तानशीं होती रही, उसे सहारों की जरुरत ही नहीं पड़ी। जनाधार की आंधी में देश के बड़े पूंजीपति/व्यवसायी, खिलाड़ी, मीडिया समूह और फिल्मी हस्तियां खुद भाजपा के चरणों में गिरीं।

भाजपा यदि कुछ कम ताकतवर होती तो इनको लाने के लिए अमर सिंह का सेतु के तौर पर उपयोग करती।

मुलायम सिंह युग के बाद समाजवादी पार्टी के अखिलेश युग में जब अमर सिंह को नजरअंदाज किया गया तब उनके पास उगते सूरत भाजपा से रिश्ता क़ायम करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। भाजपा खुद इतनी शक्तिशाली थी कि उसे अमर सेतु की जरुरत ही नहीं थी। अंबानी से लेकर अमिताभ बच्चन और सुब्रत राय से लेकर मुलायम जैसी हस्तियां कभी अमर सिंह का हाथ पकड़ के बुरे वक्त के.गड्ढे से बाहर निकलीं तो कभी अमर कंधे पर पैर रखकर तरक्की के आसमान के नजदीक पंहुची।

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सियासत, फिल्म, व्यापार, खेल और मीडिया घरानों की ताकतों का काकटेल तैयार करने वाले जादूगर की ताकत बड़ी हो सकती है पर अमर नहीं।वक्त तो वक्त होता है। वक्त का जनाजा चार कांधों पर कब्रिस्तान नहीं जाता, कांधा देने वाले लोग बदलते रहते हैं। फिल्म, व्यापार, सियासत और खेल की दुनिया के जो सितारे अमर सिंह के इर्द गिर्द रहते रहे लेकिन बुरे दिनों में बेरुखी, तंनहाई, बेवफाई और लोगों की अहसान फरामोशी अमर सिंह को तिल-तिल मारती रही।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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