सुरेन्द्र दुबे
क्या आप कोई ऐसा गुरु जानते है जिसके पास कोई चेला न हो। चलिए अब इसी सवाल को अब दूसरी तरह से पूछ लेते है। क्या बगैर चेलों के कोई गुरु कहला सकता है। पर कलयुग की बलिहारी है कि लोग बगैर चेलों की भी गुरु बनने का भ्रम पाले हुए है। किसी मुहल्ले का भी गुरु बनना हो तो कम से कम एक चेला तो होना ही चाहिए। हंसी तो तब आती है जब लोग एक भी चेले के बगैर विश्व गुरु बनने का भ्रम पाले हुए है।बगैर किसी चेले के आप गुरु तो नहीं पर गुरु घंटाल जरूर बन सकते है।
पिछले कई वर्षों से देश में लगातार आकाशवाणी होती रहती है कि भारत अब विश्व गुरु बनने वाला है। लाखों लोग इसी चक्कर में नंगे भूखे मस्त घूम रहे हैं कि जैसे ही भारत विश्व गुरु बनेगा इनके दिन बहुर जाएंगे। महंगी-महंगी गाडिय़ों में बैठकर ये लोग सैर सपाटा किया करेंगे। देव कन्याएं चांदी के थालों में इन्हें दिव्य भोजन कराया करेंगी। चांदी सोने के कपड़े पहन कर घर पर खर्राटे मार कर सोया करेंगे। कोई काम नहीं करेंगे। अब विश्व गुरु बनने के बाद भी काम करना पड़े तो लानत है ऐसे जीवन पर।
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गुरु या गुरु घंटाल बनने का सपना पालने वाले लोग काम करने पर विश्वास नहीं करते। ये लोग दूसरों को काम करने का पाठ पढ़ाने या बेवकूफ बनाने में विश्वास रखते हैं। वैसे इनका मुख्य काम ही होता है दूसरों का काम लगा देना।
भारतवर्ष में बहुत लोग भारत को विश्व गुरु बनाने में जुगाड़ में लगे रहते हैं। स्कूल-कालेजों में गुरुओं का अकाल पड़ा हुआ है पर देश को विश्व गुरु बना देना चाहते है। सबसे पहले नोटबंदी की। सोचा पूरा विश्व अपने देशों में नोटबांदी करेगा और हम झटके से विश्व गुरु बन जाएंगे, पर हम यह सुनहरा मौका चूक गए। कोई भी देश हमारा चेला बनने को तैयार नहीं हुआ। वैसे तो हम लगातार गुरु बनने के लिए कोई न कोई गुरु घंटाई करते रहते हैं पर विश्व स्तर पर हमसे भी बड़े कलाकार है इसलिए कोई चेला बनने को तैयार नहीं है।
आज टीवी पर यह देखकर हमारी बांछे खिल गईं कि नास्ट्रोदामाश की भारत के विश्व गुरु बनने की भविष्यवाणी सच साबित होने वाली है। ये भविष्यवाणी कहीं लिखी नहीं है इसलिए गप मार देने में क्या जाता है कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हमने गप मारी थी कि 21 दिन में महामारी को पराजित कर लेंगे। हम 18 दिन में भी जीत की गप मार सकते थे पर भगवान कृष्ण की बराबरी नहीं करना चाहते थे। हम 21 दिन में भी कुछ नहीं कर सके। गप तो गप होती है। हम भी भूल गए और दुनियां भी भूल गई।
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टीवी न्यूज चैनल नई शिक्षा नीति की आड़ में भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए मैदान में कूद पड़े है। जिस देश में अच्छी व सस्ती शिक्षा तक की व्यवस्था नहीं है उस देश के टीवी एंकर भारत को विश्व गुरु साबित करना चाहें तो बुरा नहीं मानना चाहिए।ये लोग खुद अपने को गंभीरता से नहीं लेते। पापी पेट के लिए की जाने वाली नट गिरी पर गुस्सा नहीं तरस आना चाहिए।
लाख दिक्कतों के बाद भी हम विश्व गुरु बनने के जुगाड़ में लगे हुए हैं। गुरु न सही गुरु घंटाल तो हम है ही। जनता जब तक हमारा एक खेल समझने कि कोशिश करती है तब तक हम दूसरा खेल शुरू कर देते है। यहीं हमारा ओलंपिक है जिसमे सिर्फ हमीं खेलते है और हमीं जीतते हंै। पर हमें विश्व गुरु न बनने का मलाल है क्योंकि नेपाल भी हमारा चेला बनने को तैयार नहीं है। गुरु घंटाल हम निश्चित है क्योंकि वर्षों से विश्व गुरु बनने का घंटा बजाए जा रहे हैं और जनता कठपुतली की तरह ठुमक-ठुमक कर नाच रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)