Tuesday - 29 October 2024 - 12:54 AM

यह हमारे धैर्य और संयम की परीक्षा का समय है

कृष्णमोहन झा

देश में कोरोना बेकाबू हो चुका है। शायद हम अब कोरोना संक्रमण के उस दौर में प्रवेश कर चुके हैं जब कोई भी यह दावे के साथ नहीं कह सकता कि वह कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित है। अतिविशिष्ट से लेकर सामान्य श्रेणी तक के लोग कोरोना के प्रकोप का शिकार हो रहे हैं। बस फर्क केवल इतना है कि अतिविशिष्ट और सामान्य श्रेणी के क्वेरेन्टीन सेंटर अलग अलग होते हैं।

स्वाभाविक रूप से उनमें उपलब्ध सुविधाओं का स्तर भी अलग अलग होता है। इससे आजकल गरीबों को यह चिंता जरूर सताने लगी है कि जब कोरोना ने समस्त सुविधा संपन्न वर्ग के बीच भी अपनी पहुंच बना ली है तो फिर कौन खुद को सुरक्षित मान सकता है।यही धारणा एक अलग तरह के भय को जन्म दे रही है। लोगों के मन से इस धारणा को निकालने की आवश्यकता है।

लोग अब यह सोचने लगे हैं कि मास्क लगाने अथवा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करके भी हम कोरोना से नहीं बच सकते। दरअसल यही सोच अनिवार्य पाबंदियों के पालन के प्रति लापरवाह बना रही हैलेकिन यह लापरवाही कोरोना को पांव पसारने में परोक्ष मदद कर रही है और उसका परिणाम यह हो रहा है कि अनलाक में भी अनेक राज्यों में फिर से लाक डाउन लगाने की जरूरत महसूस होने लगी है परंतु अब जो लाक डाउन लागू किया जा रहा है उसमें पहले से भी अधिक सख्ती बरती जा रही है।

झारखंड सरकार ने तो यहां तक कह दिया है कि लाक डाउन के नियमों का पालन न करने वालों पर एक लाख रु का जुर्माना लगाया जाएगा। उडीसा की नवीन पटनायक सरकार ने भी लाक डाउन के नियमों का पालन करवाने के लिए पहले से ही कठोर नियम बना रखे हैं।

सभी राज्य सरकारों ने अपने यहां लाक डाउन का जानबूझकर उल्लंघन करने वालों के लिए अलग अलग सजाएं तय कर रखीं हैं और इन सबके पीछे एक ही उद्देश्य है कि लोग कोरोना संक्रमण से बचाव हेतु लागू की गई पाबंदियों का ईमानदारी से पालन करे और कोरोना की चेन तोडने में सहभागी बनें लेकिन इसके लिए सर्वाधिक आवश्यकतावइस बात की है कि आम जनता के लिए पाबंदियां तय करने वाली सरकार के कर्णधार स्वयं जनता के सामने आदर्श प्रस्तुत करें। उन्हें कोरोना संकट के इस दौर में खुद को जनता के सामने रोल माडल केरूप में प्रस्तुत करना होगा।

कोरोना सत्ता और प्रजा में कोई भेद नहीं करता। विगत माह महाराष्ट की गठबंधन सरकार के कुछ मंत्रियों को संक्रमित करने के बाद कोरोना ने मध्यप्रदेश में भी सत्ता के गलियारों में प्रवेश कर लिया है।

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ,सत्तारूढ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा ,संगठन मंत्री सुहास भगत,शिवराज सरकार के दो मंत्री भी कोरोना पाजिटिव पाए गए हैं। प्रदेश की जनता समझने में असमर्थ है कि इन राजनेताओं ने सोशल डिस्टेंसिंगऔर घर के बाहर मास्क पहनने जैसे सुरक्षात्मक उपायों को व्यवहार में लाने की अनिवार्यता आखिर महसूस क्यों नहीं की? क्या उन्हें ऐसे किसी अतिआत्मविश्वास ने जकड लिया था कि कोरोना भी अतिविशिष्ट और सामान्य श्रेणियों में भेद करता है। कारण जो भी हो लेकिन प्रदेश की जनता के लिए यह चिंता का विषय है किअगर सरकार भी कोरोना की जद में आ सकती है तो फिर आम जनता खुद को कोरोना से सुरक्षित कैसे मान सकती है।

गौरतलब है कि विगत रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा था कि जो थोडी देर के लिए भी मास्क पहनने से परेशानी महसूस करते हैं उन्हें एक पल के लिए उन चिकित्सकों, स्वास्थ्य कर्मियो सहित सभी कोरोना वारियर्स के समर्पित सेवा भाव को याद कर लेना चाहिए जो घंटों पीपीई किट और मास्क पहनकर अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं।

प्रधानमंत्री ने इस बार ‘मन की बात ‘में कोरोना के बढते प्रकोप से निपटने के लिए पहले से भी अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता पर बल दिया है। देश में कोरोना के बेकाबू होने के लिए कहीं न कहीं हम भी थोडे जिम्मेदार तो अवश्य हैं।दरअससल कोरोना के संक्रमण में थोडी कमी आते हम पाबंदियों की उपेक्षा प्रारंभ कर देते हैं।इस कडवी हकीकत को तो हमें स्वीकार करना ही होगा कि कभी हम लाक डाउन का पालन ईमानदारी से करने की जरूरत नहीं समझते तो कभी हम लाक डाउन में मिली छूट का दुरुपयोग करने में नहीं संकोच नहीं करते।

ऐसा भी नहीं है कि केवल इन्हीं दो कारणों से देश में कोरोना की स्थिति विस्फोटक हुई है। चिकित्सा क्षेत्र के विशेषग्यों और वैग्यानिकों ने तो जुलाई में कोरोना संक्रमण चरम पर पहुंचने की आशंका पहले ही व्यक्त कर दी थी जो पूरी सच साबित हो रही है। बरसात के मौसम की नमी तो और भी दूसरे कई तरह के वायरस का संक्रमण फैलने का कारण बनती है इसलिए कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से बचने के लिए हमारे सामने बस यही एक रास्ता बचा है कि जितना हम खुद को बचा सकते हैं उतना बचा कर रखें। हमें अपने हिस्से का काम ईमानदारी से करना है और वह है कोरोना से बचाव के लिए पूरी सावधानी बरतना।

इस बारे में कुछ भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि कोरोना संक्रमण की रफ्तार इस साल के किस महीने से कम होने लगेगी। जब हमने इस कडवी सच्चाई को स्वीकार कर लिया है कि जब तक कोरोना की वैक्सीन तैयार नहीं हो जाती तब तक हमें इसे जीवन का हिस्सा मानकर ही आगे बढना है तो हमारे लिए ‘सावधानी ही बचाव ‘के मंत्र को आत्मसात कर लेना ही सर्वोत्तम उपाय है।

हमारे देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 15लाख से ऊपर जा चुकी है और यह जान लेवा वायरस अब तक 32 हजार से अधिक लोगों की मौत का कारण बन चुका है। लेकिन अब जिस तरह से कोरोना को मात देने वालों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है उससेे कोरोना को लेकर व्याप्त भय भी दूर होने लगा है।

कोरोना के गंभीर रोगियों की प्राण रक्षा हेतु देश का सबसे पहला प्लाज्मा बैंक स्थापित करने वाले राज्य दिल्ली में तो कोरोना के 86 प्रतिशत मरीज ठीक होने लगे हैं। दूसरे कुछ राज्यों में भी प्लाज्मा थैरेपी से कोरोना मरीजों के इलाज मेें सफलता मिल रही है | अब धीरे धीरे लोगों में यह धारणा बनने लगी है कि कोरोना के संक्रमण से होने वाली बीमारी असाध्य नहीं है। यह एक सुखद संकेत है।इसी बीच वैक्सीन बना लेने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों में सफलता की खबरें भी आने लगी हैं। ऐसी खबरें न केवल हमें राहत की सांस लेने का अवसर उपलब्ध कराती हैं बल्कि हमारे अंदर यह भरोसा भी जगाती हैं कि कोरोना केविरुद्ध हमारी लडाई में जीत हमारी ही होगी लेकिन यह सवाल हमें जरूर परेशान कर रहा है कि यह लडाई कितनी लंबी चलेगी।

कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि यह साल हमारे धैर्य, संयम, साहस, आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति, मनोबल और सहन शक्ति आदि की परीक्षा का संदेश लेकर आया है और इसकी शुरुआत कोरोना से हुई है। अब हमारी लडाई केवल कोरोना से नहीं है बल्कि हम एक साथ कई मोर्चों पर लडने के लिए विवश हो चुके हैं।

कोरोना के संक्मण को काबूमें रखने के वलिए लाकडाउन लगाया उसने न कितने लोगों को बेरोजगार कर दिया है। जो प्रवासी मजदूर लाकडाउन के दौरान मीलों पैदल चलकर अपनेगांव लौट गए थे उनमें बहुत से ऐसे हैं जिन्हें उनके नियोक्ताओं द्वारा दिए जा रहे प्रलोभन भी आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं ऐसे मजदूरों के पास यद्यपि अपने राज्य में पर्याप्त रोजी रोटी कमाने के साधन नहीं हैं परंतु कोरोना ने उन्हें इतना डरा दिया है कि वे अब दूसरे प्रदेशों में जाकर रोजगार नहीं करना चाहते। इस स्थिति ने उद्योग मालिकों को चिंता में डाल रखा है।

औद्योगिक इकाइयों में काम भले ही शुरू हो गया हो परंतु उनमें पहले जैसी उत्पादक गतिविधियां तो शायद तभी प्रारंभ हो पाएंगी जब हम कोरोना संकट पर विजय पा लेंगे। लाक डाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को लेकर विभिन्न राज्यों के बीच जो कर्कश मनमुटाव निर्मित हो चुका है उसने भी प्रवासी मजदूरों के भविष्य को अनिश्चित कर दिया है।

केंद्र सरकार ने यूं तो समाज के हर कमजोर तबके के लिए राहत पैकेज जारी किया है परंतु सभी जरूरतमंद हितग्राहियों तक उसका लाभ पहुंच पाएगा इसके बारे में संदेह व्यक्त किया जा रहा है। कोरोना ने जहां एक ओर उद्योगों की उत्पादन क्षमता को प्रभावित किया है वहीं दूसरी ओर किसानों और खेतिहर मजदूरों की मुसीबतों में भी इजाफा किया है। फूलों की खेती करने वाले किसानों के सामनेनरोजी रोटी की समस्या पैदा हो गई है। फूलों की खेती करने वाले किसान और उनके व्यापारी दोनों के ऊपपर आर्थिक संकट मंडरा रहा है। त्यौहारों का मौसम होने के बावजूद फूलों का व्ववसाय ठप है।

मंदिरों मे देवी देवताओं की प्रतिमा को स्पर्श करने पर लगी रोक के कारण श्रद्धालु अब उन्हें पुष्प भी अर्पित नहीं कर सकते। कोरोना ने मिष्ठान विक्रेताओं के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है।लोग अब बाजार की मिठाइयां खरीदने से परहेज करने लगे हैं। ये चार महीने मिष्ठान्न व्यापारियों काधंधा खूब चलता था परंतु आज की स्थिति के अनुसार तो इस क्षेत्र में मंदी छाई रहने की आशंका है| वर्षाॠतु का प्रारंभ हुए एक माह बीत चुका है परंतु जिन राज्यों में अब तक हुई बारिश का आंकडा औसत से कम वहां के किसानों का चिंतित होना स्वाभाविक है।

एक कहावत है कि मुसीबत कभी अकेले नहीं आती। हमारे देश में यही कहावत चरितार्थ हो रही है। बिहार के दस से अधिक जिलों में नेपाल की नदियों से छोडे गए पानी के कारण नदियां उफान पर हैं। लगभग पंद्रह लाख आबादी बाढ की चपेट में आचुकी है। सैकडों गांव बाढ में डूबगएं हैं। अब वहां लोगों के सामने कोरोना का संकट कोई मायने नहीं रखता। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्द उनके लिए बेमानी हैं। यही असम में असम में बन चुकी है जहां की नदियों में चीन की नदियों से छोडे गए पानी के कारण भीषण बाढ आई हुई है। असम के मुख्यमंत्री तो कम से कम बाढग्रस्त इलाकों का दौरा करके लोगों को हर संभव मदद का भरोसा दिला रहे परंतु बिहार के मुख्यमंत्री तो पिछले दो माह से टीवी पर भी लोगों के सामने नही आ रहे हैं।

इस बीच उनकी ओर से कोई बयान भी न आना सचमुच आश्चर्यजनक प्रतीत होता है। यह भी अत्यधिक चिंता का विषय है कि कोरोना ने बच्चों की पढाई को में बहुत व्यवधान पैदा किया है। सरकार ने हाल में ही अनलाक -3 केलिए जो गाइड लाइन जारी की हैं उसके अंतर्गत सभी राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे अपने यहां सभी शिक्षण संस्थाएं 31 अगस्त तक बंद रखें।

जाहिर सी बात है कि जब तक कोरोना संक्रमण की रफ्तार थम नहीं जाती तब तक शिक्षण संस्थाएं खुलने के कोई आसार नहीं हैं। अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं की तारीखें भी बढाई जा चुकी हैं। यह स्थिति कब तक जारी रहेगी यह कहना मुश्किल है। इस समय आन लाइन क्लासेस के विकल्प पर भी चर्चा हो रही है परंतु इसको अमल में लाने में भी व्यवहारिक कठिनाइयां हैं। सभी बच्चे इतने साधन संपन्न नहीं हैं कि उन्हें आनलाइन क्लासेस के दायरे में लाया जा सके। ये तो थोडे से क्षेत्र हैं जहां कोरोना के प्रत्यक्ष प्रभाव देखे जा सकते हैं।

कोराना ने हमें कठिन परीक्षा के दौर से गुजरने के लिए विवश कर दिया है। हम न तो उल्लास पूर्वक त्यौहार मनाने की स्थिति में हैं और न ही हमें अपनी दिनचर्या निकट भविष्य में सामान्य होने की संभावना दिखाई दे रही है परंतु जैसा कि मैंन पहले कहा है कि यह संकट हमारे अदम्य साहस, धैर्य, संयम, आत्मविश्वास को परास्त नहीं कर सकता। हम इस आपदा को अवसर में बदलते हुए निरंतर आगे बढते रहेंगे।

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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

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