कृष्णमोहन झा
राजस्थान में कुर्सी की लड़ाई रोज नया रूप लेती जा रही है और लगभग एक पखवाडे से जारी इस लड़ाई ने कोरोना की विपदा को बहुत पीछे छोड़ दिया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रोज अपने पक्ष के विधायकों से मिलकर उनकी गिनती कर लेते हैं कि होटल में जितने एक दिन पहले थे उनमें से कोई बाहर तो नहीं चला गया। यही प्रक्रिया रोज हरियाणा की होटल में सचिन पायलट दोहराते हैं।
अशोक गहलोत की चिंता के विपरीत सचिन पायलट की चिंता यह है कि अपने समर्थकों की संख्या में बढोत्तरी कैसे की जाए। अशोक गहलोत और सचिन पायलट, दोनों इस समय बेहद चिंतित और बेचैन हैं परंतु अगर उनकी इस चिंता और बेचैनी का संबंध कोरोना और, टिड्डी दल के बढते प्रकोप से बिल्कुल नहीं है तो यह निसंदेह दुर्भाग्यपूर्ण है।
इस पर अफसोस ही व्यक्त किया जा सकता है कि सचिन पायलट ने गहलोत सरकार को अस्थिर करने के लिए ऐसा वक्त चुना जब राज्य में कोरोना और टिड्डी दल के आक्रमण से निपटने के कारगर उपाय खोजना सरकार की पहली प्राथमिकता होना चाहिए था।
राज्य विधान सभा में सबसे बड़े विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी भी इस खेल में अपने दामन को पाक साफ नहीं बता सकती। सचिन पायलट को अगर भाजपा से हमदर्दी की उम्मीद न होती तो तो वे अपना उपमुख्यमंत्री पद दांव पर नहीं लगाते। अब उनकी सारी उम्मीदें राजस्थान हाईकोर्ट पर टिकी हुई हैं जहां अभी उनकी याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं हुई है।
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उधर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आरपार की लड़ाई लड़ने की ठान ली है। उन्होंने घोषणा कर दी है कि राज्यपाल अगर 31 जुलाई तक विधान सभा सत्र बुलाने के लिए राजी नहीं होते तो वे दिल्ली कूच करने से भी नहीं हिचकेंगे और वहां राष्ट्रपति के सामने अपनी बात रखने के प्रधानमंत्री आवास के सामने धरना देने में कोई संकोच नहीं करेंगे।
राजस्थान हाईकोर्ट ने गहलोत सरकार से बर्खास्त उपमुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस के निवर्तनमान अध्यक्ष सचिन पायलट गुट की ओर से दायर याचिका पर दो दिन तक सुनवाई करने के बाद पहले अपना फैसला 24 जुलाई तक के लिए सुरक्षित रख लिया था परंतु अब इस याचिका पर सोमवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने राजस्थान विधान सभा के अध्यक्ष को यह निर्देश दिया है कि वे सचिन गुट को दिए गए नोटिस पर अभी कोई कार्रवाई न करें। राजस्थान हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई जारी रहने तक सचिन पायलट निश्चित रूप से राहत महसूस कर सकते हैं |सचिन पायलट इस समय का सदुपयोग कुछ और विधायकों का समर्थन जुटाने के लिए कर सकते हैं।
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इतने दिनों में वे इस हकीकत से तो वाकिफ हो ही चुके हैं कि उन्हें फिलहाल जितने विधायकों का समर्थन प्राप्त है वह संख्या अशोक गहलोत सरकार को गिराने के लिए पर्याप्त नहीं है।
सचिन पायलट को अपने गुट के विधायकों पर नजर भी रखना होगी कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किसी भी माध्यम से उन तक पहुंच बनाने में सफल न हो पाएं। इसीलिए सचिन पायलट के समर्थक विधायकों से पूछताछ हेतुराजस्थान सरकार का जो जांच दल हरियाणा पहुंचा था उसे अपने मिशन में कोई सफलता नहीं मिली।
वैसे इस चिंता से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी मुक्त नहीं हैं कि सचिन पायलट द्वारा पैदा किए गए इस संकट की घड़ी में सरकार समर्थक विधायकों की एक जुटता में सेंध लगाने की कोशिश में सचिन गुट सफल न हो पाए इसीलिए मुख्यमंत्री गहलोत अपने पक्ष के विधायकों के साथ ही अपना गुजार रहे हैं।
मुख्यमंत्री को अपने समर्थक सभी विधायकों से वन टू वन चर्चा के बाद यह विश्वास हो चुका है कि राज्य विधान सभा में उनकी सरकार को बहुमत हासिल है फिर भी वे सभी विधायकों को लेकर एक होटल में ठहरे हुए हैं उनकी इस मजबूत किलेबंदी का एक ही मकसद है कि सचिन पायलट गुट उनकी एकता में दरार पैदा न कर सके। इसी डर के वशीभूत होकर सचिन पायलट ने अपने गुट के विधायकों को हरियाणा की खट्टर सरकार के संरक्षण में वहां की एक आलीशान होटल में शिफ्ट कर दिया था।
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यह कहना मुश्किल है कि दोनों पक्षों की यह मजबूत किलेबंदी कब तक चलती रहेगी। वैसे यह तो लगभग तय ही है कि राजस्थान हाईकोर्ट.का फैसला आने तक यथास्थिति बनी रहेगी। उसके बाद ही दोनों पक्ष अपनी आगे की रणनीति पर विचार करेंगे | गहलोत सरकार और सचिन गुट में से जिस पक्ष को भी हाईकोर्ट का फैसला असुविधा जनक प्रतीत होगा उसके पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प मौजूद होगा।
राज्य विधान सभा के अध्यक्ष ने सचिन गुट के विधायकों को जो अयोग्यता संबंधी नोटिस दिया था उस पर यथास्थिति बनाए रखने के हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा विचारार्थ स्वीकार न किए जाने से गहलोत सरकार को गहरा झटका लगा है। राजस्थान में सत्ता के लिए जारी उठापटक पर जल्द विराम लगने की सारी संभावनाएं धूमिल हो चुकी हैं।
अब यह मामला लंबा खिंचने के आसार नजर आ रहे हैं। इस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अलावा कोई जल्दी में नहीं है। विधान सभा में अपना बहुमत साबित करने की मंशा से शीघ्र ही सदन का सत्र बुलाने का उनका अनुरोध राज्यपाल कलराज मिश्र द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने के बाद भी वे चुप नहीं बैठेंगे। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत का अगला कदम क्या होता है।
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राजभवन में सरकार समर्थक सभी विधायकों ने कल पांच घंटे तक जो धरना दिया उसके जरिए गहलोत ने राज भवन में अपना शक्ति प्रदर्शन तो कर दिया परंतु उसका राज्यपाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अपने पक्ष के विधायकों को चार बसों में भरकर जब गहलोत राज्यपाल से मिलने पहुंचे तब वे भी इस हकीकत से भली भाँति अवगत होंगे कि इस कवायद का राज्यपाल पर कोई असर नहीं होगा।
बहरहाल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब रोजाना ही सचिन पायलट पर जिस तरह बरस रहे हैं उससे सभी आश्चर्यचकित हैं। गहलोत ने सचिन पायलट की आलोचना के लिए जो शब्दावली अभी तक प्रयुक्त की है वैसी शब्दावली का प्रयोग तो उन्होंने विरोधी दलों के नेताओं के लिए भी शायद ही कभी किया हो।
आमतौर पर संयत दिखाई देने वाले अशोक गहलोत राजनीतिक समीकरण साधने में माहिर माने जाते हैं और इस कला में दक्ष राजनेताओं की बोली में जो अतिरिक्त मिठास पाई जाती है वह गहलोत के पास भी पर्याप्त मात्रा में है फिर गहलोत ने अपनी वाणी पर नियंत्रण क्यों खो दिया इसके भी कई मतलब निकाले जा रहे हैं।
यहां यह भी विशेष गौर करने लायक बात है कि अशोक गहलोत ने अपनी सरकार के पूर्व उपमुख्यमंत्री के लिए न केवल कठोर भाषा काप्रयोग किया बल्कि वे उन पर तंज़ करने से भी नहीं चूके इसलिए यह कहना तो सही नहीं होगा कि उनकी जुबान फिसल गई होगी। उन्होंने बहुत सोच समझ कर सचिन पर जो तीखे प्रहार किए उसके दो मतलब निकाले जा रहे हैं।
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पहला यह कि गहलोत उन्हें उत्तेजित करना चाहते थे ताकि वे भी अपना आपा खोकर ऐसी भाषा का प्रयोग करने लगें जिससे उनकी छवि खराब करने में मदद मिले और दूसरा यह कि गहलोत यह मान चुके हैं कि देर सबेर उनकी सरकार गिरना तय है इसलिए वे मन की पूरी भड़ास निकालने में कोई परहेज नहीं कर रहे हैं।
अब गहलोत की मंशा चाहे जो भी रही हो परंतु सचिन की बगावत ने उनके गुस्से को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है और यह गुस्सा तब तक शांत नहीं होगा जब तक कि वे राज्य विधान सभा में अपनी सरकार का बहुमत सिद्ध नहीं कर देते।
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उधर सचिन पायलट की कम से कम इस बात के लिए तो सराहना की जा सकती है कि उन्होंने अभी तक आपा नहीं खोया है। मुख्यमंत्री के तीखे हमलों पर उन्होंने बस इतना कहा है कि’ मैं दुःखी हूं परंतु हैरान नहीं हूं।’ इस प्रतिक्रिया से यही संकेत मिलता है कि वे अपनी बगावत पर मुख्यमंत्री की इस तरह की प्रतिक्रिया का अनुमान पहले ही लगा चुके थे।
गौरतलब है कि गहलोत ने पिछले दिनों सचिव पायलट को निकम्मा, नाकारा और धोखेबाज कहने से भी परहेज नहीं किया था। इसके पहले उन्होंने सचिन पर तंज़ करते हुए कहा था कि केवल हैंडसम दिखाने और अच्छी अंग्रेजी बोल लेना ही सब कुछ नहीं होता। असली बात तो यह है कि आपके दिल में क्या है | इतना ही नहीं ,गहलोत यह भी कह चुके हैं कि ‘हम यहां कोई सब्जी बेचने नहीं आए हैं’।
गहलोत की इन प्रतिक्रियाओं से यह अनुमान लगाया जा सकता है किआगे चलकरसचिन के लिए वे और भी कठोर हो सकते हैं। राजस्थान में इस समय जो राजनीतिक उठापटक चल रही है वह दो ही स्थितियों में थम सकती है।
पहली यह कि राज्यपाल कल राज मिश्र राज्य विधान सभा का संक्षिप्त सत्र बुलाने का गहलोत सरकार का अनुरोध स्वीकार कर उन्हें सदन में अपनी सरकार का बहुमत साबित करने का अवसर प्रदान कर दें और दूसरी यह कि सचिन पायलट कांग्रेस के इतने विधायक जुटा लें कि भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाना संभव हो सके।
सचिन यह स्पष्ट कह चुके हैं कि अपने समर्थक विधायकों को लेकर भाजपा में शामिल होने का उनका कोई इरादा नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि राज्य में भाजपा की सहानुभूति सचिन पायलट के साथ है परंतु वह अपनी इस सहानुभूति को उजागर नहीं करना चाहती क्योंकि वह वह इस हकीकत से वाकिफ है कि सचिन गुट के साथ मिलकर गहलोत सरकार गिराना अभी संभव नहीं है इसलिए वह तटस्थ दिखना चाहती है।
भाजपा सचिन पायलट की बगावत को कांग्रेस का अंदरूनी मामला बताकर यह साबित करना चाहती है कि उसे इसमें कोई रुचि नहीं है परंतु भाजपा नीत गठबंधन सरकार के संरक्षण में हरियाणा की एक सर्वसुविधा संपन्न एक होटल में सचिन गुट के विधायकों का ठहरना यही संकेत देता है कि गहलोत सरकार से बगावत के बाद सचिन पायलट की सारी उम्मीदें भाजपा पर ही टिकी हुई हैं।
भाजपा ने अब तक यद्यपि यही कहा है कि विधान सभा में गहलोत सरकार के विरुद अविश्वास प्रस्ताव लाने का उसका कोई इरादा नहीं है परंतु वह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इस्तीफा जरूर मांग रही है। इस बीच मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में संपन्न राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर पुनः राज्यपाल से शीघ्र ही विधान सभा की बैठक बुलाने की मांग की गई है।
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)