Tuesday - 29 October 2024 - 1:53 AM

इलाहाबाद ब्लूज : हर छात्र के अंदर अतीत की स्मृतियों को कुरेदती भावनाओं को शब्द देने का प्रयास है

डॉ प्रदीप कुमार सिंह

इलाहाबाद ब्लूज एक सांस में बिना रुके पढ़ गया। कोई भी रचना यदि एक बार में पढ़ी जाए तो यह रचनाकार की सामर्थ्य का द्योतक होती है। तीन अंशों में स्मृतियां, मध्यांतर और वर्तमान में विभक्त यह गुदगुदाने वाली रचना, उस हर छात्र के अंदर अतीत की स्मृतियों को कुरेदती भावनाओं को शब्द देने का प्रयास है। मध्यमवर्गीय संस्कारों में पले व्यक्ति की किशोर वय वर्ग से लेकर, उसके देश की सर्वोच्च परीक्षा को उत्तीर्ण करने और उसमें योगदान देने तक के संघर्ष, बेचैनी छटपटाहट को बेहद संवेदनशील ढंग से शब्द चित्र के रूप में मानवीयता के विशाल कैनवास पर उकेरा गया है।

कहते हैं कि रचना और रचनाकार के बीच में एक दूरी होनी चाहिए। यह दूरी जितनी अधिक होती है रचना उतनी अधिक महान हो जाती है। इस कृति के संदर्भ में यह उक्ति सटीक बैठती है। आद्योपान्त रचना में अंजनी कुमार पांडेय का बेहद संवेदनशील व्यक्तित्व युवा प्रतियोगियों के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में उभर कर आया हुआ है।

भारतीय राजस्व सेवा का अधिकारी कहीं-कहीं मंद मुस्कान लिए हुए सधी हुई, किंतु अभिमान रहित मुद्रा में प्रकट हुआ है। विभिन्न शीर्षकों में विभक्त, किंतु लघु रूप में वर्णित इस रचना में गागर में सागर भरने का प्रयास किया गया है। देशज शब्दों का प्रयोग इतनी खूबसूरती से किया गया है कि मन अतीत की स्मृतियों में गोते लगाने लगता है। ]

माई, जुगनू, अनरसा, ठोकवा, नोनबरिया, कच्चा खाना, कलेवा, थैली, अंचरधराई, मांडव हिलाई, देहरी डकाई, तेलवाई, भतखवाई, नेग, गौना, थौना, अधिया उर, पहिल पठौनी, हंडा, खखरा, आदि शब्द हमारी उस प्राचीन समृद्धशाली विरासत के प्रतीक हैं जो रिश्ते के तंतुओं को मजबूत बनाते थे।

रचनाकार ने बेहद खूबसूरती से हमारे जज्बातों को कुरेदने का प्रयास किया है। मां के बहाने पुरानी स्मृतियों को जीवंत करने का प्रयास बेहद खूबसूरती से बन पड़ा है। मां की भावुक कर देने वाली स्मृतियों का प्रस्तुतीकरण हृदय को चीर देता है। मां की पहली रेल और रिक्शे की यात्रा निश्छल बालमन का सुंदर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है।

अपने गांव, गांव के परिवेश, पीपल के पेड़, गांव की परंपराओं, अपने स्कूल, अपने मित्रों, ननिहाल की स्मृतियों को रेखांकित करना बेहद मर्मस्पर्शी है। गांव की बारिश को बच्चों को दिखाने की उत्कंठा रचनाकार के व्यक्तित्व के जमीन से जुड़ाव का सुंदर प्रतिदर्श है। किशोर उम्र में प्रेम के बीज वपन को बेहद मर्यादित ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

इलाहाबाद एक शहर नहीं, बल्कि रोमांटिक कविता है। यह कथन मेरे जैसे हर इलाहाबादी के लिए सूत्र वाक्य की तरह है जिसने बड़ी शिद्दत से इलाहाबाद को जिया है। रचनाकार ने तो इलाहाबाद को अपने पूरे व्यक्तित्व में आत्मसात किया है।

वस्तुतः यह रचना गद्य में लिखी हुई एक लंबी कविता के सदृश है जिसमें कविता के समग्र आयाम निहित हैं। पूरी रचना में अपने मां-बाप, दादी, पत्नी और बेटियों से रचनाकार का लगाव उनके द्वारा अर्जित संस्कारों का प्रतिफलन तो है ही, साथ ही हमारे सशक्त सामाजिक ढांचे का सुंदर स्वरूप भी। यद्यपि कहीं-कहीं दरकते उसी सामाजिक ढांचे के प्रति बेचैनी भी परिलक्षित होती है। हर संघर्षशील विद्यार्थी और हिंदी प्रेमियों को इस रचना को अवश्य पढ़ना चाहिए और अपनी संवेदना के फलक को विस्तीर्ण करना चाहिए।

समीक्षक – डॉ प्रदीप कुमार सिंह
संयुक्त निदेशक ( शिक्षा )
उत्तर प्रदेश

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com