- निजी अस्पतालों में कोरोना इलाज के लिए कीमतों को रेग्युलेट करने से एससी का इनकार
जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना संक्रमण के आंकड़े बढऩे की वजह से सरकारी अस्पतालों में जगह नहीं बची है। मजबूरन मरीज प्राइवेट अस्पताल की ओर रूख कर रहे हैं, लेकिन वहां का भारी-भरकम बिल मरीजों के होश उड़ा रहा है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी जिसमें निजी अस्पतालों में कोरोना इलाज के लिए कीमतें निर्धारित करने की मांग की गई थी।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि निजी अस्पतालों में कोरोना इलाज की लागत निर्धारित नहीं कर सकते। अदालत ने देशभर के निजी अस्पतालों में कोरोना इलाज के लिए कीमतों को रेग्युलेट करने से इनकार कर दिया।
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इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, अदालत ने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में स्थितियां अलग-अलग हैं।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा, ‘हम पूर्ण रूप से सहमत हैं कि मेडिकल उपचार तक पहुंच बनाने में इसकी कीमत को बाधा नहीं बनना चाहिए विशेष रूप से मौजूदा समय में। किसी भी मरीज को अस्पताल के दरवाजे से इसलिए वापस नहीं लौटना चाहिए कि उपचार की लागत बहुत अधिक है।’
हालांकि शीर्ष अदालत ने कुछ निजी अस्पतालों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी की उन आपत्तियों से भी सहमति जताई कि देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत को कम करना संभव नहीं है, विशेष रूप से मौजूदा परिस्थितियों में।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से 16 जुलाई को स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के साथ याचिकाकर्ताओं की एक बैठक की व्यवस्था करने को कहा ताकि वे अपने सुझाव दे सकें।
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सुनवाई के दौरान हरीश साल्वे ने कहा कि कोरोना संक्रमण के इलाज की लागत को लेकर बीमा कंपनियों ने अविश्वास फैलाया हुआ है। अगर मरीज के पास बीमा है तो बीमा कंपनियां इलाज के खर्चे का भुगतान क्यों नहीं कर सकती।
साल्वे ने यह भी कहा कि कोरोना के लिए एक सीधा-सा फॉर्मूला नहीं हो सकता। हर राज्य में अलग स्थिति है और हर राज्य अपना अलग मॉडल बनाने की कोशिश कर रहा है।
वहीं मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता से कहा, ‘आपका आग्रह है कि इसे (लागत) रेग्युलेट किया जाना चाहिए लेकिन वे कह रहे हैं कि हर राज्य में अलग-अलग परिस्थितियां हैं। ये सभी आर्थिक वास्तविकताएं हैं। इलाज की लागत वकील की फीस की तरह है। मान लीजिए हमने वकील से एक उचित राशि वसूलने को कहा है तो आप जानते हैं कि वे अलग-अलग राज्यों में इसे कैसे करेंगे।’
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले को उच्च न्यायालय में न भेजने और केंद्र सरकार से इस संबंध में दिशानिर्देश बनाने को कहा है।
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘हम यह नहीं कह रहे कि केंद्र सरकार को कुछ नहीं करना चाहिए. अगर गुजरात मॉडल अच्छा काम कर रहा है तो इसका कोई कारण नहीं है कि केंद्र सरकार को आपदा प्रबंधन अधिनियम का पालन नहीं करना चाहिए।’
दरअसल याचिकाकर्ता सचिन जैन ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना लागू की है, निजी अस्पतालों पर भी लागू होती है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि आयुष्मान भारत के लिए तय कीमत पर ही सबका इलाज होना चाहिए। केंद्र सरकार को नागरिकों के लिए खड़ा होना चाहिए न कि कॉरपोरेट अस्पतालों का स्टैंड लेना चाहिए।