जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। कोरोना की वजह से स्कूल कॉलेज अभी तक बंद है। ऐसे में सरकार ऑनलाइन पढ़ाई को बढ़ावा देने में लगी हुई लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई कुछ लोगों के लिए परेशानी भी बन रही है। इतना ही नहीं ऑनलाइन पढ़ाई में काफी परेशानी उठानी पड़ रही है।
कुछ लोगों की इंटरनेट की वजह से ऑनलाइन पढ़ाई बाधित हो रही है जबकि अब भी कई ऐसे बच्चे हैं जिनके पास उस तरह का मोबाइल नहीं है जिससे वो ऑनलाइन पढ़ाई को कर सके। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई पर सवाल उठना तय है। ऑनलाइनल पढ़ाई को लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सवाल उठाया है। इतना ही नहीं अखिलेश ने ऑनलाइनल पढ़ाई के बहाने योगी सरकार पर तंज किया है और कहा है कि भाजपा राज में सूबे की शिक्षा क्षेत्र में अव्यवस्था फैल रही है।
अखिलेश यादव ने ऑनलाइन पढ़ाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि गरीब परिवारों के बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है, तमाम स्थानों खासकर देहातों में नेटवर्क की समस्या बनी रहती है। ऑनलाइन पढ़ाई सिर्फ सम्पन्न परिवारों के लिए हो रही है। उन्होंने इसके साथ यह भी कहा कि कोरोना की वजह से स्कूल कॉलेज बंद है।
अखिलेश का कहना है कि ऑनलाइन पढ़ाई पटरी पर नहीं आ पाई है। इस दौरान अखिलेश ने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के छात्रों के साथ भी सरकार का सौतेल व्यवहार हो रहा है। अखिलेश ने शनिवार को मीडिया में एक बयान जारी कर के कहा कि बीजेपी सरकार ने स्कूल कॉलेज तो बंद कर दिए है लेकिन यहां पर कार्यरत शिक्षकों तथा अन्य कर्मचारियों की जिन्दगी कैसे चलेगी, इसकी चिंता नहीं की। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यह भी कहा कि विद्यालय प्रबन्धन पर विद्यालय बंदी के समय की फीस भी न लेने का दबाव बना।
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ऐसी स्थिति में जो अभिभावक फीस देने में सक्षम थे, वे भी फीस नहीं जमा कर रहे हैं। नतीजतन 10 लाख से ज्यादा प्राइवेट कॉलेजों के शिक्षक वेतन के अभाव में भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। स्थिति यह है कि कुछ प्राईवेट विद्यालयों ने मार्च-अप्रैल का वेतन दे दिया, आगे वेतन देने से हाथ रोक लिए है, वहीं कई विद्यालयों के शिक्षकों को मार्च का वेतन भी नहीं मिला है। जो अपने शिक्षण कार्य से आजीविका चला रहे थे उनके सामने गम्भीर संकट पैदा हो गया है। बेकारी और भूख से बहुत से शिक्षक अवसादग्रस्त हो गए हैं।
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अखिलेश ने कहा कि शिक्षाजगत के प्रति भाजपा सरकार में यदि तनिक भी सम्मान का भाव होता तो वह प्राइवेट मान्यता प्राप्त विद्यालयों के शिक्षक अनुमोदन के हिसाब से सरकार न्यूनतम वेतन का सहयोग कर देती। इससे सुविधानुसार शिक्षक ऑनलाइन कक्षाएं ले सकते और अभिभावकों पर भी फीस का भार कुछ कम हो जाता। इसमें शिक्षक, अभिभावक और विद्यालय प्रबन्धन सभी के हित पूरे हो जाते।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार की भेदभावपूर्ण और दलित विरोधी नीतियों के शिकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राएं भी हो रही हैं। प्रतिवर्ष उत्तर प्रदेश शासन द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं की शुल्क प्रतिपूर्ति छात्रवृत्ति के रूप में भेजी जाती है जिससे उनकी पढ़ाई में सुविधा होती है। लेकिन अब भाजपा सरकार ने साजिश के तहत शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं भेज रही है जिससे प्रदेश के तमाम कॉलेज प्रबन्धक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं को परीक्षा देने से वंचित करने की तैयारी में हैं और अंक तालिका भी नहीं दे रहे हैं। दलित समाज में इससे भारी आक्रोश है।
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भाजपा सरकार की नीतियां चूंकि कारपोरेट व्यवस्था से जुड़ी है इसलिए गरीबों, दलितों, कमजोर वर्ग के प्रति उनमें न तो सदाशयता है और नहीं संवेदनशीलता। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने का आरएसएस एजेंडा ही भाजपा सरकार चला रही है। उसका सारा जोर सर्व सुविधा सम्पन्न छात्र-छात्राओं के लिए कारपोरेट घरानों के प्रबन्धन के स्कूल-कॉलेजों को प्रोत्साहन देने का है। भेदभाव से शिक्षा में असमानता और बढ़ेगी। इस कारण सामाजिक अन्याय को ही भाजपा का समर्थन माना जायेगा। सरकारों को रागद्वेष का व्यवहार नहीं करना चाहिए।