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कोविड-19 संकटकाल में महिला समूहों ने बनाई नई पहचान

रूबी सरकार

मध्य प्रदेश में खाद्य और पोषण सुरक्षा में लचीलापन लाने के उद्देश्य से गैर-लाभकारी संगठनों के साथ मिलकर सामुदायिक पोषण वाटिका कार्यक्रम किया गया। कार्यक्रम के अनुसार ग्रामसभा की खाली पड़ी भूमि चिन्हित कर उसे ग्रामीण महिलाओं को लीज पर दे दी जाती है और महिलाएं स्वयं सेवी संगठनों की मदद से उस पर सब्जियां और फल उगाती है। इसके बाद तैयार सब्जी-फलों को बाजार में बेचती हैं। इसके लाभांश का 2 फीसदी हिस्सा ग्रामसभा के पास जाता हैं। चूंकि बुंदेलखण्ड का छतरपुर जिला बहुत पिछड़ा है और यहां के लगभग 42 फीसदी बच्चे कुपोषित है तथा 6 से 59 माह तक के 66 फीसदी बच्चे एनिमिक है। इसलिए सरकार ने इस कार्यक्रम की शुरूआत इसी जिले से की है।

यहां लगभग 70 फीसदी पलायन है। इस कार्यक्रम से जुड़ने के लिए महिलाओं ने सबसे पहले 12-12 की संख्या में एक-एक समूह बनाया। रगोली गांव की कुराबाई बताती हैं कि ग्रामसभा की चिन्हित एक हेक्टेअर भूमि उनके समूह ने लीज पर ली। बंजर और ऊबड़-खाबड़ भूमि को समूह ने अपने श्रम से समतल किया, उसे उपजाऊ बनाया।

इस काम में समूह की मदद स्वयं सेवी संगठन परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने किया। संस्थान ने पोषण वाटिका बनाने के लिए सर्वप्रथम महिलाओं के साथ गांव में बैठक की। उन्हें पोषण वाटिका क्या है, क्यों आवश्यक है तथा इसे कैसे बनाया जा सकता है और इससे क्या लाभ हैं इन पर उनके साथ चर्चा की और उन्हें निःशुल्क तौरई, लौकी, कद्दू, भिंडी, सेम, पालक, करेला व टमाटर, आलू, प्याज, मेथी, बथुआ, चौलाई, मूली, गाजर, शलजम, शिमला मिर्च, बैंगन, मिर्च तथा काशीफल आदि का जैविक बीज उपलब्ध कराया। साथ ही उन्हें नींबू, आंवला, अनार, पपीता, फालसा, जामुन, अमरुद, सहजन के वृक्ष लगाने की सलाह दी। मात्र 6 महीने में ही इनके खेत फल और सब्जियों से लहलहाने लगे। इससे एक ओर तो यहां की महिलाएं पोषण विविधता के महत्व को जान पायी, दूसरी तरफ वे अपने परिवार को स्वस्थ रखने के प्रति भी जागरूक हुईं।

परिवार के साथ पलायन करने वाली इसी गांव की मनीषा कुशवाहा बताती हैं कि हमें यह मालूम था कि पररदेस हमेशा परदेस ही होता है, वह कभी अपनी भूमि, अपनी माटी का सुकून नहीं दे सकता। इसलिए जब मध्यप्रदेश सरकार ने इस कार्यक्रम की घोषण की तो हमलोग आगे आये।

सरकार ने बतौर पायलट प्रोजेक्ट छतरपुर जिले के रगोली, रतनपुर, विजयपुर, डारगुंआ, अमरपुर और नारायणपुरा गांव को चुना और सभी समूहों को लगभग एक हेक्टेअर भूमि उपलब्ध कराया। रामकुंवर कहती हैं कि पहले इन गांवों में कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक थी। हरी और ताजी सब्जी के सेवन से इनकी संख्या घटी है। साथ ही गर्भवती और धात्री महिलाओं को हरी सब्जी उनके आहार के लिए कारगर सिद्ध हुई। समूह की महिलाएं अब जैविक का महत्व समझ चुकी हैं। सरोज साहू बताती हैं कि अपने घर के लोगों को स्वस्थ रखने के लिए पोषण वाटिका की जैविक सब्जी खिला रही हैं।

पुष्पा मिश्रा कहती हैं कि इससे हमें आमदनी भी हो जाती है, साथ ही एक हफ्ते में तीन से चार सौ रुपए घर में सब्जियों में खर्च हो जाते थे, वो भी बचत हो जाती है। हम जैविक तरीके से ही खेती करते हैं, जिससे बीमारियां भी नहीं होती हैं। पोषण वाटिका से प्रत्येक परिवार को एक हजार से डेढ़ हजार रूपए की मासिक बचत हो रही है। महिलाओं को आहार में सभी प्रकार के विटामिन मिल रहा है और उनके हीमोग्लोबिन में भी अपेक्षाकृत बढ़ोत्तरी हुई है।

इस वक्त इनका जिक्र इसलिए हो रहा है, क्योंकि कोविड-19 संक्रमण में इन महिला समूहों ने उल्लेखनीय कार्य कर अपनी नई पहचान बनाई है। इन महिलाओं को पहली बार एहसास हुआ कि वे आत्मनिर्भर हैं। अचानक लॉकडाउन हो जाने से लाखों की संख्या में मजदूर शहर से गांव वापस आये। गाइडलाइन के अनुसार उन्हें सीधे गांव में प्रवेश न देते हुए गांव की सीमा पर ही स्थित एक स्कूल में कोरेंटाइन किया गया। तब समूह की महिलाएं आगे आईं और अपने परिवार की चिंता किये बगैर उनके लिए भोजन का प्रबंध करने लगी।

पार्वती बताती हैं कि संकट काल में परिवार पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पायी। स्कूल में कोरेंटाइन में रखे गये सौ मजदूरों की देखभाल ज्यादा जरूरी समझकर उनकी सेवा की। ये सब हमारे अपने ही तो हैं। समूह ने उनके लिए अपने खेत की सब्जी-फलों के साथ-साथ उनके लिए 15 दिनों तक सामुदायिक रसोई का इंतजाम किया। इसके साथ ही लॉकडाउन के दौरान जब सारा देश सब्जी-फलों के लिए तरसते रहे, तब समूह की महिलाओं ने गांव के वृद्ध, विकलांग, अस्वस्थ्य और जरूरतमंदों के घरों तक ताजी सब्जी-फल पहुंचाने का काम किया। ग्राम पंचायत के सचिव जाहर सिंह ने बताया कि खेत के चारों ओर कटीले तार लगवाने, पानी के लिए बोर जैसे काम मनरेगा के फण्ड से किया जाता है।

वर्तमान में समूह की महिलाएं गांव में जनहित की आवश्यकताओं की पहचान कर उनकी पूर्ति के लिए शासन के जिम्मेदार विभागों एवं उनसे संबंधित हेल्प लाइन नम्बरों पर बात करती हैं। रबी की कटाई के पश्चात जन सहभागिता सुनिश्चित करते हुये जल संरचनाओं की मरम्मत एवं बरसात के बाद नालों के बह रहे पानी को बोरी बंधान कर संरक्षित करती हैं।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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