जुबिली न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली. चीन की भारत में घुसपैठ का कोई नया मामला नहीं है. भारत से लगी सीमाओं में आये दिन चीनी सैनिक घुसपैठ करते ही रहते हैं. अरुणांचल प्रदेश पर तो चीन अपना दावा जताता ही रहा है. उत्तराखंड की सीमाओं में भी आये दिन चीन के सैनिक चहलकदमी करते नज़र आ जाते हैं. लद्दाख में चीन की घुसपैठ ने हमारे 20 जवानों की जान ले ली.
लॉ ट्रोबे यूनिवर्सिटी की एशिया सुरक्षा रिपोर्ट का जायजा लें तो पता चलता है कि चीन 23 देशों की ज़मीन या समुद्री सीमाओं पर अपना दावा करता रहा है. हालांकि उसकी सीमाएं 14 देशों से लगती हैं लेकिन वह 23 देशों की करीब 41 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कुंडली मारकर बैठा है.
हद तो यह है कि पिछले 70 साल से चीन दूसरे देशों की ज़मीनों को लगातार हड़पता जा रहा है. मौजूदा वक्त की बात करें तो चीन के कुल क्षेत्रफल में 43 फीसदी ज़मीन हड़पी हुई ज़मीन है. मतलब 70 साल में अपने क्षेत्रफल को लगभग दो गुना कर चुका है चीन.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से दोस्ती का दावा भी करते हैं और भारत की ज़मीन को हड़पने के मुद्दे पर भी उनकी सहमती रहती है. जिनपिंग नरेन्द्र मोदी से एक साल पहले वर्ष 2013 में सत्ता में आये थे. राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने भारतीय सीमा पर अपनी मोर्चेबंदी तेज़ कर दी.
वर्ष 1950 में चीन ने तिब्बत पर अपना अधिकार जमा लिया. 12.3 लाख वर्ग किलोमीटर वाले तिब्बत पर कब्ज़े के बाद चीन ने तोब्ब्त का विस्तार भारत तक कर लिया. तिब्बत पर कब्ज़े से सिर्फ एक साल पहले चीन ने तुर्किस्तान की 16.55 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब्ज़ा जमा लिया था. इसी इलाके में आधी आबादी उइगर मुसलमानों की है. जिन पर पिछले एक दशक से चीन का ज़ुल्म काफी बढ़ गया है.
तुर्किस्तान की ज़मीन हथियाने से चार साल पहले चीन ने मंगोलिया के 11.83 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब्ज़ा जमा लिया. मंगोलों ने आज़ादी के लिए संघर्ष किया तो चीन की सेना ने मंगोलों का बुरी तरह से दमन किया.
भारत के 38 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर चीन के कब्ज़े में है. इसमें 14 हज़ार 380 किलोमीटर का क्षेत्र अक्साई चीन कहलाता है. इसके अलावा 5180 वर्ग किलोमीटर इलाका पीओके का है जो उसने पाकिस्तान से लिया है. यही वजह है कि चीन नहीं चाहता कि पीओके भारत में वापस मिले. इसी वजह से वह पाकिस्तान की हर मोर्चे पर मदद करता है और इसी वजह से वह हाफ़िज़ सईद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित किये जाने के रास्ते में लगातार बाधा बना हुआ है.
मकाऊ पर चीन का कब्ज़ा है. हांगकांग पर चीन का कब्ज़ा है. ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है. जापान के आठ द्वीपों पर चीन की अरसे से नज़र है. रूस की 52 हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब्ज़े की कोशिश वह 50 साल से कर रहा है.
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चीन ब्रूनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और सिंगापुर से भी ज़मीनों को हड़पना चाहता है. जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में तोड़कर सरकार ने लद्दाख को अलग किया तो चीन का लालच फिर सर चढ़कर बोलने लगा और वह भारत की सीमा में 60 किलोमीटर अन्दर तक घुस आया. चीन की दूसरे देशों की ज़मीनों पर कब्ज़े की आदत पड़ चुकी है. जो भी देश उसके सामने झुक जाता है वह अपनी ज़मीन गँवा देता है लेकिन ताइवान जैसा देश जब आँखों में आँखें डालकर युद्ध के लिए तैयार दिखता है तो चीन ताइवान को अपना तो बताता है लेकिन उससे भिड़ने की जुर्रत नहीं कर पाता है.