- किसान संगठन सरकार के कदम से नहीं है खुश
- किसान नेताओं का कहना है कि किसानों की आड़ में व्यापारियों को फायदा पहुंचाने की कोशिश
जुबिली न्यूज डेस्क
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि क्षेत्र के लिए तीन बड़े कदमों को मंजूरी दी। सरकार का दावा है कि ये कानून किसानों की आय बढ़ाने में मदद करेंगे। पहले किसानों को कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा।
यह सरकार की दलील है। वहीं इसका देश भर के किसान संगठन, मंडी समितियों से जुड़े लोग इस कानून का विरोध कर रहे हैं। इनका मानना है कि इन इन कानूनों के जरिए सरकार खेती में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है, जो किसानों की परेशानियों का सबब बनेगा।
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पहले ये जानते हैं कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि क्षेत्र के लिए कौन से तीन नये कानून बनाए हैं। पहला है-आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव। दूसरा द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिएशन) अध्यादेश, (एफपीटीसी) 2020 की अनुमति और तीसरा हैं-एफएपीएएफएस (फार्मर एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्युरेंस एंड फार्म सर्विसेज आर्डिनेंस, 2020 की अनुमति।
इन नये कानून से देशभर के किसान खुश नहीं हैं। किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि हर बार की तरह इस बार भी किसानों के नाम पर बदलाव किए जा रहे हैं, लेकिन इसका फायदा उन्हें नहीं मिलेगा। इसका फायदा व्यापारी उठायेेंगे।
सरकार के इन फैसलों से किसे फायदा होगा के सवाल पर जुबिली पोस्ट से बात करते भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक कहते हैं- सरकार के नए कानून से किसानों को कोई फायदा नहीं होने वाला है। दरअसल केंद्र सरकार, कृषि सुधार और किसानों की आय बढ़ाने के नाम पर कृषि व्यवस्था को एग्रो-बिजनेस के क्षेत्र मे काम कर रही निजी कंपनियों के हवाले करने जा रही है।
वह कहते हैं, 1991 में हुए उदारीकरण का परिणाम है कि पिछले 30 साल में 3 लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अब सरकार जो कानून लाई है, यदि ये लागू हो गए तो खेती पूरी तरह से बदल जाएगी। सरकार जिसे किसानों की मुक्ति का मार्ग बता रही है, दरअसल वही उनके लिये सबसे बड़े बंधन हैं।
मलिक उदाहरण देते हुए कहते हैं कि देश में 85 प्रतिशत किसान छोटी जोत वाले हैं। इनकी साल भर की पैदावार इतनी नहीं होती की वे हर बार पास की मंडी तक जा सकें। ऐसे में उनसे ये कहना कि तुम अपनी फसल को किसी दूसरे राज्य की मंड़ी में जाकर बेचो, यह किसी मजाक से कम नहीं।
वह आगे कहते हैं-मान लीजिए, कोई किसान पहुंच भी जाए तो क्या गारंटी है कि उसको फसल के इतने दाम मिल जाएंगे कि माल ढुलाई सहित पूरी लागत निकल आएगी? दूसरे राज्य में भी तो व्यापारी ही हैं, वो भी तो कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं।
मलिक गुजरात में लेज कंपनी के लिये आलू उगाने वाले किसानों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि, निजी कंपनियां किसानों को ऐसी फसलें उगाने के लिये प्रोत्साहित करती हैं, जिनकी उन्हें जरुरत होती है, और इस तरह किसान, बीज से लेकर फसल बेचने तक के लिये उन पर निर्भर हो जाता है। इस सब को जानने के बाद कृषि में निजी निवेश को बढ़ावा देकर किसानों का हित कैसे होगा यह समझ से परे है।
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बुंदेलखंड किसान मोर्चा के रत्नाकर सिंह भी इन कानूनों के औचित्य पर सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं-तीनों कानूनों में सबसे महत्वपूर्ण है ‘आवश्यक वस्तू अधिनियम (संशोधित 2020)” जो व्यापारी वर्ग पर नियंत्रण रखने में सहायक था। इसी एक कानून के जरिए सरकार ने जाने कितनी बार आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता से लेकर कीमतों तक में नियंत्रण किया है। अब 55 साल बाद इसको बदला जा रहा है, वो भी ऐसे समय में जब देश कोरोना महामारी के कारण पैदा हुई बेरोजगारी और अव्यवस्था से जूझ रहा है।
वह कहते हैं, सरकार ने कानून में जो बदलाव किया है वह पूरी तरह से एक खास वर्ग के हितों की रक्षा करते हैं। इस कानून का संबध सीधे किसानों से तो पहले भी नहीं था और अब भी नहीं रहेगा, लेकिन पहले व्यापारियों के हितों का इतने खुले तौर पर समर्थन नहीं करता था, जितना अब कर रहा है।
रत्नाकर सिंह कहते हैं, पहले जो व्यापारी कानून के कारण या उसके डर से एक सीमा से अधिक ट्रेडिंग नहीं करते थे, वे अब जितनी मर्जी हो उतना खरीद बेच सकते हैं। कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने वाला व्यापारी, किसान को उसकी फसल के ज्यादा दाम देगा इससे ज्यादा बचकाना क्या हो सकता है?
सरकार द्वारा लाए गए नये कानून में सबसे ज्यादा जोर एक राष्ट्र एक बाजार को लेकर है। इसमें एफपीटीसी कानून 2020 के अंर्तगत किसानों की खरीद-बिक्री के लिए मंडी समिति के एकाधिकार को खत्म किया गया है। इस पर अर्थशास्त्री डॉ. योगेश बंधु कहते हैं, देखिए मंडी समितियां खत्म नहीं की गई हैं। वह पहले की ही तरह रहेंगी। अंतर बस इतना है कि जो व्यापारी पहले मंडी समिति के अंदर खरीददारी करने के लिए बाध्य था, वो अब बाहर से कितनी भी खरीददारी कर सकता है, वो भी बिना टैक्स दिए। मंडी से खरीददारी करने पर टैक्स देना होता था।
वह कहते हैं कि अब सवाल यही है कि जब बाहर से फसल खरीदने पर व्यापारी को टैक्स नहीं देना है तो वह क्यों मंडी समिति से खरीदारी करेगा? वन नेशन, वन मार्केट यहीं तो फेल हो जाता है।