श्रीश पाठक
पूरी विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि जो लोग चीनी सामान का बहिष्कार करके चीन को सबक सिखाना चाहते हैं, खासे भोले हैं। सरकार की देखरेख में अपनी सीमा के भीतर जो चायनीज माल आ गया, उसमें किसी भारतीय का निवेश हो चुका, अथवा उसकी देनदारी तय हुई और उसी क्षण भारतीय कोष में एक नियत सीमा कर राशि भी पहुँच गई। इसके बाद से चीनी बहिष्कार, चीनी नहीं रह जाता, वह भारतीय व्यावसायियों का बहिष्कार हो जाता है।
आर्थिक नीति के स्तर पर और सीमा पर ये दो ऐसे जगह हैं जहाँ चायनीज माल को रोका जा सकता है और इन दोनों ही जगहों पर कार्यकारी शक्ति सरकार के पास है। सचमुच अगर चायनीज माल का बहिष्कार करना है तो इन्हीं दो जगहों पर सरकार को खुलकर प्रतिबंध लगाना होगा। इसके बाद चीनी माल का बहिष्कार अथवा चीनी ऐप की अनइंस्टालिंग महज नारे हैं। सरकार के एक इशारे पर प्ले स्टोर/ ऐप स्टोर के भारतीय संस्करण से चायनीज ऐप हटाए जा सकते हैं।
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सरकार क्यूँ ऐसा नहीं करती, पर सत्ताधारी राजनीतिक दल के लोकल गुर्गे ऐसा क्यूँ करने की कोशिश करते हैं। सरकार को दुनिया भर के मंचों पर जाना होता है, वहाँ राजनीतिक-आर्थिक-सामरिक डील करनी होती है। वहाँ भाँति-भाँति के देशों के मुखर-मूक समर्थन की जरूरत होती है। इस लिबरल ऑर्डर वैश्विक व्यवस्था में वैश्वीकरण से इतर राह लेने की गुंजायश बेहद कठिन है इसलिए आप पॉलिसी के स्तर पर किसी एक विशेष देश के आयात पर रोक लगाते हुए प्रगतिशील राष्ट्र प्रतीत नहीं हो सकते और फिर पड़ोसियों में चीन से तो सर्वाधिक व्यापार हमारा होता रहा है।
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लोकल गुर्गे इसलिए कभी-कभी ऐसा कराते हैं ताकि बड़े मुद्दों का साधारणीकरण किया जा सके, सरकार के कर्तव्यों से अधिक नागरिक को महसूस कराया जा सके कि तुम भी अपने स्तर से असर डाल सकते हो, देखो, सरकार को जो करना चाहिए वो तो वो कर ही रही है, तुम्हीं हो जो सस्ते के चक्कर में चायनीज माल नहीं छोड़ते। चूँकि लोकल स्तर पर कुछ छोटे व्यापारियों का काम भी इन चायनीज माल से खराब होता है तो इस दिशाहीन मुहिम को आँच मिल जाती है कुछ समय के लिए, इस बीच सरकार अपनी जवाबदेही से बच खड़ी होती है। आपकी सरकार चीनी माल के विरोध में न हो और आप हों ऐसा तभी जायज हो सकता है जब सरकार आपकी न होकर अंग्रेज बहादुर की हो।
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