जुबिली न्यूज डेस्क
राज्यसभा चुनाव को लेकर मध्य प्रदेश में सियासी घमासान बढ़ गया है। चुनाव की तिथि करीब आने के साथ-साथ जोड़-तोड़ की राजनीति भी शुरु हो गई है।
मध्य प्रदेश में 3 राज्यसभा सीटों के लिए 19 जून को चुनाव होना है। अपने-अपने प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने में बीजेपी और कांग्रेस जुट गई है। दोनों दलों के नेता जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं।
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हालांकि चुनाव में जीत-हार का फार्मूला लगभग तय है, बावजूद इसके दोनों दल इसे आसानी से लागू नहीं होने देना चाहते। यही कारण है कि विधायकों की खेमेबंदी शुरू हो गई है। सबसे अधिक चिंता कांग्रेस के भीतर है, जिसने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और फूलसिंह बरैया को मैदान में उतारा है। भाजपा ने भी दो ही उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन सत्ता में होने की वजह से उसका अंकगणित फिलहाल मजबूत हो गया है।
आंकड़ों के हिसाब से दो सीट पर बीजेपी की जीत तय है। सत्ता बदलने के साथ सपा-बसपा के साथ वे कई निर्दलीय विधायक भी उसके साथ आ चुके हैं, जो लगभग तीन माह पूर्व सत्ताच्युत हुई कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रहे थे। वहीं कांग्रेस को एक सीट पर संतोष करना पड़ेगा, लेकिन वह अंतिम समय तक दूसरी सीट के लिए भी जोर आजमाइश कर चुनावी रोमांच बनाए रखना चाहती है।
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कांग्रेस का जोर राज्यसभा चुनाव के नतीजे को लेकर राजनीतिक नारे गढऩे पर भी रहेगा, ताकि सूबे की 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए माहौल बनाया जा सके। दरअसल जब राज्यसभा चुनाव का कार्यक्रम घोषित हुआ था तब प्रदेश में कमल नाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। उस समय आंकड़ों के हिसाब से कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी। दो सीटों पर उसकी जीत तय मानी जा रही थी, लेकिन सत्ता बदलने के बाद परिस्थितियां बदल गई।
सत्ताबल के कारण ही कांग्रेस के भीतर प्रत्याशियों को लेकर जोड़-तोड़ शुरू हुई थी। चर्चा थी कि लोकसभा चुनाव हार चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस उम्मीदवार बनना चाहते थे, जबकि दिग्विजय सिंह की दावेदारी मजबूत थी। कांग्रेस संगठन, सरकार और टिकट की यह रार इस कदर बढ़ी कि सिंधिया नाराज होकर कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए। उनके साथ ही उनके 22 समर्थक विधायकों ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया, जिसकी वजह से कमल नाथ की सरकार गिर गई।
इसके साथ ही मध्य प्रदेश में सत्ता और राज्यसभा चुनाव, दोनों के समीकरण बदल गए। बीजेपी ने भी सिंधिया को अपना उम्मीदवार बना दिया। इस तरह शुरुआती दौर में किसी तरह एक सीट तक सिमटती दिख रही भाजपा दो सीटें जीतने की स्थिति में आ गई, जबकि कांग्रेस के खाते में महज एक सीट ही आती दिख रही है। इसके लिए भी उसे विधायकों की रखवाली करनी पड़ रही है।
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कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया मैदान में हैं। यह सीट किसकी होगी, यह अभी तय होना बाकी है। इसके लिए दिग्गी समर्थक और बरैया समर्थक आमने-सामने हैं। गुटों में बंटी कांग्रेस के कई नेता दिग्विजय को घेरने में लगे हैं। उनका तर्क है कि विधानसभा उपचुनाव को देखते हुए दिग्विजय को पार्टी हित में अनुसूचित जाति के बरैया का समर्थन करना चाहिए। पार्टी में दिग्विजय के खिलाफ झंडा उठाने वाले दबाव बनाए हुए हैं। इसी वजह से 17 जून को राज्य के प्रभारी कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक भोपाल आने वाले हैं। मुकुल यहां वरिष्ठ नेताओं और विधायकों से चर्चा करके यह तय करेंगे कि पहली वरीयता में किसे रखना है।
दलीय स्थिति पर नजर डालें तो 230 सदस्यीय विधानसभा में 22 विधायकों के इस्तीफे और दो विधायकों का निधन होने से 24 सीटें रिक्त हैं। इस तरह 206 विधायक ही राज्यसभा के तीन सदस्यों का चुनाव करेंगे। इनमें से बीजेपी के पास 107 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 92 विधायक हैं। इसके अलावा नर्दलीय चार, समाजवादी पार्टी का एक और बहुजन समाज पार्टी के दो विधायक हैं।
प्रथम वरीयता के मतों के आधार पर जीत-हार का फैसला होना है। मौजूदा परिस्थिति में दो सीटें बीजेपी के पाले में साफ जाती नजर आ रही हैं। दरअसल एक सीट जीतने के लिए प्रथम वरीयता में 52 मतों की जरूरत है, जो बीजेपी के पास अपने बलबूते मौजूद है। कांग्रेस का दूसरा उम्मीदवार तभी जीत सकता है, जब उसे चारों निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा विधायक के साथ पांच भाजपा विधायकों के मत मिलें, जो फिलहाल तो दूर की कौड़ी ही नजर आता है।
हालांकि सत्ता में होने के बाद भी बीजेपी सतर्क है। एक एक विधायक से सीधा संपर्क बनाए हुए है, क्योंकि मामला सिर्फ एक सीट जीतने का ही नहीं है। यदि थोड़ी भी गफलत हुई तो राज्यसभा चुनाव के बाद राज्य की राजनीति बदल सकती है। भाजपा के प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह सोलंकी का राज्यसभा चुनकर जाना तय माना जा रहा है।