जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले दिनों वर्चुअल रैली के जरिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया कि वह बिहार विधानसभा चुनाव अपने पुराने एंजेंडे पर ही लड़ेंगे। चुनाव प्रचार के केंद्र में लालू विरोध और प्रवासियों का मुद्दा तो रहेगा ही साथ ही हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और पुलावामा जैसे मुद्दे भी रहेंगे।
भले ही बिहार कोरोना महामारी से जूझ रहा है, पर सियासत की बिसात पर शह-मात का खेल खेलने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपने अस्त्र-शस्त्र के साथ मैदान में उतर गए हैं। शाह अपने पुराने शस्त्र के सहारे ही मैदान में है। अब तक जिन मुद्दों के सहारे बीजेपी चुनाव लड़ती आई है, उसी के सहारे बीजेपी बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
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सात जून को गृहमंत्री अमित शाह ने वर्चुवल रैली के माध्यम से बिहार में चुनाव का आगाज किया। हालांकि इस बार का चुनावी शंखनाद थोड़ा अलग था। बीजेपी ने जब वर्चुअल रैली के जरिए बिहार में नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव का शंखनाद किया तो न धूल उड़ी, न ही ढोल-नगाड़े का शोर सुनाई दिया। न तो गाडिय़ों का काफिला दिखा और न ही लाउडस्पीकर की तेज आवाज सुनाई दी, लेकिन रैली हुई और लोगों तक बात पहुंच गई।
गृहमंत्री अमित शाह दिल्ली में बैठकर बिहार के लाखों लोगों से जुड़े और अपनी बात रखी। उन्होंने लालू यादव पर निशाना साधा तो प्रवासी मजदूरों की भी बात की। साथ ही उन्होंने सरकार के कामकाज की जमकर तारीफ की। इस दौरान शाह पुलवामा, उरी, धारा 370 का जिक्र करना नहीं भूले।
पिछले काफी दिनों से चुप बैठे अमित शाह अब वर्चुअल रैली के माध्यम से सक्रिय हो गए हैं। पिछले दिनों वह बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में वर्चुअल रैली किए। इस दौरान शाह ने मोदी सरकार 2.0 की उपलब्धियों को गिनाया। इन तीनों रैलियों में शाह ने विपक्ष पर तो निशाना साधा ही लेकिन पाकिस्तान व सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र करना नहीं भूले।
इन वर्चुअल रैलियों में शाह ने सीमा पर मुस्तैदी से लेकर राहत पैकेज तक की बात की। उन्होंने कहा कि पहले सीमाओं पर जो हमले होते थे उनका जवाब दिल्ली दरबार नहीं दे पाता था, लेकिन मोदी सरकार ने एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक करके पाकिस्तान को उसके किए की सजा दी है।
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इसके पहले जब एक टीवी को दिए साक्षात्कार में जब उनसे प्रवासी मजदूरों को लेकर सवाल किया गया था तब उन्होंने माना कि हो सकता है कि कोरोना की लड़ाई में उनसे गलती हुई हो लेकिन साथ में उन्होंने पुलवामा, उरी का जिक्र किया।
पिछले एक सप्ताह से शाह सक्रिय हैं और लगातार पुलवामा, उरी हमले का जिक्र कर रहे हैं। पूरा देश कोरोना की महामारी से कराह रहा है और शाह इन पर बात न कर पुलवामा, उरी का जिक्र कर रहे हैं। इस मामले में जानकारों का कहना है कि दरअसल यह शाह का चुनावी एजेंडा है।
वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सुरेन्द्र दूबे कहते हैं-बीजेपी को भलीभांति मालूम है कि पिछले दिनों देश के कई राज्यों से प्रवासी मजदूरों की जो तस्वीरे आई है, उससे बीजेपी की छवि प्रभावित हुई है। सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर बिहार लौटे हैं और बिहार में नवंबर- दिसंबर में विधानसभा चुनाव होना है। जाहिर है बीजेपी इस महामारी के बीच सर्जिकल स्ट्राइक, पुलवामा की बात कर रही है तो यह डैमेज कंट्रोल करने के लिए ही कर रही है, क्योंकि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व सभी मुद्दों पर भारी पड़ती है, ऐसा बीजेपी सोचती है।
वह कहते हैं, लोकसभा चुनाव का जीवंत उदाहरण है। बीजेपी इन्हीं मुद्दों के भरोसे भारी बहुमत से दोबारा सत्ता में आई। इसीलिए बीजेपी इस मुद्दें को नहीं छोड़ रही। एक बड़ा कारण और भी है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मुद्दा हमेशा चुनावों में प्रभावी रहा है।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद भी बिहार में इसी मुद्दे के साथ चुनाव लड़ने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं, यह तो तय है कि बिहार के विधानसभा चुनाव में सबसे अहम मुद्दा प्रवासी मजदूर रहेंगे। विपक्ष इसी मुद्दे के सहारे नीतीश कुमार और बीजेपी को घेरेगी और बीजेपी विपक्ष को चित करने के लिए राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे को उठायेगी।
वह कहते हैं, बीजेपी अपने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे को छोड़ने वाली नहीं है। दरअसल यही इनकी पहचान है। यह अपने पहचान के साथ समझौता नहीं करेगी। भले ही राज्यों के चुनावों में यह प्रयोग उतना सफल नहीं होता है लेेकिन इसे जिंदा रखना बीजेपी का मुख्य मकसद है। इसलिए बिहार के चुनाव प्रचार में एक बार फिर इसकी गूंज आपको सुनाई देगी।
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