जुबिली न्यूज डेस्क
जब से ये खबर आई है कि सरकार कुछ गाइडलाइन के साथ स्कूल खोलने की कवायद में हैं, तब से अभिभावकों की नींद उड़ी हुई है। वह सरकार के इस फैसले के पक्ष में बिल्कुल नहीं है। उनका साफ-साफ मानना है कि जब तक कोरोना का स्थायी इलाज नहीं ढूूढ लिया जाता है तब तक सरकार स्कूल खोलने की न सोचे। सोशल मीडिया पर तो इसके खिलाफ मुहिम चल रहा है।
तालाबंदी की घोषणा के एक हफ्ते पहले से देश के सारे स्कूल-कॉलेज बंद है। अब चूंकि सरकार तालाबंदी के प्रतिबंधों में ढील देते हुए सबकुछ खोल दी है तो इसी कड़ी में कुछ गाइडलाइन के साथ कुछ राज्य सरकारें स्कूल खोलने की तैयारी में लगी हुई है। स्कूल खोलने को लेकर प्राइवेट स्कूलों की भी गतिविधियां तेज हो गयी हैं, लेकिन अभिभावक इसके पक्ष में नहीं है। अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं है।
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सोशल मीडिया पर भी लोग स्कूल खुलने का विरोध कर रहे हैं और साथ ही मुहिम चलाने की अपील भी कर रहे हैं। फेसबुक पर शालिनी श्रीनेत ने भी पोस्ट कर लोगों से विरोध करने की अपील की है। उन्होंने लिखा है- मैं इस भयावह स्थिति में स्कूल खोले जाने के खिलाफ हूँ। स्कूल अगर खुल भी गए तो मैं अपने बच्चों को नहीं भेजूंगी। मुझे लगता है कि ये चिंता सभी अभिभावकों की होगी और उनको विरोध जताना चाहिए।
उन्होंने यह भी लिखा है- बस में चढ़ने से लेकर स्कूल की छुट्टी होने के बीच बच्चों को बहुत सारी स्थितियों से गुजरना पड़ेगा। कैसे पता लगेगा कि बस के हैंडल को वो टच कर रहा है इन्फेक्टेड है या नहीं? जिस सीट पर बैठ रहा है क्या वो ठीक तरीके से सैनिटाइज है? कई घंटे की क्लास के बीच वो पानी पीने और लंच के लिए अपना मास्क और ग्लब्स कई बार हटाएगा लगाएगा। यह संभव नहीं है कि गर्मियों में बच्चे लगातार कई घंटे तक मास्क लगाए रहें और अपना चेहरा टच न करें। वाशरूम जाते समय भी सैनिटाजेशन का इश्यू आएगा। क्या जितनी बार बच्चे जाएंगे वाशरूम का दरवाजा सैनिटाइज किया जाएगा? इन तमाम बातों को लेकर मन बहुत उलझन में है। जाहिर सी बात है कि बच्चों का एक साल बरबाद होगा पर बच्चे स्वस्थ रहेंगे तो अगले साल कवर कर लेंगे।
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शालिनी श्रीनेत के इस पोस्ट पर कई कमेंट आए हैं। सभी ने एक स्वर में इनका समर्थन किया है और सभी ने कहा है कि सरकार को स्कूल नहीं खोलना चाहिए। कमेंट करने वालों ने लिखा है कि वह स्कूल खुलने पर भी अपने बच्चों को नहीं भेजेंगे।
फेसबुक पर ही दूसरी यूजर श्वेत यादव ने तो लोगों से अपील करते हुए कहा है कि सारे इफ- बट छोड़कर इस वक्त एक सुर में स्कूलों के खुलने का विरोध करिये। यह बच्चों को सीधे-सीधे मौत के मुंह में झोंकने जैसा है।
श्वेता ने आगे लिखा है- सरकारों ने जनता को भगवान के भरोसे छोड दिया है, इसलिए स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता से अनुरोध है आप अपने बच्चों को न तो सरकार के भरोसे छोडि़ए, ना ही हॉस्पिटल और ना ही स्कूल के भरोसे। पूरी तबियत के साथ एक हैश टैग चलाते हैं और तब तक इस विषय पर लगातार सोशल मीडिया पर सरकारी मशीनरीज को टैग करते हुए लिखते हैं जब तक ये फैसला वापस न हो जाये।
श्वेता के इस पोस्ट पर बड़ी संख्या में लोगों ने सहमति जताई है। फेसबुक पर ही देवयानी आभा दूबे ने भी ऐसा ही कुछ कहा है। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है- इस कोरोना काल मे जब संक्रमण का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा एवं सावधानियां बरतने पर भी लोग इस संक्रमण से नहीं बच पा रहे तो ऐसे में विद्यलयों को खोलने का निर्णय सरकार का बे सिर पैर का लग रहा।
उन्होंने आगे लिखा है- जब तक कोविड -19 केस खत्म नहीं हो जाता विद्यलयों को बंद रखना ही उचित होगा। पढ़ाई 1 साल नहीं हुई तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बच्चा स्वस्थ होगा तो अगले साल पढ़ लेगा। सरकार का क्या है उसके लिए तो हमारे परिवारों के बच्चे नंबर हैं।
दरअसल अभिभावकों की चिंता यूं ही नहीं है। पिछले दिनों खबर आई थी कि फ्रांस में स्कूल खुलने के एक हफ्ते बाद ही स्कूलों में संक्रमण के 70 मामले सामने आए। इस्राइल में पिछले कुछ दिनों के दौरान ही 220 स्टूडेंट्स और टीचर कोविड संक्रमण की चपेट में आ गए। डेनमार्क और क्रोएशिया ने भी स्कूलों को खोलने के निर्देश हाल ही में दिए हैं। इन देशों का हाल देखकर अभिभावक डरे हुए हैं और वह नहीं चाह रहे कि स्कूल खुले।
फेसबुक यूजर संतोष श्रीवास्तव ने भी अपनी पोस्ट में स्कूल खुलने का विरोध किया है। उन्होंने लिखा है- जिस तरह से कोरोना के केस दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं ऐसे हालात में सरकार को स्कूल और कॉलेज खोलने के बारे मे सोचना भी नहीं चाहिए। यदि सरकार ऐसा सोच रही है तो पुन: इस पर विचार करें।
पिछले दिनों लोकल सर्कल के सर्वे में यह बात सामने आई थी कि देश भर के 76 फीसदी पैरंट्स मानते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग के साथ स्कूलों का संचालन व्यवहारिक नहीं है। इस सर्वे में देश के 224 जिलों के 18 हजार पैरंट्स ने हिस्सा लिया। सर्वे में शामिल 37 प्रतिशत पैरंट्स ने कहा कि जिस जिले में कोरोना के नए मामले 21 दिन तक सामने न आए वहीं पर स्कूलों को खोला जाना चाहिए या फिर जिस स्कूल के 20 किलोमीटर के दायरे में 21 दिन तक कोरोना का कोई नया मामला न आए उन्हें खोला जा सकता है।
यूजर नवीन अग्रवाल ने अपनी पोस्ट में लिखा है- सरकार स्कूल खोलने पर अड़ी है। बच्चों को लेकर सरकार असंवेदनशील रवैया अपना रही है। फिलहाल जब तक कोरोना संकट समाप्त नहीं होता है मैं अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर स्कूल नहीं भेजूंगा।
वंदना प्रसाद ने लिखा है-जब तक वैक्सीन नहीं, तब तक बच्चे घर में। जहां भी भेजा गया है, वहां बच्चों में संक्रमण फैला है। यूजर नीलिमा मिश्रा ने लिखा है-बिल्कुल सही इस वायरस के सॉफ्ट टारगेट तो बच्चे बूढ़े हैं। स्कूल नही खुलने चाहिए।
डॉ दिनेश यादव ने लिखा है-बिल्कुल सहमत हूं। चंडीगढ़ वैसे कहने को तो संघ शासित है केंद्र के निर्देश पर चलता है लेकिन यहां भी अधिकारियों को स्कूल खोलने की बेचैनी है। हर हफ्ते आबोहवा चलने लगती है कि स्कूल खुलने वाले हैं।
यहां तो अधिकारियों की एक कमेटी गठित कर दी गई है जो रिपोर्ट देगी स्कूल खोलने है या नहीं और 33 प्रतिशत अध्यापकों को बुलाना है या नहीं।
फेसबुक पर ही ताज मोहम्मद ने लिखा है-स्कूल खोलने से पहले संसद खोलो। देखो खुद को के तुम रिस्क लेने के लिए कितना तैयार हो। हमारे बच्चे टेस्टिंग किट नहीं हैं…।
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