Tuesday - 29 October 2024 - 12:39 PM

लखनऊ : कोरोना के रहते तो बिल्कुल नहीं भेजेंगे स्कूल

जुबिली न्यूज डेस्क

कोरोना संक्रमण को देखते हुए तालाबंदी के एक सप्ताह पहले ही उत्तर प्रदेश में स्कूल, कॉलेज बंद कर दिए गए थे। कोरोना के आंकड़े बढऩे लगे तो सरकार ने स्कूलों को जून तक के लिए बंद कर दिया। अब चूंकि सरकार ने तालाबंदी के प्रतिबंधों  में ढील देते हुए काफी कुछ खोल दिया है तो स्कूलों को भी खोलने की तैयारी शुरु हो गई है। हालांकि अभी तक सरकार की तरफ से स्कूल कब खोले जायेंगे इसको लेकर कोई आदेश नहीं आया है, पर प्राइवेट स्कूल जुलाई में स्कूल खोलने की तैयारी में लग गए हैं, जिसकी वजह से पैरेंटस की चिंता बढ़ गई हैं।

पिछले कई दिनों से लखनऊ में ऐसी चर्चा है कि जुलाई से स्कूल खोले जायेंगे। इस खबर से पैरेंटस परेशान है। वह किसी भी हाल में अपने बच्चे को स्कूल भेजने को तैयार नहीं है। वह समझ नहीं पा रहे हैं कि किससे गुहार करें। पैरेंटस कई तरह की परेशानी से जूझ रहे हैं। वह अपने बच्चे की हेल्थ को लेकर चिंतित तो हैं ही साथ ही स्कूलों की फीस लेकर भी परेशान हैं। तालाबंदी की वजह से अधिकांश घरों का बजट गड़बड़ा गया है और स्कूल फीस के साथ कोई समझौता करने को तैयार नहीं है।

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दरअसल अभिभावकों की चिंता यूं ही नहीं है। पिछले दिनों खबर आई थी कि फ्रांस में स्कूल खुलने के एक हफ्ते बाद ही स्कूलों में संक्रमण के 70 मामले सामने आए। इस्राइल में पिछले कुछ दिनों के दौरान ही 220 स्टूडेंट्स और टीचर कोविड संक्रमण की चपेट में आ गए। डेनमार्क और क्रोएशिया ने भी स्कूलों को खोलने के निर्देश हाल ही में दिए हैं। इन देशों का हाल देखकर अभिभावक नहीं चाह रहे कि स्कूल खुले। जुबिली पोस्ट ने लखनऊ के कुछ अभिभावकों से इसी मुद्दे पर बात की है कि वह क्या चाहते हैं?

गोमती नगर की ही विवेक खंड की रहने वाली उर्विशी द्विवेदी जोर देकर कहती हैं कि सरकार को प्राइमरी और जूनियर सेक्शन के स्कूल खोलने का बिल्कुल रिस्क नहीं लेना चाहिए। लखनऊ में भी कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है इसलिए यह बहुत ही रिस्की है। बच्चे इतने समझदार नहीं है कि वह सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर पाये।

वह कहती हैं, फिलहाल स्कूल खुलता भी है तो मैं अपने बेटे को नहीं भेजूंगी। स्कूलों को भी गार्जियन से बातचीत करने के बाद ही कोई फैसला करना चाहिए। 

चौक की रहने वाली नेहा अग्रवाल भी स्कूल खोलने के पक्ष में नहीं हैं। वह कहती हैं-कोरोना काल में तो सरकार को स्कूल खोलने का सोचना भी नहीं चाहिए। स्कूल वालों को अपनी स्टाफ की सैलरी की चिंता है तो उसका रास्ता निकाले। गार्जियन से बात करें। बीच का रास्ता निकाले। पूरी फीस की जगह आधी फीस ले। सरकार को सबका सोचना चाहिए। स्कूल वाले अपना बिजनेस चलाने के लिए बच्चों के साथ खिलवाड़ न करें।

गोमती नगर विस्तार में रहने वाली प्रियंका मिश्रा बिल्कुल नहीं चाहती कि जुलाई में स्कूल खुले। वह कहती हैं-स्कूल खुल भी जायेंगे तो भी मैं अपने दोनों बच्चों को स्कूल नहीं भेजूंगी। सरकार को प्राइमरी तक के स्कूल तब तक खोलने की अनुमति नहीं देना चाहिए जब तक कोरोना का स्थायी इलाज नहीं ढूढ लिया जाता है। स्कूलों को तो फीस चाहिए इसलिए वह तो स्कूल खोलेंगे ही। उन्हें बच्चों की हेल्थ से क्या लेना-देना है।

 

इंदिरानगर की ममता राघव और उनके पति अशोक कुमार कहते हैं, स्कूल पहले ऑनलाइन पढ़ाई की नौटंकी किए हुए थे और अब स्कूल खोलने की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें बच्चों की पढ़ाई की नहीं बल्कि अपने बिजनेस की चिंता है।

ममता कहती हैं-आप खुद सोचिए, एक सेक्शन में 60 बच्चे हैं और एक क्लास के तीन सेक्शन से कम किसी स्कूल में नहीं है। शहर के तो एक बड़े नामी स्कूल में तो एक-एक क्लास के दस-दस सेक्शन हैं। ऐसे हालात में ये कैसे स्कूल खोलने की सोच सकते हैं?

वहीं अशोक कहते हैं-छोटे बच्चों के साथ यह पॉसिबल नहीं है। यह सिर्फ एक टार्चर है।

विश्वास खंड की रहने वाली अभिलाषा रस्तोगी कहती है, समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें। सबसे ज्यादा टेंशन स्कूल को लेकर है। हम अभी अपने बच्चों को स्कूल भेजने का रिस्क नहीं ले सकते। हम मानसिक रूप से तैयार नहीं है।

वह कहती हैं, मैं समझ नहीं पा रही हूं कि कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच सरकार ऐसा करने का सोच भी कैसे सकती हैं। सरकार को देखना चाहिए कि फ्रांस और इसराइल में स्कूल खुलने के बाद क्या हुआ।

 

गोमतीनगर की ही रहने वाली संगीता सिंह भी अभिलाषा के बात से इत्तफाक रखती है। वह कहती हैं, मेरे भी संज्ञान में आया है कि जुलाई से स्कूल खुलेंगे। मैं तो तब तक स्कूल नहीं भेजूंगी जब कोरोना का स्थाई इलाज नहीं ढूढ लिया जाता।

वह कहती हैं कि मेरी बेटी थर्ड में पढ़ती है, वह इतनी समझदार नहीं है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर लेगी। सरकार को स्कूल की हेल्थ से ज्यादा बच्चों की हेल्थ की चिंता करनी चाहिए।

अलीगंज में रहने वाली संजना श्रीवास्तव भी स्कूल खुलने के पक्ष में नहीं है। उन्हें भी लग रहा है कि सरकार स्कूल खोलने में जल्दबाजी कर रही है।  संजना कहती हैं, यह बहुत ही कठिन समय है। देश में कोरोना का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है और अब सब कुछ खुल चुका है। हर दिन आने वाले आंकड़े से आप मामले की गंभीरता को समझ सकते हैं। ऐसे में स्कूल खोलने के बारे में तो सोचना भी नहीं चाहिए।

वह कहती हैं, सरकार को स्कूलों में जुटने वाली भीड़ का अंदाजा लगाना चाहिए। कैसे स्कूल सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे। स्कूल कितना भी दावा करें, पर स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर पाना मुश्किल हैं। इसलिए सरकार को प्राइमरी और जूनियर स्कूल खोलने का परमिशन तब तक नहीं देना चाहिए जब तक कोरोना का स्थायी इलाज न ढूढ लिया जाए।

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देश में 76 प्रतिशत अभिभावक नहीं चाहते कोरोना के दौर में खुलें स्कूल

लखनऊ ही नहीं देश के अधिकांश अभिभावक मानते हैं कि कोरोना संक्रमण के बीच स्कूलों को नहीं खोलना चाहिए। देश भर के 76 फीसदी पैरंट्स मानते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग के साथ स्कूलों का संचालन व्यवहारिक नहीं है। यह बात लोकल सर्कल के एक सर्वे में सामने आई है।

इस सर्वे में देश के 224 जिलों के 18 हजार पैरंट्स ने हिस्सा लिया। सर्वे में शामिल 37 प्रतिशत पैरंट्स ने कहा कि जिस जिले में कोरोना के नए मामले 21 दिन तक सामने न आए वहीं पर स्कूलों को खोला जाना चाहिए या फिर जिस स्कूल के 20 किलोमीटर के दायरे में 21 दिन तक कोरोना का कोई नया मामला न आए उन्हें खोला जा सकता है।

16 प्रतिशत ने कहा कि जब तक प्रदेश में कोरोना के मामले आना बंद नहीं होते स्कूल नहीं खोले जाने चाहिए। नए मामले जीरो होने के 21 दिन बाद ही संबंधित राज्यों के स्कूल खुलने चाहिए, जबकि 20 प्रतिशत पैरंट्स मानते हैं कि पूरे देश में जब कोरोना संक्रमण के नए मामले आने बंद हो जाए और इसे तीन हफ्ते हो जाए तभी स्कूलों को खोला जाना चाहिए। सर्वे में शामिल महज 11 प्रतिशत पैरंट्स को ही लगता है कि राज्य सरकार के निर्धारित कलेंडर के मुताबिक ही स्कूल को खुलना चाहिए।

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