कृष्णमोहन झा
विश्व के सबसे शक्तिशाली और संपन्न देश अमेरिका अभी कोरोना की विभीषिका से उबर भी नहीं पाया था कि उस पर अबएक और मुसीबत आ गई है परंतु कोरोना संकट की भांति इस मुसीबत के लिए वह किसी अन्य देश को जिम्मेदार ठहराने की स्थिति में नहीं है।
यह मुसीबत तो अमेरिकी सरकार के ही एक गोरे पुलिस अधिकारी द्वारा एक अश्वेत नागरिक के साथ के साथ की गई जानलेवा बर्बरता के कारण लगभग पूरे देश को झेलना पड़ रही है।
अमेरिका के मिनियापोलिस इलाके में एक अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लायड के बारे में पुलिस को जब यह सूचना मिली कि वह बाजार में 20 डालर का जालीनोट चलाने की कोशिश कर रहा है तो पुलिस उसे पकड़ने के लिए घटनास्थल पहुंचाी परंतु मामले की पूरी जाच पडताल में रुचि दिखाने के बजाय एक पुलिस अधिकारी ने उसे स्वयं ही दंडित करने की ठान ली और उसने जार्ज फ्लायड को न केवल जमीन पर पटक दिया बल्कि उसकी गर्दन को अपने घुटने से दबाकर कई मिनिटों तक बैठा रहा।
ऐसी हालत में जार्ज फ्लायड के मुंह से केवल तीन शब्द निकल पा रहे थे -आई कांट ब्रीद ( मैं सांस नहीं ले सकता) परंतु इससे पुलिस अधिकारी का दिल नहीं पसीजा और नतीजा यह हुआ कि जार्ज की दम घुटने से मृत्यु हो गई, इस घटना का वीडियो वायरस होते ही अश्वेत समुदाय का गुस्सा भरक उठा।
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगर तत्काल इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए वहां मौजूद सभी पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई में रुचि दिखाते तो अश्वेत समुदाय के गुस्से को शांत करने में काफी हद तक सफल हो सकते थे परंतु उन्हें मन में शायद यह डर सता रहा था कि वे अगर अश्वेत समुदाय के प्रति सच्ची सहानुभूति दिखाएंगे तो आगामी राष्ट्रपति चुनाव में श्वेत बहुल मतदाताओं का समर्थन हासिल करने में मुश्किल हो सकती है इसलिये उन्होंने अश्वेत प्रदर्शनकारियो के विरुद सख्ती से पेश आने का निश्चय कर लिया।
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हमेशा ही अपनी बयानबाजी के लिए चर्चा में रहने वाले ट्रंप के भड़काउ बयानों से अश्वेत प्रदर्शनकारी और भटक गए और अमेरिका के अधिकांश राज्यों में उग्र प्रदर्शनकारियों ने आगजनी और तोड़फोड़ शुरू कर दी। जार्ज फ्लायड के साथ पुलिस द्वारा की गई जानलेवा क्रूरता के बाद शुरू हुआ अश्वेतों का आंदोलन घटना के दस दिन बाद भी कमजोर नहीं पडा है तो इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अश्वेतों का गुस्सा शांत करने के लिए उनके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करने में ट्रंप ने बहुत देर कर दी।
मिनियापोलिस से शुरू हुआ अश्वेत आंदोलन अब अमेरिका के 40राज्यो के 100 से अधिक शहरों में फैल चुका है लेकिन ट्रंप ने शुरू में ऐसी कोई पहल नहीं की जिससे अश्वेतआंदोलनकारियों का आक्रोश शांत होने में मदद मिलती लेकिन अश्वेत समुदाय के आंदोलन को वे जिस सख्ती से कुचलनाचाहते थे उसमें उन्हें राज्यों के गवर्नरों का साथ भी नहीं मिला ।
ट्रंप यह चाहते थे किजिन राज्यों मे अश्वेतों का आंदोलन भड़का है वहाँ के गवर्नर अश्वेत प्रदर्शन कारियों के प्रति अधिकतम सख्ती से पेश आएं लेकिन दिक्कत यह है कि अश्वेत आंदोलन दो चार राज्यों तक सीमित नहीं है।जार्ज फ्लायड की गर्दन को एक पुलिस अधिकारी ने जिस तरह अपने घुटने से दबाकरयातना दी उसे बहुत से गवर्नर अनुचित माना इसलिए वे आंदोलनकारियों के साथ वैसीसख्ती के पक्ष में नहीं थे जैसी ट्रंप गवर्नरों से अपेक्षा कर रहे थे ।
इन गवर्नरों का मानना था किइस समय अश्वेत आंदोलनकारियों के साथ जरूरत से ज्यादा सख्ती दिखाई गई तो स्थिति और भयावह रूप ले सकती है। ट्रंप ने गवर्नरों के इस रुख से खीज कर उन्हें मूर्ख तक कह दिया।उधर. ट्रंप को इस नाजुक समय में चुप रहने की सलाह मिलने लगीै ।ह्युस्टन के पुलिस प्रमुख न तो ट्रंप सेयह तक कह दिया कि वे अगर अच्छी सलाह नहीं दे सकते तो उनका चुप रहना ही बेहतर है , परंतु जो ट्रंप अभी तक अपनी बयानबाजी के लिए दुनिया भर में एक अलग ही पहचान बना चुके हैं वे इस मौके काचुनावी लाभ लेने की मंशा से बहुसंख्यक श्वेत आबादीको खुश करनेे वाले बयान देने से कैसे चूक सकते थे।
ट्रंप ने तो प्रदर्शनकारियोंपर कुत्ते छोडने की धमकी दे डाली वास्तव में ट्रंप ने स्थिति की नजाकत को समझने में देर कर दी ।हालांकि बाद में जार्ज फ्लायड की नृशंस हत्या के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध ऐसी कठोर धारणाओं के अंतर्गत प्रकरण दर्ज कर लिया गया जिनमें दोष सिद्ध हो जाने पर उन्हें 35 तक की सजा हो सकती है परंतु ट्रंप को अब अश्वेत समुदाय को यह भरोसा भी दिलाना होगा कि देश में उनके लिए भी श्वेतबहुल आबादी के बराबर सम्मान और सुरक्षा उपलब्ध कराने में वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
गौर तलब है कि अमेरिका की कुल आबादी में केवल आठ प्रतिशत अश्वेत हैं। आज भी देश में उन्हें नस्लीय भेदभाव का शिकार बनाया जाता है।अमेरिकी समाज में उन्हें वह सम्मान, प्रतिष्ठा और सुरक्षा हासिल नहीं है जो बहुसंख्यक श्वेत आबादी को मिलती है।
अमेरिका में आज भी उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है परंतु ओलंपिक खेलों में अमेरिका के लिए पदक हासिल करने में यही अश्वेत खिलाड़ी अग्रणी रहते हैं ।अश्वेत लोगों को जिस तरह सामाजिक, आर्थिक ,शारीरिक औरमानसिक उत्पीड़न का शिकार बनाया जाता है वह यहां कोई बडी बात नहीं है ।इसके फलस्वरूप अश्वेत समुदाय में समाया असंतोष समय समय पर उग्र रूप में सामने आता रहा है।
गौरतलब है लगभग पांच दशक पूर्व जब देश में अश्वेत समुदाय के एक लोकप्रिय नेता मार्टिन लूथर किंग की हत्या कर दी गई थी तब भी उसके विरोध में अश्वेत समुदाय के लोग लाखों की संख्या में सडकों पर उतर पर उतर आए थे ।उस समय भी देश में एक माह तक उग्र प्रदर्शन हुए थे ।मार्टिन लूथर किंग की हत्या दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गई थी ।
वही स्थिति एक बार फिर बनती दिखाई दे रही है। अश्वेत समुदाय के आक्रोश से सख्ती से निपटने की धमकी देने वाले डोनाल्ड ट्रंप को भी यह समझ में आने लगा है कि अब उन्हें आंदोलनकारियों के साथ नरमी से पेश आना पड़ेगा नहीं तो उनकी अपनी दिक्कतें बढ़ सकती हैं शायद इसी स्थिति का अनुमान लगाकर डोनाल्ड ट्रंप अब संभल कर बयान दे रहे हैं।
वे अब यह सिद्ध करने की कोशिश में जुट गए हैं कि अमेरिका में दासप्रथा को समाप्त करने का ऐतिहासिक गौरव हासिल करने वाले एक भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्राहम लिंकन के बाद अश्वेतसमुदाय की भलाई के सबसे ज्यादा काम उनकी सरकार ने ही किए हैं । ट्रंप की छोटी बेटी ने देश में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन का समर्थन किया है।
अश्वेत समुदाय के आक्रोश को शांत करने के लिए ट्रंप प्रशासन ने जार्ज फ्लायड के साथ नृशंसता करने के आरोपी चारों पुलिस अधिकारियों के विरुद थर्ड डिग्री मर्डर के अलावा भी कई धाराओं में मुकदमा चलाने का फैसला किया है ।
अमेरिका में अश्वेत नागरिक के साथ पुलिस द्वारा की गई क्रूरता के विरोध में दुनिया के कई देशों में प्रदर्शन किए जा रहे हैं जिनमें ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, तुर्की, कनाडा आदि देश शामिल हैं ।
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अब डोनाल्ड ट्रंप को अश्वेत समुदाय का भरोसा जीतकर सारी दुनिया के सामने यह साबित करने की कठिन चुनौती है कि अमेरिका में नस्लीय भेदभाव और जातीय हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है परंतु यह इतना आसान भी नहीं है ।वे भले ही यह दावा करें कि अब्राहम लिंकन के बाद केवल उनकी सरकार ने ही अश्वेत समुदाय की भलाई के सबसे ज्यादा काम किए हैं और वे अश्वेत समुदाय के सबसे बड़े हितैषी हैं परंतुअगर यही सच होता तो एक गोरे पुलिस अधिकारी ने एक अश्वेत नागरिक की गर्दन को घुटने से दबाकर उसकी हत्या करने का दुस्साहस नहीं किया होता।
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)