प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार
आज पर्यावरण दिवस है ! पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है,”परि“और “आवरण “ जिसमें “परि“का अर्थ है हमारे आसपास अर्थात जोवातावरण हमारे चारों ओर है। ‘आवरण‘ का अर्थ है जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है।
पर्यावरण जलवायु, स्वच्छता, प्रदूषण तथा वृक्ष आदि सभी को मिलाकर बनता है, और ये सभी हमारे दैनिक जीवन से सीधा संबंध रखते हैं और उसे प्रभावित करते हैं ।
भारत में पर्यावरण की कई समस्या है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, कचरा, और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषण भारत के लिए चुनौतियाँ हैं।
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व आर्थिक विकास और शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, बड़े पैमाने पर औद्योगीक विस्तार तथा तीव्रीकरण, तथा जंगलों का नष्ट होना इत्यादि भारत में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के प्रमुख कारण हैं।
प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों में वन और कृषि-भूमिक्षरण, संसाधन रिक्तीकरण (पानी, खनिज, वन, रेत, पत्थर आदि), पर्यावरण क्षरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, जैव विविधता में कमी, पारिस्थितिकी प्रणालियों में लचीलेपन की कमी, गरीबों के लिए आजीविका सुरक्षा शामिल हैं।
भारत की आबादी का एक बड़ा भाग हालाँकि गरीबी और निरक्षरता से ग्रस्त है फिर भी पारिस्थितिकी के प्रति उनकी जानकारी ने हमारी वनस्पति और वन्य जीवों को समृद्ध बनाने में योगदान किया है। उदाहरण के लिये राजस्थान के गाँवों में बिश्नोई लोग अपने क्षेत्र में शिकार करने या वृक्षों को काटने की अनुमति नहीं देते।
आज से पाँच महीने पहले, कोई नहीं जानता था कि वातावरण मे एक वायरस SARS-CoV-2 मौजूद है। अब यह वायरस लगभग हर देश में फैल गया है ! भारतवर्ष मे 5 जून तक 22,6770लोग संक्रमित हो चुके हैं , 6,348 की मृत्य हो चुकी , लेकिन सौभाग्यवश 109,462 व्यक्ति ठीक भी हो चुके हैं जिनके बारे में हम जानते हैं, और बहुत से जिन्हें हम नहीं जानते हैं। आज विश्व की अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था , एकदम चरमरा गए है। आज हमको भरे हुए अस्पताल मिलते हैं और दूसरी ओर सार्वजनिक स्थान खाली मिलते हैं ! इस वाइरस ने लोगों को उनके कार्यस्थलों और उनके दोस्तों से अलग कर दिया है। अधिकांश जीवित लोगों ने इसके पहले कभी ऐसा अलगाव पक्ष नहीं देखा।
कोविद -19: लॉकडाउन के बाद से भारत में 4 अविश्वसनीय पर्यावरणीय परिवर्तन देखे गए
कोविद -19 लॉकडाउन का पर्यावरण पर प्रभाव जीवित इतिहास में पहले कभी नहीं देखा गया है! कोविद -19 लॉकडाउन के बाद भारत में सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय परिवर्तन देखने को मिले हैं।
वायु की गुणवत्ता में सुधार
WHO द्वारा मई 2014 में नई दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में स्थान दिया गया था। भारत की राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार सामान्य वायु गुणवत्ता 200 हुआ करती थी। जब प्रदूषण का स्तर अपने चरम पर पहुंच गया, तो प्रदूषण का स्तर बढ़ गया। 900 और कभी-कभी, मापने योग्य पैमाने से दूर।
जबकि 200 स्वयं विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा समझाए गए असुरक्षित स्तर से 25 प्रतिशत अधिक है, लेकिन जबलॉकडाउन के समय दिल्ली की 11 मिलियन पंजीकृत कारों को सड़कों और कारखानों से निकाल लिया गया और निर्माण को रोक दिया गया, तो AQI का स्तर नियमित रूप से 20 से नीचे गिर गया है। आसमान अचानक एक दुर्लभ, भेदी नीला दिखने लगा ! पक्षियों की आवाज़ सुनाई पड़ने लगी !
गंगा डॉल्फ़िन
गंभीर रूप से संकटग्रस्त, दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फ़िन भी गंगा डॉल्फ़िन के रूप में जाना जाता है ! 30 साल बाद गंगा नदी मेंडॉल्फ़िन वापस देखीगयी !पानी में प्रदूषण कम होने के कारण, दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फ़िन को कोलकाता के विभिन्न गंगा घाटों पर देखा गया है।
मुंबई के राजहंस
कोविद -19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन के परिणामस्वरूप, नवी मुंबई के शहर में दसियों हजार राजहंस एकत्र हुए हैं। पक्षी आमतौर पर हर साल क्षेत्र में पलायन करते हैं, लेकिन निवासियों ने बताया है कि इस साल उन्होंने इतने संख्या में भारी वृद्धि देखी है।
कार्बन उत्सर्जन मे गिरावट
उद्योग , परिवहन नेटवर्क और व्यवसाय बंद हो गए हैं, इसने कार्बन उत्सर्जन में अचानक गिरावट ला दी है। पिछले साल इस समय की तुलना में, वायरस को रोकने के उपायों के कारण न्यूयॉर्क में प्रदूषण का स्तर लगभग 50% कम हो गया है।
चीन में, वर्ष की शुरुआत में उत्सर्जन 25% गिर गया क्योंकि लोगों को घर पर रहने का निर्देश दिया गया था, कारखाने बंद हो गए और कोयले का उपयोग 2019 की अंतिम तिमाही के बाद से चीन के छह सबसे बड़े बिजली संयंत्रों में 40% तक गिर गया।
अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौती
कोरोनोवायरस के कारण आने वाले समय मे एक महत्वपूर्ण चुनौती आने वाली है !बहुत जल्द ही चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन एक बड़ा मुद्दा हो सकता है। चिकित्सा स्वास्थ्य संगठनों अपशिष्ट प्रबंधन कंपनियों ने कोरोनोवायरस परिशोधन सेवाओं में पहले ही कदम उठा लिया है, यह जल्द ही समाधान खोजने के लिए सरकारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो रहा है। इस दौरान, अपने चेहरे के मुखौटे और अन्य चिकित्सा अपशिष्ट को त्यागते हुए नियमों का पालन करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
लेकिन एक वैश्विक महामारी जो लोगों के जीवन का दावा कर रही है, निश्चित रूप से इसे पर्यावरणीय परिवर्तन लाने के तरीके के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
इसके लिए हम नागरिक गण को अपने दायित्व को समझते हुए पर्यावरण को न्यूनतम नुकसान पहुंचाने के लिए जागरूक होना पड़ेगा तथा इसके लिए भी जागरूक होना पड़ेगा कि कोई व्यक्ति या औद्योगिक प्रतिष्ठान यदि पर्यावरण को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचा रहा है तो उसके विरुद्ध हमें एक राजनीतिक दबाव समूह के रूप में प्रकट होना पड़ेगा तथा आवश्यकता पड़े तो माननीय न्यायालय अथवा पर्यावरण के लिए बने ट्रिब्यूनल में जनहित याचिकाएं भी दायर करनी पड़े ! हमे यह कार्य भी अभिलंब पर्यावरण को बचाने के लिए समेकित एवं समुचित प्रयास करने होंगे !
पर्यावरण संरक्षण के लिए नागरिकों के दायित्वों की एक व्यवहारिक संहिता का सृजन करना आज की महती आवश्यकता है और इसके लिए एक विशेषज्ञों का, सामान्य नागरिकों का तथा औद्योगिक प्रतिष्ठानों से जुड़े लोगों का एक समूह गठित करना होगा जो इस संहिता के निर्माण में योगदान दें तथा समय-समय पर इसका यथा संशोधन भी करता रहे हालांकि विश्वव्यापी गाइडलाइंस उपलब्ध हैं तथा सरकारों ने भी निर्देश प्रदान किए हुए हैं किंतु दुर्भाग्य से यह प्रणाली निरर्थक साबित होती जा रही है या हम कह सकते हैं की इस प्रक्रिया के फल स्वरुप भी पर्यावरण का संरक्षण संभव नहीं हो रहा है।
पर्यावरण संरक्षण आज सर्वोच्च प्राथमिकता का विषय है जिस पर किए गए समझौते हम सभी के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं अतः इस परिपेक्ष में नियमों की पालना कड़ाई से कराए जाना सुनिश्चित किया जाना अत्यंत आवश्यक है !
(लेखक श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेड़ा (राजस्थान) के कुलपति हैं तथा कानपुर विश्वविद्यालय व गोरखपुर विश्वविद्यालय (उतरप्रदेश) के पूर्व कुलपति एवं भूतपूर्व विभागाध्यक्ष , प्राणी शस्त्र विभाग , राजस्थान विश्वविद्यालय , जयपुर रहे हैं)