Sunday - 27 October 2024 - 11:24 PM

मिसाल : एक सांसद ने सारा हवाई टिकट बिहारी मजदूरों के नाम किया !

चंद्र भूषण

गरीब बिहारी प्रवासी मजदूरों के प्रति दर्द ऐसा छलका कि एक सांसद ने अपने सांसद कोटे से पूरे एक साल तक मिलने वाला कुल 34 हवाई जहाज का टिकट (कूपन) उनके नाम कर दिया। इस सांसद का नाम है आम आदमी पार्टी कोटे से राज्यसभा पहुंचे संजय सिंह। वह पार्टी के बिहार प्रदेश प्रभारी भी हैं। संभवतः आजाद भारत के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी सांसद ने अपने कोटे से मिलने वाले एक वर्ष का पूरा हवाई जहाज कूपन बिहार के प्रवासी मजदूरों को पटना भेजने में लगा दिया।

उल्लेखनीय है कि लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों को उनके क्षेत्र में आने जाने या अन्य संसदीय कार्यों के लिए पूरे एक वित्तीय वर्ष में भारत सरकार की ओर से कुल 34 हवाई जहाज के कूपन दिए जाते हैं।

बुधवार की शाम सांसद संजय सिंह विस्तारा एयरलाइन से कुल 34 मजदूरों को दिल्ली से अपने साथ लेकर पटना एयरपोर्ट पर उतरे। मूल रूप से सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले केजरीवाल टीम के विश्वस्त साथी संजय सिंह के बारे में मशहूर है कि उन्होंने “पटरी से लेकर संसद” की चौखट तक संघर्षमय यात्रा की।

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छात्र जीवन से ही वह अपने शहर में सड़क किनारे दुकान, खोमचा या पटरी लगाने वाले गरीबों की लड़ाई मजबूती से लड़े। इसलिए कोरोना महामारी के दौरान दिल्ली में फंसे गरीब बिहारी मजदूरों के दर्द को देखा नहीं गया और उन्होंने अपनी सुख-सुविधा का त्याग करते हुए देश के सभी माननीय सांसदों-विधायकों या सार्वजनिक जीवन में सरकारी पैसों पर ऐश करने वालों के लिए एक मिसाल कायम की है।

अगर लोकसभा और राज्यसभा के सारे सांसदों को मिला लें तो कुल 790 सांसद हैं और वह पूरे साल की सुख- सुविधा त्यागकर अपने सभी हवाई यात्रा के टिकट ( कूपन) इन गरीबों पर न्योछावर कर देते तो कम से कम 26,860 असहाय प्रवासी मजदूरों- कामगारों का कल्याण हो जाता और कई मजदूर पैदल रास्ते या ट्रेन की पटरी पर मरने के लिए विवश नहीं होते।

उल्लेखनीय है कि सांसद संजय सिंह ने अपने स्तर से अब तक 32 बसों से प्रवासी मजदूरों को बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भिजवाने का काम किया। इसके अतिरिक्त दिल्ली की केजरीवाल सरकार के सहयोग से सवा लाख से ऊपर बिहारी मजदूरों को अपने गांव ट्रेनों से भिजवाने का प्रबंध किया। साथ ही साथ करीब 30,000 लोगों को सूखा राशन और 18 दिन सामुदायिक किचन भी चलवाया, जिसमें प्रतिदिन 6 से 7000 लोगों को निःशुल्क पका खाना खिलाया जाता था।

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