न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली। लॉकडाउन ने दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और दिग्गज कंपनियों की हालत पतली कर दी है। लेकिन इसकी सबसे अधिक मार भारत के छोटे किराना दुकानदारों पर पड़ी है।
देश के करीब सात लाख छोटी किराना की दुकानें अब बंदी के कगार पहुंच चुकी हैं। यह दुकानें घरों या गलियों में हैं। इसमें करोड़ों लोगों को रोजगार मिला है और उनकी रोजी- रोटी इस पर टिकी है।
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एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब एक करोड़ छोटे किराना दुकानदार हैं। इसमें से करीब छह से सात फीसदी सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं यानी इनके पास आने- जाने के लिए अपना कोई साधन नहीं है। सार्वजनिक परिवहन नहीं चलने से यह अपनी दुकान पर जाने में सक्षम नहीं हैं।
ऐसे में पिछले दो माह से अधिक समय से इनकी दुकानें बंद पड़ी हैं। लॉकडाउन हटने के बाद भी छोटे किराना दुकानदारों के लिए राह आसान नहीं है। उद्योग के जानकारों का कहना है कि नकदी की किल्लत और ग्राहकों की कमी इनके लिए बड़ी चुनौती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आमतौर पर किराना दुकानदारों को थोक व्यापारी या उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियां सात से 21 दिन यानी दो से तीन हफ्ते की उधारी पर माल देती हैं।
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अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता होने से सभी डरे हुए हैं जिसकी वजह से उधार पर माल मिलना मुश्किल होगा। साथ ही इन दुकानों के ज्यादातर खरीदार प्रवासी थे जो अपने घर जा चुके हैं। ऐसे में इन दुकानों का दोबारा खुलना बहुत मुश्किल होगा। छोटी किराना दुकाने बंद होने से बड़ी कंपनियों की परेशानियां भी बढ़ने वाली हैं।
निल्सन की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुल किराना उत्पादों की बिक्री में मूल्य के हिसाब से छोटी किराना दुकानों की हिस्सेदारी 20 फीसदी है।
खुदरा कारोबारियों के संगठन कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि इन दुकानों पर दूध, ब्रेड, बिस्किट, साबून, शैंपू और शीतय पेय पदार्थों के साथ रोजमर्रा के कई उत्पाद बिकते हैं जो ज्यादातर बड़ी कंपनियां बनाती हैं।
ऐसे में छोटी किराना दुकानें बंद होने से बड़ी कंपनियों पर भी असर पड़ना तय है। खंडेलवाल का कहना है कि चुनौती जितनी बड़ी दिख रही है उससे कहीं अधिक गंभीर है।
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