Sunday - 27 October 2024 - 10:02 PM

मुद्दे हैं फिर भी मोदी को टक्कर क्यों नहीं दे पा रहा है विपक्ष

न्यूज डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल का पहला साल आज यानी 30 मई को पूरा कर रहे हैं। इस अवसर पर उन्होंने देशवासियों को एक खुला पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया है। उन्होंने अपने पत्र में देशवासियों को धन्यवाद भी किया है और आशीर्वाद भी मांगा है।

देश की सत्ता में रहते हुए मोदी को छह साल हो गए हैं। इन छह सालों में मोदी को यह बखूबी एहसास है कि वह अब भी अजेय हैं। दरअसल उनको यह विश्वास कमजोर विपक्ष ने दिया है। तमाम मुद्दों के बावजूद विपक्ष मोदी को टक्कर देने में नाकाम साबित हो रही है। केंद्र हो या बीजेपी शासित राज्य, कहीं भी विपक्ष बीजेपी का मुकाबला नहीं कर पा रही है।

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पहली सालगिरह के अवसर पर मोदी ने भावुक पत्र जनता के लिए लिखा। इस पत्र को जनता के साथ-साथ विपक्ष भी पढ़ रहा है। अब पत्र के माध्यम से विपक्ष ट्विटर पर मोदी को घेरने की तैयारी करेगा, जबकि बीजेपी बीजेपी दूसरे कार्यकाल की पहली सालगिरह मनाने के लिए कई दिनों से तैयारियों में जुटी हुई थी और विपक्ष उनकी तैयारियां देख रहा था। विपक्ष के पास इस दिन के लिए कोई एजेंडा ही नहीं है।

मोदी के सत्ता के आने के बाद से विपक्ष के किसी भी नेता को वो रुतबा नहीं मिल पाया है। विपक्ष दिन-प्रतिदिन कमजोर ही हुआ है। हालांकि कांग्रेस मोदी के दूसरे कार्यकाल में महाराष्ट्र और झारखंड की सत्ता तक पहुंची। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस का कोई मुख्यमंत्री नहीं है लेकिन बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने में कामयाब रही।

कांग्रेस कोशिश तो बहुत कर रही है, पर उसे कामयाबी नहीं मिल रही है। जिस मुद्दे को कांग्रेस या ये कहें राहुल गांधी जोर-शोर उठाये, बीजेपी ने बड़ी ही कार्यकुशलता से उसे अपने पक्ष में कर लिया या उसी मुद्दे के सहारे कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।

हालांकि अब भी राहुल गांधी को उम्मीद है कि वो पीएम मोदी को कड़ी चुनौती देंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि बीजेपी की सरकार कई समस्याओं को ठीक से निपटाने में नाकाम रही है।

लेकिन मोदी सरकार राजनीतिक मोर्चे पर समस्याओं से नहीं जूझ रही है, इसलिए राहुल गांधी या कांग्रेस के किसी नेता के लिए उन पर भारी पडऩा आसान नहीं है। हां अलबत्ता मोदी सरकार आर्थिक मोर्चे पर समस्याओं में घिरी हुई है और ये समस्याएं बहुत ही जटिल हैं।

जानकारों का कहना है कि आर्थिक मोर्चे पर ये समस्याएं इतनी बड़ी हैं कि पीएम मोदी चाहकर भी कोई निदान नहीं ढूंढ सकते।
प्रधानमंत्री के सामने जो नई चुनौतियां और उनके कारक हैं वो उनकी व्यक्तिगत सीमाएं और मजबूरियों के कारण नहीं हैं।

अच्छे दिन से शुरु हुआ सफर आत्मनिर्भर तक पहुंचा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2014 में अच्छे दिन के वादे के जरिए सत्ता पर काबिज हुए। आज छह साल बाद 2020 में वह आत्मनिर्भर का नारा दे रहे हैं। और सबसे बड़ी बात तमाम परेशानी और दुश्वारी झेल रही जनता खुशी-खुशी इस नारे को सार्थक रूप देने में जुट गई है।

मोदी को अब भी एक मजबूत और लोकप्रिय नेता माना जा रहा है.। उनकी ऐसी छवि बनी है कि वो कड़े फैसले लेने में हिचकते नहीं हैं और नई लीक बनाने की भी कोशिश करते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक मोदी के बारे में कहते हैं कि मोदी इस बात से भी बेफिक्र रहते हैं कि जिस राह पर चलने का फैसला किया है वो कहां जाएगी और क्या नतीजे मिलेंगे।

अपने दूसरे कार्यकाल के बाकी साल पीएम मोदी इन छवियों के साथ आगे बढ़ते दिखेंगे, जिसकी झांकी पहले साल में दिख चुकी है। अनुच्छेद 370 हो या ट्रिपल तलाक, उन्होंने किसी की परवाह न करते हुए इसे खत्म किया।

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एक मास्टरस्ट्रोक के जरिए कश्मीर कानूनी और प्रशासनिक स्तर पर पूरे देश में समाहित हो गया। लेकिन अनुच्छेद 370 को हटाने भर से हर जगह न तो चुनाव में जीत मिलने लगी और न ही जम्मू और कश्मीर में हमेशा के लिए इस्लामिक चरमपंथी हमले खत्म हो गए।

इसके साथ ही मोदी सरकार ने तीन तलाक को लेकर भी अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। तीन तलाक खत्म होने से मुस्लिम महिलाओं को राहत मिली क्योंकि पुरुष शादी तोडऩे में मनमानी करते थे।

तीन तलाक बिल में गैर -बीजेपी पार्टियों का वो चेहरा भी दिखा जिसमें उन्होंने लैंगिक समानता से ज़्यादा वोटबैंक को तवज्जो दी। बीजेपी ने यह संदेश भी दे दिया है कि उसका अगला कदम यूनिफॉर्म सिविल कोड है।

इसके साथ ही मोदी सरकार ने आतंकवाद निरोधी कानून को अनलॉफुल एक्टिविटिज (प्रिवेंशन) एक्ट में संशोधन कर और कड़ा किया। इसके तहत अब किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है, जो कि कई देशों में पहले से ही ऐसा किया जाता था।

2019 के खत्म होते-होते सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर पर भी फैसला दे दिया। अयोध्या में जहां मस्जिद थी अब वहां मस्जिद नहीं रहेगी और राम मंदिर बनेगा।

बाबरी मस्जिद 1992 में लालकृष्ण आडावाणी की अगुआई वाली बीजेपी के अभियान में तोड़ी गई थी। बीजेपी को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वो बाबरी विध्वंस मामले में दोषमुक्त हो गई है और अदालत के फैसले को मुसलमानों के बड़े तबके ने स्वीकार कर लिया है।

सीएए, एनआरसी और एनपीआर

मोदी सरकार को नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। सीएए के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रवाधान है।

सीएए को लेकर भारत के मुसलमानों के मन में कई तरह की आशंकाएं रहीं और इसके विरोध में प्रदर्शन भी हुए। दिल्ली का शाहीन बाग तो सीएए विरोधी प्रदर्शन का प्रतीक बन गया।

सीएए के साथ-साथ एनपीआर यानी नेशनल पॉप्युलेशन रजिस्टर और एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर फोर सिटिजन्स का मसला आया। एनआरसी के कारण असम में बड़ी संख्या में लोग परेशान हुए। सीएए को लेकर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से लेकर दिल्ली के जामिया तक में हिंसा हुई।

दिल्ली में सांप्रदायिक दंगा

सीएए और एनआरसी को लेकर हुआ विवाद दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे में तब्दील हो गई। इस दंगे में 50 से ज़्यादा हिन्दू और मुसलमान मारे गए।

यह दंगा मोदी सरकार के लिए किसी धब्बे की तरह रहा जो अब तक किसी भी तरह की सांप्रदायिक दंगा नहीं होने देने का दावा करती थी। हालांकि इससे पहले लिंचिंग के कई वाकये सामने आए थे।

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कई जगह मोदी का जादू नहीं चला जिसकी वजह से बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी। झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार मिली।

इसके अलावा महाराष्ट्र में 30 साल पुरानी सहयोगी शिव सेना बीजेपी से अलग हो गई और उसने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। महाराष्ट्र में लंबे समय तक सरकार बनाने को लेकर सियासी नाटक चलता रहा और इसका अंत केंद्र सरकार की उस छवि के साथ हुआ कि सत्ता हासिल करने के लिए राज्यपाल को मोहरा बनाया गया।

साहसिक आर्थिक फैसले

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में दौरान सबसे साहसिकआर्थिक कदम रहा 10 सरकारी बैंकों का बड़े बैंकों में विलय। इससे वर्कफोर्स का सही इस्तेमाल हुआ और खर्चों में भी कटौती हुई। लेकिन सरकार के इन तमाम कामों के असर पर वैश्विक आर्थिक संकट के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में आई परेशानी भारी पड़ी।

2020 की शुरुआत और मोदी सरकार के आम बजट से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि अर्थव्यवस्था में कोई क्रांतिकारी सुधार होने जा रहा है। मध्य वर्ग में सरकार की नीतियों को लेकर निराशा रही। मोदी सरकार के लिए आर्थिक चुनौतियां लगातार बड़ी हो रही हैं।

कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के फैलाव को रोकने के लिए लागू लॉडाउन से अर्थव्यवस्था की हालत और बिगड़ी।

कोरोना महामारी और तालाबंदी

कोरोना महामारी के संक्रमण को देखते हुए चार घंटे की नोटिस पर पीएम मोदी ने 25 मार्च को देशव्यापी तालाबंदी का ऐलान कर दिया। दो माह की तालाबंदी के बाद भी देश में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं।

आज की तारीख में भारत कोरोना से संक्रमितों की कुल संख्या 173,491 और मृतकों की संख्या 4980 हो गई है। एक ओर जहां ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड ने भारत में हुई तालाबंदी की सराहना की तो वहीं तालाबंदी के कारण उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीगढ़, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के प्रवासी मजदूरों की भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। यह इस सरकार को असहज करने वाली रही।

प्रवासी मजदूरों की बेबसी

तालाबंदी के ऐलान के दूसरे दिन से देश के महानगरों से प्रवासी मजदूरों का जो पलायन शुरु हुआ वह आज भी जारी है। सैकड़ों किलोमीटर की दूरी भूखे-प्यासे मजदूर पैदल और साइकिल से जाते दिखे। वो किसी तरह से अपने गांव पहुंचना चाहते हैं।

मोदी सरकार इन मजदूरों की बेबसी को लेकर घिरी कि उसने तालाबंदी को लेकर कोई तैयारी नहीं की थी। इन तमाम सवालों और परेशानियों की बीच मोदी सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की। वित्त मंत्री सीतारमण ने पांच दिनों तक हर दिन तक पैकेज की रकम के आवंटन को लेकर प्रेस कांफ्रेंस  की।

अब सरकार के सामने चुनौती है कि जो पैकेज के जिस आवंटन की बात की है वो जमीन पर सच साबित हो। वैसे मोदी सरकार अब भी बड़े सुधारों, संरचनात्मक बदलाव और कारोबार की सुगमता में भरोसा करती है।

2019 लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में बीजेपी ने 2022 में भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने पर पार्टी के 75 माइलस्टोन की बात कही थी। अब अगर मोदी सरकार वाकई 75 माइलस्टोन हासिल करने में कामयाब रहती है तो भारत के प्रगति की कहानी कोरोना वायरस की महामारी पर भारी पड़ेगी।

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