रूबी सरकार
कोरोना महामारी का मुकाबला करने के लिए देशभर के लोगों को लगभग 10 सप्ताह से महामारी से बचाने के लिए घरों में बैठाये गए। इसके साथ ही श्रमजीवी भारतीयों का भयानक सच दुनिया के सामने उजागर हो गया। रोज कमाने-खाने वाले लगभग 8 करोड़ स्त्री-पुरुष बेघर होने को मजबूर हुए। ये मजदूर शहरों से अपने गांव की ओर बेतहाशा भागते दिखे। उनकी दुनिया में अंधेरा छा गया है। उनका मेहनताना, उनके कार्य, उनका बोनस, पेंशन सब कुछ खत्म हो गया। लगभग दो माह बाद भी मजदूरों की घर वापसी का सिलसिला जारी है और स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा इन मजदूरों के लिए परमार्थ भी।
परमार्थ समाज सेवी संस्थान के सचिव डॉ संजय सिंह जो लगातार दो-ढाई महीनों से अपने साथियों के साथ मजदूरों और राहगीरों को भोजन एवं अन्य जरूरत की सामग्रियां उपलब्ध कराकर उन्हें राहत पहुंचाने के काम में लगे है, बताते हैं, कि जब वे बुंदेलखंड के मऊरानीपुर से आगे नोगांव, छतरपुर की ओर जा रहे थे। धसान नदी का पुल पार करते ही अचानक एक दृश्य उन्हें दिखाई दिया, जिसमें सड़क किनारे रोडवेज की एक बस खड़ी थी, जिससे लगभग 60 मजदूर उतरकर एक ट्राली में बैठने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे थे। पता चला कि बस चालक ने आगे जाने से मना कर दिया है। इस सूरत में छतरपुर जा रहे मजदूर घर पहुंचने के लिए ट्राली का सहारा लेना चाहते थे। वे किसी तरह अपने गांव पहुंचने को आतुर थे। उन्होंने बताया, कि सरकार की तमाम व्यवस्थाओं के बाद भी मजदूरों का कष्ट खत्म होने का नाम नही ले रहा है। आंखों के सामने रोज विचलित कर देने वाली दुर्घटनाएं आ ही जाती है।
पिछले दिनों छतरपुर के पास बक्स्वाहा इलाके में ट्रक पलट गया, पाइप से भरे हुए ट्रक में 30 से ज्यादा मजदूर थे, जिनमें से 6 की मौत हो गई, जबकि 13 को घायलावस्था में बंडा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करवाया गया। ये सभी महाराष्ट्र से उत्तरप्रदेश लौट रहे थे। हादसा छतरपुर के बक्स्वाहा में हुआ, इसलिए मध्यप्रदेश सरकार के प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट ने अधिकारियों को तुरंत प्रभावी कदम उठाने की हिदायत दी। छतरपुर में ही एक अन्य हादसे में 13 मजदूर घायल हो गये।
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कोविड-19 के संक्रमण काल में विचलित करने वाली दुर्घटनाओं के साथ-साथ कुछ सांप्रदायिक सौहार्द की मार्मिक घटनाएं भी सामने आयी। जब अमृत और फारूख एक ट्रक से सूरत से उत्तरप्रदेश जा रहे थे। रास्ते में अमृत बीमार पड़ गया और अन्य मजदूरों ने संक्रमण के डर से उसे आधी रात को ही रास्ते में उतार दिया। परन्तु जब वह ट्रक से उतरा तब वह अकेला नहीं था। उसका साथी फारूक भी उसके साथ था। फारूक ने सड़क किनारे अमृत को अपनी गोद में लिटाया और मदद की गुहार लगाई। जल्दी ही एक एम्बुलेंस वहां आ गई, जिसने अमृत को अस्पताल पहुंचाया।
एक अन्य घटना में एक मजदूर, जिसका बच्चा विकलांग था, उसने एक अन्य मजदूर की साइकिल बिना इजाजत के ले ली और जाते-जाते कागज पर यह सन्देश छोड़ गया, कि उसे अपने बच्चों को लेकर दूर जाना है और उसके पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। साइकिल के मालिक प्रभु दयाल ने इसका जरा भी बुरा नहीं माना। साइकिल ले जाने वाले शख्स का नाम था मोहम्मद इकबाल खान।
मुंबई के सेवरी में पांडुरंग उबाले नामक एक बुजुर्ग की अधिक उम्र और अन्य बीमारियों से मौत हो गई। लॉकडाउन के कारण उसके नजदीकी रिश्तेदार उसके घर नहीं पहुंच सके। ऐसे में उसके मुस्लिम पड़ोसी आगे आये और उन्होंने हिन्दू विधि-विधान से उसका क्रियाकर्म किया। इसी तरह की घटनाएं बैंगलोर और राजस्थान से भी सामने आईं। दिल्ली के तिहाड़ जेल में हिन्दू बंदियों ने अपने मुसलमान साथियों के साथ रोजा रखा। पुणे में एक मस्जिद (आजम कैंपस) और मणिपुर में एक चर्च को क्वारेंटाइन केंद्र के रूप में इस्तेमाल के लिए अधिकारियों के हवाले कर दिया गया। दिल को छू लेने वाली एक अन्य घटनाक्रम में, एक मुस्लिम लड़की ने एक हिन्दू घर में शरण ली और मेजबानों ने तड़के उठ कर उसके लिए सेहरी का इंतजाम किया।
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ऐसे और भी कई उदाहरण देश के अलग-अलग हिस्सों में देखे गये। लेकिन ऐसी घटनाओं को मीडिया में कम महत्व दिया जाता है। रोजे के वक्त परमार्थ समाज सेवी संस्थान के स्वयं सेवकों के साथ ही कई अन्य संस्थाओं ने भी साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसालें पेश की। लेकिन श्रेय लेने की होड़ से दूर रहे।
संजय सिंह बताते हैं, कि दरअसल जरूरतमंदों को त्वरित मदद चाहिए। उन्हें 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक राहत पैकेज लोन के रूप में अभी नहीं चाहिए।
हालांकि मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने-अपने राज्य के प्रवासी मजदूरों को आर्थिक सहायता पहुंचाने की योजना शुरू की है। मध्यप्रदेश सरकार ने तो इसके लिए जिला कलेक्टरों को दिशा निर्देश भी जारी कर दिया गया है, कि मजदूरों की जानकारी इकट्ठा कर उनके भोजन, दवा आदि के लिए तत्काल उनके खाते में एक हजार रूपये डाले जा रहे हैं। इसका लाभ उन प्रवासी मजदूरों को भी मिल रहा है,जो मप्र के मूल निवासी होने के साथ योजना के लागू होने की दिनांक तक अन्य राज्यों में प्रवासी मजदूर हों।
वहीं पन्ना जिले के ग्राम पंचायत सिमराखुर्द के रामलाल और कृपाल पटेल की शिकायत हैं, कि दो वर्ष बाद लौटे परिवारों को त्वरित कोई लाभ नहीं मिल रहा है। जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें पीडीएस से खाद्यान्न भी नहीं मिल रहा है। इसके साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत बदतर है। डॉक्टरों के अभाव में बाहर से लौटने के बाद मजदूरों के स्वास्थ्य की जांच सही ढंग से नहीं हो पा रही है। इसी जिले के ग्राम पंचायत अतरहाई के सम्मेरा बताते हैं, कि इस जिले में लगभग 40 हजार मजदूर पलायन से लौटे हैं, परंतु उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है। हालांकि यह सिर्फ पन्ना जिले की बात नहीं है, बल्कि बुंदेलखण्ड के कई इलाकों में वापस घर लौटे मजदूरों की लगभग यही स्थिति है।
ऐसे में परमार्थ समाज सेवी संस्थान के कार्यकर्ता गांवों में जाकर पम्पलेट के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहा है। कार्यकर्ताओं द्वारा जिलास्तर पर संवाद कर लोगों को उनके ही गांव में मनरेगा के अन्तर्गत रोजगार दिलाने का प्रयास कर रही है। जिससे गांवों के लोगों तत्काल राहत मिले। इसके साथ ही जरूरतमंद परिवारों को राशन भी मुहैया करा रही है।
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