- संसद का विशेष कोरोना सत्र बुलाने को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं
- कोरोना संकट में सौ से अधिक देशों के सांसदों ने अपनी-अपनी संसद में सरकारों के कामकाज का लिया हिसाब
न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी के बीच में देश में सबकुछ बदल गया है। जिन्हें घरों में होना चाहिए वह सड़कों पर हैं और जिन्हें संसद में होना चाहिए वह अपने घरों में कैद है। तालाबंदी के बाद से देश की बहुत बड़ी आबादी सरकारी कुप्रबंधन की जबरदस्त मार झेल रही है, और सरकार की जवाबदेही को तय करने वाली संसद अभी तक निष्क्रिय ही बनी हुई है। सरकार को जो राजनीतिक रूप से सही लग रहा है वह कर रही है, बाकी सब भगवान भरोसे हैं।
कोरोना महामारी, तालाबंदी और प्रवासी मजदूरों के पलायन ने भारत की एम अलग ही तस्वीर पेश की है। सड़कों पर लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों का भूखे-प्यासे नंगे पाव चल रहे हैं और सरकार बसों की राजनीति में उलझी हुई है। सड़क दुर्घटनाओं में मजदूरों की मौत हो रही है और सरकार तमाशबीन बनी हुई है। और तो और लाचार जनता की आवाज उठाने वाले विपक्ष को सत्ता पक्ष में बैठे लोग ‘राजनीति नहीं करने’ की दुहाई दे रहे हैं। जबकि वह खुद पूरी ताकत से राजनीति करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।
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इतनी बड़ी आफत के दौरान यदि किसी ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया तो वह है संसद। इस दौरान संसद को पूरी तरह से निष्क्रिय बनाये रखना अफसोसजनक है। यही नहीं, इसकी विभिन्न संसदीय समितियों का भी यही हाल है, जबकि इन समितियों में सीमित संख्या में ही सदस्य होते हैं। भारत में सरकार ने अभी तक संसद का विशेष कोरोना सत्र बुलाने को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं दिखायी है।
18 मई को कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी इस पर सवाल उठाया था। उन्होंने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने कनाडा की संसद का हवाला देते हुए लिखा था कि यदि वहां संसद का ‘वर्चुअल सेशन’ बुलाया जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं?
Canada’s Parliament meets virtually while India’s cannot even permit Committee meetings with much smaller numbers. Since confidentiality is supposedly the issue with Committees, why not convene the whole Parliament, whose proceedings are normally televised anyway? @ombirlakota https://t.co/ckOihy55bv
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) May 18, 2020
शशि थरूर का सवाल लाजिमी है, क्योंकि इंटरनेशनल पार्लियामेंट्री यूनियन (आईपीयू) की वेबसाइट पर छोटे-बड़े तमाम देशों की संसदों की ओर से कोरोना महामारी के दौरान हुई या होने वाली गतिविधियों का ब्यौरा है, लेकिन वहां दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानी भारत की संसद से जुड़ा कोई ब्यौरा नहीं है।
इंटरनेशनल पार्लियामेंट्री यूनियन (आईपीयू) एक ऐसी वैश्विक संस्था है जो दुनिया भर के देशों की संसदों के बीच संवाद कायम करने का एक माध्यम है।
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संसद की निष्क्रियता पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं, तालाबंदी के बीच यदि न्यायपालिका खासकर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय आंशिक रूप से सक्रिय रह सकते हैं, तो संसद को निष्क्रिय रखना लोकतंत्र के लिए बेहद चिंताजनक है। इसीलिए सरकार को पूरी तकनीक का इस्तेमाल करके और सारी सावधानियां बरतते हुए यथाशीघ्र संसद का विशेष कोरोना सत्र जरूर बुलाना चाहिए। संसद के निष्क्रिय रहने से सरकार निरंकुश हो जाती है।
वह कहते हैं आपको एक उदाहरण देता हूं। पिछले दिनों एक-एक करके छह राज्यों ने धड़ाधड़ ऐलान कर दिया कि वो श्रम कानूनों को तीन साल के लिए स्थगित कर रहे हैं। इनमें बीजेपी और कांग्रेस शासित दोनों तरह के राज्य हैं, जबकि ये विषय समवर्ती सूची में है और इन कानूनों के मामले में संसद सर्वोपरि है। संविधान ने इन्हें संसद की ओर से बनाये गये कानूनों को स्थगित करने का कोई अधिकार नहीं दिया है, लेकिन कोरोना आपदा की आड़ में इन्होंने लक्ष्मण रेखाएं पार कर लीं।
संसद न चलाने के पीछे यह तर्क दिया जा सकता हैं कि फिजिकल डिस्टेंसिंग की जरूरत की वजह से संसद का कामकाज चल पाना संभव नहीं था, पर सवाल यह है कि कोरोना संकट के बीच आखिर दुनिया के सौ से अधिक देश के सांसदों ने अपने आवाम की तकलीफों को लेकर अपनी-अपनी संसद में सरकारों के कामकाज का हिसाब कैसे लिया?
दरअसल इन देशों ने तकनीक का सहारा लिया। उन्हें अपनी जिम्मेदारी का एहसास था इसलिए रास्ता तलाशा। इन देशों ने लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की पाबंदियों को देखते हुए सांसदों की सीमित मौजूदगी वाले संक्षिप्त संसद सत्रों का या वीडियो कान्फ्रेंसिंग वाली तकनीक का सहारा लेकर ‘वर्चुअल सेशन’ का आयोजन किया। कई देशों ने संसद सत्र में सदस्यों की संख्या को सीमित रखा है, तो कुछ देशों में सिर्फ संसदीय समिति की बैठकें हो रही हैं। भारत को भी इस दिशा में सोचने की जरूरत है।