न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी, तालाबंदी और फिर लाखों प्रवासी मजदूरों का पलायन। पिछले दो माह में देश के हालात एकदम बदल गए। तालाबंदी के बीच सड़कों पर भूखे-प्यासे प्रवासी मजदूरों की जो हालत दिखी, उसने सरकार की संवेदनहीनता की पोल खोल दी। जार-जार रोते मजदूरों के चेहरे पर सरकार के प्रति नाराजगी का भाव भी दिखा। सरकार के प्रति मजदूरों की नाराजगी देखकर जहां विपक्षी दलों की बाछें खिल गई है तो वहीं बीजेपी खेमे में चिंता बढ़ गई है।
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बीजेपी को यह भलीभांति एहसास है कि प्रवासी मजदूरों ने अपने घर जाने के दौरान जो तकलीफ झेली है उससे मोदी की छवि प्रभावित हुई है। मोदी ने पैकेज का ऐलान करके इस नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की, लेकिन यह नाकाफी साबित हुई है। अभी भी सड़कों पर प्रवासी मजदूरों का हुजूम है और उनको लेकर देश में राजनीति भी शुरु हो गई है, जिसकी वजह से बीजेपी की चिंता बढ़ गई है। इसलिए अब बीजेपी मोदी सरकार की छवि सुधारने के लिए फिर से गांवों की ओर जा रही है।
बीजेपी एक अभियान शुरु करने जा रही है। इस अभियान के तहत वह मोदी सरकार द्वारा प्रवासी मजदूरों, किसानों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए उठाए गए कदम को लोगों के बीच में रखेगी। इतना ही बीजेपी जिन राज्यों में विपक्ष की भूमिका में हैं वहां राज्य सरकारों की विफलता पर ‘रिपोर्ट कार्ड’ पेश करेंगी और इसको लेकर आंदोलन करेगी। इसकी शुरुआत शुक्रवार को महाराष्ट्र और दिल्ली से कर चुकी है।
भारतीय जनता पार्टी ने शुक्रवार को सुबह 11.30 बजे महाराष्ट्र के लोगों से कहा है कि वह काला कपड़ा पहनें, बालकोनी में आएं और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सत्तारूढ शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस सरकार के खिलाफ नारे लगाएं और बैनर दिखाएं। भाजपा ने मुंबईवासियों से काले कपड़े पहनने और तख्तियां लेकर बालकनी में आने का अनुरोध किया।
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दरअसल बीजेपी की जो योजना है उसके मुताबिक विपक्षी शासित राज्यों में बीजेपी इकाइयां सत्तारूढ़ दल की विफलता को उजागर करने के लिए आंदोलन करेंगी और जिन राज्यों में सत्ता में है, वहां पार्टी मोदी सरकार के कार्यों को प्रचारित करेगी। इसी योजना के तहत बीजेपी ने अपने पूरे कैडर को मैदान में उतार दिया है।
बीते दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को सलाह दी थी कि अपने पूरे कैडर में जोश भरकर प्रवासी मजदूरों पर ध्यान केंद्रित करें। 14 मई को अमित शाह बीजेपी मुख्यालय में पहुंचे थे। यहां अपने उत्तराधिकारी बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को उन्होंने सलाह दी, जिन्होंने फिर तमाम महासचिवों और प्रदेश इकाइयों को निर्देश दिया।
शाह ने यह भी सलाह दिया कि बीजेपी कैडर हाईवे और रेल लाइनों के किनारे कैंप्स लगाकर आने-जाने वाले प्रवासी मजदूरों में चप्पल, साबुन, भोजन, पानी और मास्क बांटे जाएं। पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को ये सुनिश्चित करने को भी कहा है कि हाईवेज के ऊपर ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में एंबुलेंस खड़ी की जाएं, ताकि घर वापसी के अपने लंबे पैदल सफर में, यदि मजदूर बीमार हो जाएं, तो उन्हें जल्दी से अस्पताल भेजा जा सके।
बीजेपी नेताओं का कहना है कि अभी जो हालात हो गए हैं उसमें जरूरी है कि राहत के उपाय के रूप में मोदी सरकार द्वारा की गई कई घोषणाओं से लोगों को अवगत कराने की जरूरत है। केवल प्रवासी मजदूरों को ही नहीं बल्कि सभी वर्ग के लोगों को बताना है। ।”
बीजेपी ने इसकी शुरुआत महाराष्ट्र, दिल्ली से कर चुकी है। बीजेपी ऐसा ही आंदोलन देश के उन सभी राज्यों की विधानसभाओं में करेगी जहां वह विपक्ष में है।
दिल्ली में, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सरकार का मुकाबला करने के लिए, भाजपा शहर के उत्तर-पूर्वी हिस्से से एक आंदोलन शुरू करने के लिए तैयार है। तख्तियां ले जाने वाले पार्टी कार्यकर्ता एक दूसरे से छह से आठ फीट की दूरी पर खड़े होंगे, ताकि सामाजिक भेदभाव बनाए रखा जा सके और इस बात पर प्रकाश डाला जा सके कि दिल्ली सरकार जरूरतमंदों को राशन देने में कैसे विफल रही।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुतातबिक, दिल्ली इकाई के प्रमुख मनोज तिवारी और दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी सहित पार्टी “मोदी जी द्वारा दिए गए राशन कहां हैं” जैसे नारे लगाएगी? और “मोदी जी ने राशन भेजा, केजरीवाल ने उन्हें वितरित नहीं किया”।
दरअसल बीजेपी एक तीर से कई निशाने साधने की फिराक में हैं। इन आंदोलनों के माध्यम से वह गरीबों, किसानों में मोदी के प्रति विश्वास जगायेगी तो दूसरी ओर विपक्षी दलों की कमियां भी उजागर करेगी। जाहिर है यह सब आगामी चुनावों के मद्देनजर किया जा रहा है।
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