डॉ योगेश बंधु
आर्थिक पैकेज – भाग दो की सबसे महत्वपूर्ण ध्यान देने वाली बात ये है कि एक दिन पहले ही बड़े ज़ोर शोर से “लोकल के लिए वोकल” की नीति सिरे से नदारत है। दूसरे भाग का एक भी प्रावधान कृषि और छोटे व्यापारियों के लिए इस नीति के लिए कोई भी संस्थागत प्रावधान नही प्रदान करता । सरकार की ओर से दिए जाने वाले आर्थिक पैकेज की दूसरी किस्त की घोषणा गुरुवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की।
दूसरी किस्त में प्रवासी मजदूरों, किसानों, रेहड़ी-पटरी वालों और छोटे व्यापारियों पर फोकस रहा। आर्थिक पैकेज के दूसरे चरण की घोषणा करते हुए आज वित्तमंत्री ने बताया कि कृषि के क्षेत्र में मार्च और अप्रैल में 63 लाख कर्ज मंजूर किए गए, जो लगभग 86,600 करोड़ रुपये के हैं। कॉरपोरेटिव और क्षेत्रीय रूरल बैंक के लिए मार्च 2020 में नाबार्ड ने 29,500 करोड़ रुपये के रीफाइनेंस का प्रावधान किया है।
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ग्रामीण क्षेत्र में विकास के लिए राज्यों को मार्च में 4200 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए गए। सीधे तौर पर ये सारे आवंटन आर्थिक पैकेज घोषित होने से पहले हो चुके हैं, केवल तकनीकी तौर पर हम इन्हें आर्थिक पैकेज का हिस्सा मान सकते हैं। अगर नाबार्ड के पिछले वर्ष के आवंटनो को देखे तो यह बढ़ोत्तरी कोई मायने नही रखती है।
पीएम किसान योजना और अन्य योजनाओं के माध्यम से करोड़ों किसानों को पहले भी लाभ मिलता रहा है। पैकेज में कंसेशनल क्रेडिट को बढ़ावा देते हुए दो लाख करोड़ रुपये की ऋण सुविधा देने की बात कही गयी है, किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से जिसका लाभ ढाई करोड़ किसानों,मछुआरों और पशु पालकों को मिल सकता है।
दिश्वारी इस बात की है की सरकार अभी भी संस्थागत उपायों की जगह क़र्ज़ को ही किसानो की समस्या का इलाज मानती है। किसान उत्पादक संगठनो, e-NAM, व्यावसायिक कृषि प्रबंधन जैसे संस्थागत उपाय किसान और ग्रामीण भारत के लिए बेहतर अवसर और आय प्रदान कर सकते हैं ।
इस पैकेज के तहत राज्य सरकारों को अनुमति दी है कि वे आपदा के लिए रकम का इस्तेमाल कर प्रवासी मजदूरों के लिए खाने और रहने का इंतजाम कर सकते हैं। इसके लिए आपदा राहत काश से कुछ राज्यों को कुल 11 हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं। ये तत्कालीन समस्या को थोड़े समय के लिए टालने का काम कर सकती है।
लेकिन बेहतर प्रबंधन और नीतिगत निर्णयों के अभाव में प्रवासीयों की दुर्दशा देश के किसी भी राजमार्ग पर देखी जा सकती है। राशन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए आठ करोड़ प्रवासी मजदूरों के लिए सरकार 3,500 करोड़ रुपये का प्रावधान अगले दो महीनों तक के लियी ही पर्याप्त है, जो समस्या के स्थायी अटवा कम से कम दीर्घक़ालीन समाधान की ओर ध्यान नही देता।
इन प्रवासियों की समस्या का समाधान इन्हें रोज़गार के अवसर प्रदान करके किया जा सकता है। सरकार के आँकड़ो के अनुसार 13 मई तक मनरेगा के तहत 14.62 करोड़ व्यक्तियों को काम दिया गया। जिसके लिए अब तक 10 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किए गए हैं, जिसमें मजदूरी के अलावा निर्माण सामग्रियों पर होने वाला खर्च ही शामिल है।
आँकड़ो के अनुसार पिछले साल मई की तुलना में 40-50 फीसदी कामगार बढ़े हैं। लेकिन प्रति परिवार रोज़गार के दिनो की संख्या सीमित (वर्तमान में 100 दिन) रहने पर आने वाले समय में ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार का संकट और गहराएगा।
इनके लिए मजदूरी को 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये करने से प्रत्येक परिवार को पूरे वर्ष में 2000 की अतिरिक्त आय होगी, लेकिन ग्रामीण परिवार के सदस्यों के शहरों से गाँवो को लौटने के कारण यह राशि अपर्याप्त है। वास्तविक लाभ मनरेगा के तहत प्रति परिवार कार्य दिवसों की संख्या को कम से कम बढ़ाने पर ही मिल सकता है।
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1,500 करोड़ रुपये से मुद्रा शिशु लोन के माध्यम से लगभग तीन करोड़ लोगों को मिलने वाला लाभ और उनकी ब्याज दर में सरकार द्वारा दो फीसदी की छूट छोटे व्यापारियों के लिए राहत ला सकता है।
इसी तरह से रेड़ी लगाने वाले, पटरी पर सामान बेचने वाले, घरों में काम करने वाले श्रमिक साथियों के लिए 5,000 करोड़ रुपये की क्रेडिट फैसिलिटी के द्वारा प्रति व्यक्ति 10,000 रुपये तक की मिलने वाली सुविधा भी छोटे कामगारों के लिए मददगार होगा जो ना सिर्फ़ उनकी पूजी की ज़रूरतों को पूरा करेगा, बल्कि उन्हें साहूकार और महाजनो के ऊँचे ब्याज दरों के चंगुल से बचाने में सहायक होगा। इसका लाभ देश के 50 लाख स्ट्रीट वेंडर्स को मिल सकता है।
हाउसिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए छह लाख से 18 लाख रुपये की आय वर्ग वाले मिडल इनकम ग्रुप, के लिए 70,000 करोड़ रुपये की क्रेडिटलिंक सब्सिडी स्कीम (CLSS), को मार्च 2021 तक बढ़ा दिया गया है, जो नोटबदी के बाद से परेशान रियल स्टेट सेक्टर को राहत देने वाला है। पहले भी जब इसे 31 मार्च 2020 तक बढ़ाया गया था तो उसका लाभ मध्यम वर्ग के 3.3 लाख परिवारों को मिला था।
इस योजना से ढाई लाख से अतिरिक्त परिवारों को लाभ मिलेगा और 70,000 करोड़ का कुल निवेश आएगा, जिससे रियल एस्टेट से जुड़े सेक्टर्स (स्टील, सीमेंट, आदि) को भी बढ़ावा मिलेगा, सरकार के इस क़दम से बेरोज़गारों को मजदूरी के अवसर मिल सकते हैं। अगर इस आर्थिक पैकेज के लाभ हानि की बात करे तो, इस पैकेज से मुद्रा शिशु लोन लेकर रेहड़ी लगाने वाले, पटरी पर सामान बेचने वाले, घरों में काम करने वाले श्रमिको के लिए थोड़ी राहत प्रदान कर सकता है।
इसके अलावा हाउसिंग सेक्टर से जुड़े व्यवसायों और इनका लाभ लेने वालेमाध्यम वर्ग को कुछ लाभ मिल सकता है , लेकिन ग्रामीण भारत और निmन आय वर्ग वाले एक बड़े तबके और किसानो को शायद ही इस पैकेज से कुछ राहत मिले।