सुरेन्द्र दूबे
पूरा भाषण बड़ी गंभीरता से सुना। हम उनका भाषण सुनते-सुनते समझ गये है कि वह जो कहते हैं उसे समझने के लिए सिर्फ दिमाग से काम लेना चाहिए। जैसे ही आपने दिल से समझने की कोशिश की समझ लीजिये उनके वाक जाल में फंस गए। वे हर समय जाल लिए घूमते रहते है। जरा सा चूके और उनके जाल में फंसे। सावधान नहीं रहे तो फिर जाल में फंसे बगैर नींद नहीं आयेगी। कोई अगर जाल से निकालने की कोशिश करेगा तो वह आपको राष्ट्र विरोधी लगने लगेगा।
अपुन पूरी तरह सतर्क थे इसलिए भाषण में सिर्फ तीन ही बातें समझ मैं आई। बाकी सब इवेंट मैनजेमेंट था सो उसका आनंद भक्तों ने लिया। अभी तक भजन गा रहे हैं। गुनगुना रहे हैं। किसी को भक्त तो किसी को अंध भक्त बना रहे हैं। हमने पूरे भाषण में तीन बाते पकड़ लीं। उन्ही की चर्चा कर लेते हैं। ये तीन बातें है आत्म निर्भरता ,लोकल व तपस्या।
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सबसे पहले आत्म निर्भरता की चर्चा कर लेते हैं। मोदी जी ने साफ- साफ कह दिया कि हमारे भरोसे न रहना। इंडस्ट्री बंद है या रोजगार छिन गया है तो आप लोगों को ही कुछ करना है, आत्म निर्भर बनना है। कोरोना तो अभी आया है पर मोदी जी तो 6 साल पहले आ गये थे। इस दौरान हमारी बेरोजगारी दर बढ़कर 42 प्रतिशत हो गयी। सारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को भोथरा कर दिया।
ये काम ठीक किया। जब देश में भक्तिकाल चल रहा हो तो लोकतांत्रिक संस्थाओं की क्या जरूरत है। एक तरफ भगवान हैं और दूसरी तरफ भक्त। बाकी जो हैं वो असुर हैं। इनका तो हर काल में संहार हुआ है। हमारे तो सारे भगवान अलोकतांत्रिक थे। वो जो कहते थे जनता उस पर ताली व थाली बजाती थी ।अब हमें समझ में आ गया है कि 6 साल तक सरकार की ओर देखने का क्या फायदा हुआ। यही बात। मोदी जी ने साफ साफ कह दी। अब हमें आत्म निर्भर बनने से कोई नहीं रोक सकता है।
मोदी जी ने दूसरी बड़ी बात यह कही कि हमें लोकल को महत्व देना है। बात ठीक से समझ मैं आ जाय इसलिये यह भी कह दिया कि लोकल में वोकल होना है। यानि कि लोकल मारते रहना है। करना धरना कुछ नहीं हैं। कनपुरिया भाषा में लोकल का मतलब है लंतरानी हाकना। सो हांकते रहिये। दुनिया को राह दिखाने की डींगें मारते रहिये। मीडिया में छप जायेगा। अपने देश में तो जलवा बना रहेगा। विदेशी तो हमारे गोदी मीडिया की औकात जानते ही है। कुछ मूर्ख लोग यह समझ गये कि मोदी जी लोकल माल की चर्चा कर रहे हैं। असल में वे लोकल मारने की बात कर रहे हैं, लोकल बनाने की बात नहीं कर रहें हैं। बनाने में तो हमारा कोई सानी नहीं हैं। सो हम अब जम कर लोकल मारेंगे और अपनी अर्थ व्यवस्था को उबार लेंगे।
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मोदी जी ने सबसे बड़ी बात तपस्या के बारे में बताई। प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा देखकर हम लोगों का कलेजा मुंह को आ रहा है। सोचा मजदूरों के पैर धोकर प्रयागराज कुम्भ में लोगों का दिल जीत लेने वाले मोदी जी इस बार फिर उनका दिल जीतने के लिये कोई न कोई खेला जरूर करेंगे। पर अबकी तो वाकई वो खेल गये। भूखे मर रहे मजदूरों को तपस्वी बता दिया। तपस्या की परिभाषा ही बदल गयी। शास्त्रों व पुराणों में पढ़ा था कि तपस्वियों के लिये राजा महाराजा 56 प्रकार के भोज की व्यवस्था करते थे। अब ऐसे तपस्वियों के बारे में पता चला है जो सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर भी अपनी कुटिया में वापस नहीं पहुंच पाये। भोजन मांगा तो पुलिस की लाठियां मिली। धन्य हैं 56 इंच के सीने वाले बाबा की जिन्होंने नंगे भूखे लोगों को तपस्वियों का दर्जा दिलाकर नया इतिहास रच दिया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)