- न्यूजीलैंड में सितंबर में होना है राष्ट्रीय चुनाव
- न्यूजीलैंड के चुनाव आयोग ने मंगलवार को की चुनाव कराने की घोषणा
- प्रधानमंत्री आर्डर्न ने जनवरी में ही कर दी थी घोषणा कि चुनाव 19 सितंबर को होंगे
न्यूज डेस्क
दक्षिण कोरिया, पोलैंड के बाद अब न्यूजीलैंड में भी चुनाव की घोषण हो गई हैं। कोरोना महामारी के बीच न्यूजीलैंड सितंबर में राष्ट्रीय चुनाव कराने जा रहा है।
कोरोना महामारी के बीच में पहले दक्षिण कोरिया में संसदीय चुनाव हुआ। उसके बाद सात मई को पोलैंड में पोलिश सांसदों ने देश में राष्ट्रपति चुनाव पूरी तरह डाक के जरिए कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। और अब न्यूजीलैंड में सरकार ने कोरोना वायरस के खतरे के बीच चुनाव कराने का फैसला कर लिया है।
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पहले से तय योजना के अनुसार देश में सितंबर में राष्ट्रीय चुनाव होने हैं और सरकार ने कोरोना वायरस के खतरे के बीच योजना के अनुसार ही तय समय पर चुनाव कराने का फैसला कर लिया है।
कोरोना संक्रमण रोकने के लिए न्यूजीलैंड ने भी तालाबंदी का सहारा लिया । सात हफ्ते तक यहां सख्ती से तालाबंदी का पालन किया गया था। अब चूंकि कोरोना के इक्के-दुक्के मामले ही हैं, तो ऐसे में तालाबंदी के प्रतिबंधों में काफी छूट दे दी गई है।
भले ही यहां कोरोना के मामले नहीं आ रहे हैं, बावजूद सरकार सतर्क है और इस पर नजर बनाए हुए हैं।
न्यूजीलैंड के चुनाव आयोग ने मंगलवार 12 मई को कुछ नए सुरक्षा के कदमों की घोषणा की जिनका पालन कर के सितंबर में राष्ट्रीय चुनाव कराए जाएंगे।
प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने जनवरी में ही घोषणा कर दी थी कि चुनाव 19 सितंबर को होंगे और उसके बाद उन्होंने कई बार दोहराया है कि चुनावों की तिथि बदलने की उनकी कोई योजना नहीं है।
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आने वाले दिनों में न्यूजीलैंड में तालाबंदी समाप्त होने जा रही है और इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनाव कैसे सुरक्षित रूप से करवाए जाएं इस बारे में उसने स्वास्थ्य एजेंसियों से चर्चा की है।
आयोग ने कहा, “कोविड-19 की वजह से इस साल का चुनाव अलग होगा और लोगों को सुरक्षित रखने के लिए कई तरह के कदम उठाए जाएंगे।”
मुख्य चुनाव अधिकारी अलीशिया राइट ने कहा कि इन कदमों में पंक्ति प्रबंधन, शारीरिक डिस्टेंसिंग, मत पेटियों के साथ साथ हैंड सैनिटाइजर रखना और मतदान केंद्रों पर तैनात अधिकारियों के लिए संक्रमण से सुरक्षा का सामान उपलब्ध कराना शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अग्रिम मतदान और डाक से मतदान को भी प्रोत्साहन दिया जाएगा, विशेष रूप से बुजुर्गों और उनके लिए जिन्हें स्वास्थ्य संबंधी शिकायतें हैं।
हालांकि यह दिशा-निर्देश दूसरी चुनावी गतिविधियों जैसे प्रचार, रैलियों और घर घर जा कर प्रचार पर लागू नहीं होते। संभव है कि इन सब पर काफी बड़ा असर पड़ेगा।
वहीं प्रधानमंत्री आर्डर्न का कहना है कि उन्होंने चुनावों के बारे में ज्यादा विचार नहीं किया है, क्योंकि वो अभी भी कोविड-19 संकट से जूझ रही हैं।
मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत में आर्डर्न ने कहा, “अगर हम दिनों, हफ्तों और महीनों के हिसाब से बात करें तो मुझे ऐसा महसूस होता है कि चुनाव एक जीवनकाल के बराबर दूर हैं।”
साथ में उन्होंने यह भी कहा, “जैसा कि आप एक वैश्विक महामारी के बीच में कल्पना कर सकते हैं, चुनाव ऐसा विषय नहीं हैं जिस पर अभी तक मैंने अपना दिमाग लगाया हो।”
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न्यूजीलैंड में इसी साल कोरोना वायरस के पहुंचने से पहले किए गए ओपिनियन पोलों में जेसिंडा आर्डर्न की सेंटर-लेफ्ट लेबर पार्टी कंजर्वेटिव नेशनल पार्टी से थोड़ा पीछे थी, लेकिन गठबंधन के घटक दलों की मदद से काफी करीबी जीत के रास्ते पर थी।
लेकिन इस बीच 39-वर्षीय आर्डर्न को कोरोना महामारी से निपटने में उनकी सूझबूझ के लिए उन्हें पूरी दुनिया में सराहना मिल रही है। आर्डर्न के नेतृत्व में 50 लाख आबादी वाले न्यूजीलैंड में कोरोना संक्रमण से सिर्फ 21 लोगों की जान गई।
हालांकि तालाबंदी के दौरान यहां कोई भी आधिकारिक पोल जारी नहीं हुआ है, पर लेबर पार्टी की पोलिंग संस्था यूएमआर के लीक हुए एक रिसर्च के नतीजों ने पिछले महीने आर्डर्न की पार्टी को बहुत बड़ी जीत की तरफ बढ़ते हुए दिखाया था।
रिसर्च में लेबर को 55 प्रतिशत समर्थन मिला था और नेशनल को 29 प्रतिशत। बतौर प्रधानमंत्री आर्डर्न की अप्रूवल रेटिंग 65 प्रतिशत पर थी। राष्ट्रीय चुनावों के साथ साथ न्यूजीलैंड में दो जनमत-संग्रह भी होंगे, भांग या कैनाबिस को कानूनी वैधता दिलाने पर और इच्छामृत्यु की इजाजत पर।
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