- झारखंड सरकार ने रोजगार देने के लिए शुरु की तीन योजनाएं
- इन योजनाओं से लगभग 25 करोड़ मानव दिवस का सृजन होने की संभावना
- बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना और वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना शुरु
न्यूज डेस्क
तालाबंदी की वजह से प्रवासी मजदूर अपने राज्यों में लौट रहे हैं। झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में श्रमिकों का वापस आना जारी है। जानकार श्रमिकों के लौटने पर चिंता जता रहे हैं कि जहां पहले से बेरोजगारी चरम पर हैं, वहां लाखों लोगों के लिए रोजगार का इंतजाम कैसे होगा।
झारखंड जो बेरोजगारी की सूची में पहले पायदान पर है, वहां दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए गए आठ लाख से अधिक श्रमिक तालाबंदी की वजह से वापस लौट रहे हैं। पिछले पांच दिनों में झारखंड में 20 हजार से अधिक मजदूर और छात्र पहुंच चुके हैं।
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अपने राज्यों को लौट रहे श्रमिकों को लेकर झारखंड सरकार भी गंभीर हैं। सरकार उनके जीवनयापन के लिए उपायों पर विचार शुरु कर चुकी हैं। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रोजगार के लिए तीन बड़ी योजनाओं की घोषणा की है।
जिन योजनाओं की घोषणा सोरेन ने किया है उनमें बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना और वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना शामिल हैं। मुख्यमंत्री सोरेन के अनुसार इन तीनों योजनाओं को मिलाकर लगभग 25 करोड़ मानव दिवस का सृजन होने की संभावना है।
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए देशव्यापी तालाबंदी ने अर्थव्यवस्था को तगड़ी चोट पहुंचायी है। लाखों लोगों के सामने रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया है। बीतें दिनों सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण में भी खुलासा हुआ है कि अप्रैल 2020 में बेरोजगारी दर 47.1 प्रतिशत हो गई है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत 23.5 प्रतिशत से कहीं अधिक है।
सीएमआईई की बेरोजगारी लिस्ट में झारखंड से आगे बिहार में 47.6 प्रतिशत बेरोजगारी बढ़ी है तो वहीं छत्तीसगढ़ में मात्र 3.4 प्रतिशत।
यदि झारखंड सरकार के आंकड़ों को देखें तो राज्य में पांच मई तक कुल 7,09,103 लाख लोग निबंधित तौर पर बेरोजगार हैं। ये हाल तब होने जा रहा है जब बाहर गए लोगों में आधे से भी कम लोगों के लौटने की संभावना है।
एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के गढ़वा उन इलाकों में शुमार है जहां सबसे अधिक लोग पलायन करते हैं। तालाबंदी की वजह से इस इलाके में 25 प्रतिशत लोग अपने गांव को लौट रहे हैं। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उसमें भी आधे से अधिक लोग दुबारा लौट जाएंगे, क्योंकि गढ़वा शहर की आबादी 50 हजार है, वहां रोजगार का कोई विकल्प नहीं है।
जानकारों का मानना है कि श्रमिकों को वापस लौटना भी मजबूरी हैं, क्योंकि मनरेगा में 198 रुपए मिलते हैं। अगर किसी को 100 दिन का भी रोजगार मिलता है तो उससे पास महज 19,800 रुपए ही आएंगे। महानगर लौटने के अलावा इन मजदूरों के पास और कोई ऊपाय नहीं है।
वहीं झारखंड लौटे श्रमिकों को भी बहुत उम्मीद नहीं है। मीडिया से बात करते हुए श्रमिक मनोज के बताया कि पहले वो गढ़वा में रोजगार की तलाश करेंगे। यदि मिल गया तो ठीक नहीं तो तालाबंदी खत्म हो जाने के बाद फिर वहीं चले जायेंगे। उन्होंने आगे कहा कि दूसरे राज्यों में वह इतना कमा लेते हैं कि आनेवाले समय के लिए थोड़ा बचत भी हो जाता है।
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अपने राज्यों को लौटे अधिकांश श्रमिकों को रोजगार में मनरेगा ही दिखाई दे रहा है। हाल ही में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने पीएम मोदी से बातचीत में कहा था कि झारखंड में मनरेगा के तहत मिलने वाले 198 रुपए को बढ़ाया जाना चाहिए।
झारखंड के श्रमिक महाराष्टï्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में काम करने जाते हैं। इन राज्यों में मनरेगा मजदूरी को ही देख लें तो आंध्रप्रदेश में 237, तेलंगाना में 237, महाराष्ट्र में 238, गोवा में 280, यूपी में 201 रुपए मिलते हैं।
मनरेगा के अलावा क्या है विकल्प
झारखंड लौट रहे श्रमिकों को लेकर एक ही सवाल है कि क्या से सभी लोग मनरेगा में ही काम करेंगे। घरेलू कामगार, दुकानों में काम करनेवाले, ऑटो सेक्टर, मॉल आदि में काम करनेवालों का क्या।
हालांकि राज्य सरकार ने लौट रहे मजदूरों को कौशल विकास प्रशिक्षण के तहत ट्रेनिंग देने का भी फैसला लिया है। इसके तहत 18 से 35 साल के लोगों को 72 से तीन महीने तक की ट्रेनिंग दी जाएगी। इसका दूसरा पहलू भी है।
झारखंड में वित्तीय वर्ष 2019-20 के अक्टूबर महीने तक कौशल विकास प्रशिक्षण के तहत 1,82,087 लोग दाखिला ले चुके हैं लेकिन इनमें प्रशिक्षण 1,75,146 को ही मिल सका है। प्रशिक्षित हुए ट्रेनी में से 1,28,926 को ही प्रमाणित किया गया और इसमें से नियुक्त होने वाले लोगों की संख्या महज 18,567 ही है। अब सवाल उठता है कि जो पहले से ट्रेनिंग ले चुके हैं उनका क्या?
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अर्थशास्त्री डॉ. योगेश बंधु का कहना है कि राज्य सरकार सिर्फ मनरेगा के तहत रोजगार देकर बहुत बड़ी आबादी का पलायन नहीं रोक सकती। यह संभव नहीं है। वह कहते हैं राज्य में लौट रहे लोगों में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो मनरेगा के तहत काम नहीं कर सकता। ऐसे लोगों के लिए फिलहाल कोई उपाय करती सरकार नहीं दिख रही है। लेकिन इन सब तैयारी के लिए सरकार को थोड़ा वक्त मिलना चाहिए।
राज्य में दूसरा विकल्प कृषि क्षेत्र में रोजगार है, लेकिन इसमें भी कई समस्याएं हैं। दरअसल यहां धान अभी तक नहीं बिका है। राज्य सरकार गेहूं खरीदती नहीं है। इसके अलावा बारिश, ओला और तालाबंदी की वजह से खेतों में लगे फसल बड़ी मात्रा में बर्बाद हो चुके हैं।
राज्य के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने राज्य सरकार को सुझाव दिए हैं कि रबी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए। इसके अलावा बिना ब्याज के एक साल के लिए कृषि ऋण दिया जाए। तालाबंदी में किसानों को हुए आर्थिक नुकसान का आकलन कर मई के अंत तक उन्हें भुगतान किया जाए।
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