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कोरोना काल : सरकारें नहीं स्वीकारेंगी कि कितने लोग भूख से मरे

न्यूज डेस्क

तालाबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है। 40 दिनों से चल रही तालाबंदी की वजह से लाखों लोगों के सामने आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है।

लॉकडाउन की वजह से देश में जो समस्याएं आ रही है उसको लेकर पूर्व वित्त मंत्री व कांगे्रस सांसद पी. चिदंबरम ने एक स्तंभ लिखा है, जिनमें उन्होंने लिखा है कि इस आपदा के आगे दुनिया भर में फिलहाल और बड़े संकट गुम से हो चले हैं। फिर चाहे वह रोजगार या श्रमिक क्षेत्र से जुड़ी दिक्कत हो या फिर जल और अन्न संकट का मुद्दा।

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अंग्रेजी अखबार ‘The Indian Epress’  में प्रकाशित ‘Imagination is everything’ (कल्पना ही सब कुछ है) शीर्षक से लेख में चिदंबरम ने लिखा है कि जिस देश में कुपोषण फैला (खासकर बच्चों में) है, वहां भुखमरी के फैलाव का खतरा भी है। भूख और कुपोषण के कारण भुखमरी होगी। टीवी, प्रिंट और सोशल मीडिया पर इस बात के साफ सबूत हैं कि इस संकट काल में कई परिवार भूख से हैरान-परेशान हैं। हमें कभी पता भी नहीं चलेगा कि भुखमरी हुई, क्योंकि कोई भी राज्य सरकार इससे होने वाली मौतों को मानेगी ही नहीं।

लेख में आगे पूर्व वित्तमंत्री ने लिखा है, “कोरोना की जंग केंद्र व राज्य सरकार लड़ रही हैं, जबकि आम लोग फॉलोअर्स हैं। इसके नाते हम कई चीजें सोच सकते हैं। वह यह कि इस वायरस को वैक्सीन के बगैर हराया जा सकता है और लॉकडाउन ही इसका हल है। पर असलियत है कि लॉकडाउन इसका इलाज नहीं है। न ही इसके फैलाव को रोकने का। लॉकडाउन सिर्फ पॉज (ठहराव) है।”

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प्रवासी श्रमिकों का जिक्र करते हुए अपने स्तंभ में उन्होंने लिखा है- कल्पना करिए कि महानगरों, शहरों से घरों को लौटे श्रमिक शेल्टर होम, क्वारंटीन/शिविरों में खुश हैं और वहां के खाने व बंदोबस्त से संतुष्ट हैं। सच्चाई यह है कि दिल्ली पुलिस ने जांच में वहां पाया है कि पंखे काम नहीं करते। पावर बैकअप नहीं है। टॉयलेट्स की सफाई नहीं होती है। सिविल डिफेंस के लोगों का रवैया भी खराब है और खाना भी खराब दिया जाता है। अगर ये हाल शेल्टर होम्स का है, तब क्वारंटीन और संबंधित कैंप्स के बारे में सोचिए ही मत।

नौकरियों पर आने वाले संकट पर पी. चिदंबरम ने लिखा है कि सीएमआईई की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में बेरोजगारी दर 21.1 फीसदी है। सच ये है कि एक बार अगर एमएसएमई ठप हो गया, तब दोबारा उसे शुरू करना इतना आसान नहीं है। कल्पना करिए कि बड़े उद्योग भी किसी तरह बच जाएंगे और पहले की तरह उठ खड़े होंगे, पर असल में वे समझ चुके हैं कि पुराने दिनों जैसा हाल लौटना मुश्किल है, इसलिए वे नए सामान्य दिनों की तलाश में जुट गए हैं।

अपने लेख के सातवे बिंदु में चिदंबरम ने लिखा है कि – कल्पना करें कि अर्थव्यवस्था लॉकडाउन के बाद वापस पटरी पर आ जाएगी और हमें उसमें V-Curve(धीमे-धीमे उभार) देखने को मिलेगा, पर सच्चाई यह है कि देश की अर्थव्यवस्था नोटबंदी जैसी ऐतिहासिक गलती के बाद रिकवर ही नहीं कर पाई। ऊपर से जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) आ गया। लॉकडाउन हटने के बाद इकनॉमी इतनी आसानी से ट्रैक पर नहीं आएगी।

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