शबाहत हुसैन विजेता
नागरिक संशोधन एक्ट के विरोध के बीच साल 2020 शुरू हुआ था. यह साल जब शुरू हुआ था तब पूरे देश में विरोध की आग लगी हुई थी. एनआरसी के विरोध में दिल्ली के शाहीनबाग़ और लखनऊ के घंटाघर समेत देश के 400 स्थानों पर धरने चल रहे थे.
यह साल शुरू हुआ था तब सोशल मीडिया पर नफरत का बाज़ार अपने चरम पर पहुँच चुका था. हिन्दुस्तानी को हिन्दू-मुसलमान के बीच बांटा जा चुका था. तेज़ सर्दी के माहौल में हज़ारों औरतें खुले आसमान के नीचे अपने हिस्से का इन्साफ मांगने के लिए जमा थीं. उन औरतों में हालांकि हिन्दू भी थीं, मुसलमान भी थीं और सिक्ख भी थीं लेकिन इस विरोध प्रदर्शन को मुसलमानों का प्रदर्शन बना दिया गया था.
2020 शुरू हुआ था तब सरकार अपनी ही जनता के साथ-साथ 20-20 का मैच खेलती दिखाई दे रही थी. नागरिक संशोधन विधेयक के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में प्रशासन ने जिन लोगों पर इल्जाम तय किये थे और जिन्हें जेल भेजा गया था उसमें हिन्दू भी थे और मुसलमान भी. इसी से साबित है कि वह आन्दोलन सिर्फ मुसलमानों का आन्दोलन नहीं था.
बावजूद इसके नफरत अपने चरम पर पहुँच रही है. भाई-भाई के बीच दीवार उठाने का काम चल रहा है. यह दीवार बिलकुल वैसी ही दीवार है जैसी कि डोनाल्ड ट्रम्प से भारत की गरीबी छुपाने के लिए गुजरात में उठाई गई थी. दीवार की ख़ूबसूरती पर ट्रम्प भी फ़िदा थे. लेकिन दीवार के पीछे जिस तरह से गरीबी और भुखमरी हिलोरें मार रही थी वह पेट भरकर सोने वाले हर नागरिक के लिए शर्मनाक है. ठीक ऐसे ही हिन्दू और मुसलमान के बीच जो दीवार उठाई गई है उसके दोनों तरफ डेमोक्रेसी की नींव दरक रही है. सेक्युक्लारिज्म का प्लास्टर उखड़ रहा है. इंसानियत लगातार ज़ख़्मी हो रही है. हर तरफ कराह के स्वर सुनाई दे रहे हैं.
साल 2020 हाथी की मदमस्त चाल सा आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है. हिन्दुस्तान ही क्या वह तो पूरी दुनिया का एग्जाम लेने पर तुला है. हर तरफ हाहाकार सुनाई दे रहा है. विश्व की महाशक्ति माना जाने वाला अमरीका भी कमज़ोर बकरी सा मिमयाने लगा है. सिर्फ एक महीने में कोरोना नाम की महामारी ने 53 हज़ार लोगों को मार डाला है. अमरीका ने अपने इतने नागरिक तो वियतनाम से 20 साल चली जंग में भी नहीं खोये थे लेकिन यही 20 जब 2020 में बदला तो हर घर से लाशें निकलती दिखाई देने लगीं. एक-एक दिन में दो-दो हज़ार लोगों की जानें जाने लगीं.
2020 में कोरोना के कहर ने भारत में भी मौत के डर को हर घर तक पहुंचा दिया. दहला हुआ हर शख्स अपने घर में घुसा हुआ है. हालात ऐसे हैं कि सरकार को सोशल डिस्टेंसिंग का नारा देना पड़ा है. इस महामारी में दूर रहकर ही बचा जा सकता है. लोग अपने घरों में बंद हैं. कोरोना से मरने वालों को घर वाले भी छूने को तैयार नहीं हैं.
यह पहली बार हुआ कि लाशों को गाड़ी से सीधे कब्र में गिरा दिया गया. कब्र में पटरे नहीं लगाए गए, सीधे उसे मिट्टी से पाट दिया गया. यह पहली बार हुआ कि कब्रिस्तानों में लोगों को दफ्न करने से रोका गया. यह पहली बार हुआ कि मरने वाले की लाश के अंतिम संस्कार के लिए गैर लोग आगे बढ़े लेकिन घर वाले दरवाज़ा खोलकर बाहर भी नहीं निकले.
साल 2020 ने एक ही हफ्ते में तीन शानदार सितारे छीन लिए. रंगमंच की सशक्त हस्ताक्षर उषा गांगुली, इरफ़ान खान और फिर ऋषि कपूर को यह साल अपने साथ लेकर चला गया.
नया साल आता है तो लोग उसका स्वागत करते हैं. खुशियां मनाते हैं लेकिन इस बार कोई खुशी नहीं आयी. दामन को सिर्फ आंसू ही नसीब हुए. फोटो जर्नलिस्ट काविश ने अपनी फेसबुक वाल पर कुछ दिन पहले लिखा था कि ए अल्लाह तुझसे शायद कोई गलती हो गई है. तू 2020 को डिलीट कर दे और इसे फिर से डाउनलोड कर. पीटीआई के ब्यूरो चीफ और 27 साल पुराने दोस्त ज़फर इरशाद ने लिखा कि कलेंडर से हटा देना चाहिए 2020, मनहूस है यह साल.
अब क्या कहें इस पर जिसने दर्द दिया है दवा भी वही देगा. दुनिया बनाने वाला चाहता है कि हम भी 20-20 खेलें मगर आरामतलब ज़िन्दगी टेस्ट खेलने में ही यकीन करती है. तेज़ खेलने की फितरत इतनी जल्दी कहाँ से आयेगी.