रजनीश पाण्डेय
इस समय सबसे ज्यादा चर्चा कोरोना की है उसके बाद लॉक डाउन की । लॉक डाउन का जिंदगी पर क्या असर है भला आप से बेहतर कौन समझ सकता है । आप शहर में तो ज्यादा परेशान है लेकिन गाँव मे उसका असर तो है लेकिन उतना असर नही है जितना शहर में रहने वाले शहरियों पर है ।
गांव में जहां पांच लोग बैठ जाए वहां ही चौपाल लग जाता है…और शुरू हो जाती है अंतराष्ट्रीय राजनीति से देश की राजनीति और हालातों पर चर्चा ।
मेरा दावा है कि गांव में जितनी चर्चा किमजोंग की होती है उतनी चर्चा मेट्रो शहरों के काफी के चर्चा के दौरान भी नही होती होगी । गांव के किमजोंग के स्वस्थ्य के लेकर इतनी लोगो चर्चा होती है जैसे किम उनके रिश्तेदार हो ।
उसकी बहन के बारे में भी गांव के लोगो को पता है कि किमजोंग से भी उसकी बहन ज्यादा सनकी है, कोई लड़का शादी के लिये तैयार नही है, क्यो की किमजोंग ने अपने फूफा को ही गोली मरवा दिया था।
इसके बाद लोग वैश्विक राजनीत पर भी चर्चा करते है कि चीन मजबूत है कि अमेरिका । यही नही गांव के लोगो को यह भी पता है की अगर तीसरा विश्व युद्ध होता है तो कौन से देश किस पाले में खड़ा होगा । यह गांव की लकडाउन के दौरान की चर्चा है ।
गेंहू की मड़ाई लगभग खत्म हो गई है….गांव में यह चिंता जरूर है किसके घर राशन की दिक्कत है, गांव के बाबू साहब को चिंता बुद्धन राजभर की है । पंडी जी भी झुरी चमार से हाल चाल परेशानी पूछ लेते हैं।
यह भी देखें : प्रदीप सुविज्ञ का कार्टून : कहाँ बांधना है मास्क ?
कटुता तो हरेक जगह है और गांव भी इससे अछूता नही है उसका असर भी बैठक बाजी में दिख जाता है । प्रधानी का चुनाव आने वाला है इससे यह जरूर फायदा है समाजसेवियों की बाढ़ सी आ गयी है । वो लाकडाउन में घर घर जाकर लोगो से जरूरते पूछ रहे है और जरूरत मन्द लोग लगे हाथ गंगा में हाथ भी साफ कर रहे है ।
गांव में हसी मजाक का दौर लगातार चल रहा है। फणीश्वर नाथ रेणु के पंचलाइट की कहानी भी आप को याद होगी, जिसमे मुनरी और गोबर्धन की प्रेमकहानी की चर्चा गांव में होती है। उसी तरह आज भी गांव के 80 साल के बुजुर्गों से लेकर 15 साल के लड़कों तक को पता है, किसका कहाँ मामला है।
यह भी देखें : प्रदीप सुविज्ञ का कार्टून : ऊपरवाले रहम कर
कुल मिलाकर गांव की जिंदगी लाकडाउन में शहर की जिंदगी से बेहतर है। शाम को लिट्टी दाल चोखा की पार्टी तय है….जो शहर में संभव नही है…..
मेरे गाँव के जैसी ख़ुशी कहाँ मिलती है
रोज़ खाने को हवा यहाँ ताजी मिलती है
जहाँ देखू वहां हरयाली ही बस दिखती है
लहलहाते खेतों मैं गेहूं की बाली दिखती है,
पूरे दिन मेहनत कर के घर वापस आते है
रुखी सूखी मिल जाये तो भी ख़ुशी से खाते है
कड़ कड़ाती सर्दी में ख़ुशी से खेतोंमे जाते है
खेतो में रात भर फसलों में पानी लगाते है.
(लेखक पत्रकार हैं और लाकडाउन में फिलहाल अपने गाँव में फंसे हैं)