उत्कर्ष सिन्हा
लेख पढ़ने से पहले कुछ सूचनाएं पढ़ लीजिए ।
• कोरोना संक्रमण के मरीजों का इलाज करने वाले 7 डाक्टर अभी तक संक्रमित हो चुके हैं। मुरादाबाद, इंदौर, कलबुरगी जिलों के अस्पतालों में तैनात थे ये डाक्टर।
• दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, अमरावती जैसे शहरों में करीब 100 नर्से कोरोना से संक्रमित हो चुकी हैं ।
• यूपी, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में 150 से ज्यादा पुलिसकर्मी कोरोना के शिकार हो चुके हैं।
ये तो महज कुछ खबरे हैं , मगर आँकड़े हर रोज बढ़ रहे हैं। हमे नहीं भूलना चाहिए कि ये वो लोग हैं जिन्हे हम कोरोना वारियर कहते हैं और जिनकी मेहनत को सलाम करने के लिए कुछ दिन पहले ही हमने अपने प्रधानमंत्री के आग्रह पर दिए जलाए और तालियाँ, थालियाँ बजाईं थी।
हमारे ये वारियर्स खतरे में हैं इसमे कोई दो राय नहीं , मगर इन वारियर्स को बचाने के लिए हमने या हमारी सरकार ने क्या किया ? ये सवाल बहुत बड़ा भी है और फिलवक्त मौजूं भी । आप कह सकते हैं कि संकट काल में हमे सवाल उठाने से बचना चाहिए , मगर बात जब अपने रक्षक या फिलहाल भगवान माने जा रहे लोगों कि हो तो चुप भी रहना गुनाह है । और पुरानी कहावत भी है – शूतूरमुर्ग के रेत में मुंह छुपाने से तूफान खत्म नहीं होता ।
गुनहगार नंबर 1 : लचर शासन व्यवस्था
लाकडाउन के एक महीने बाद भी डाक्टर्स के लिए न तो पीपीई किट का इंतजाम पूरा है और नहीं ही पैरा मेडिकल स्टाफ के लिए । संकट काल में भी काला पैसा कमाने वाले अफसरों की भूख कम नहीं हुई और कमीशनखोरी ने घटिया पीपीई किट की सप्लाई में खूब योगदान दिया। उस पर तुर्रा यह कि घटिया किट की मंजूरी देने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की बजाए यूपी सरकार उस पत्र के लीक करने वाले की तलाश में जुटी है।
खेल खराब करने वाले से निपटना आला अफसरों के लिए शायद ज्यादा जरूरी काम है ।
लाकडाउन शुरू होने के वक्त से ही लखनऊ से लगायत दिल्ली और मुंबई तक की नर्से अपने लिए सुरक्षा इंतजाम की मांग कर रही थी मगर उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। कई अस्पतालों के डाक्टर्स के लिए तो लग्जरी होटलों के कमरे बुक कर दिए गए मगर नर्स और अन्य पैरा मेडिकल स्टाफ के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई।
यूपी के सुल्तानपुर जिले में पाए गए मरीजों के लिए जब आनन फानन में एक अस्पताल बनाया गया तो वहाँ ड्यूटी पर भेजे गए डाक्टर्स को रात भर खुले मैदान में बिना किसी इंतजाम के रहना पड़ा ।
अब इनके संक्रमित होने की जिम्मेदारी कौन लेगा ?
बड़ी तादाद में मौजूद प्राईवेट अस्पतालों को ले कर भी शासन भ्रमित है । एक के बाद एक ऐसे तुगलगी फरमान जारी किये गए जिसके खौफ से प्राईवेट अस्पताल सामान्य मरीजों का इलाज करने में भी हिचक रहे हैं।
गुनहगार नंबर 2 : नीति नियंता तंत्र
राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी पूरी ताकत के साथ जुटे हुए हैं , मगर वास्तव में वे संसाधन की कमी से भी जूझ रहे हैं और उनके सलाहकारों के पास दूरदर्शी दृष्टि का अभाव है। सलाहकारों की ये मंडलीयाँ मुख्यमंत्रियों को उनकी छवि निर्माण के जाल में फंसा चुकी है और मनमाने फैसले ले रही है।
केंद्र सरकार ने राज्यों को मदद देने की घोषणा जरूर की मगर वक्त बीत जाने के बाद भी राज्यों को पैसे ट्रांसफर नहीं हो सके हैं।
यूपी जैसे राज्य में जरूरी मास्क और पीपीई किट की सप्लाई का तंत्र ही नहीं बन सका है जबकि यह काम स्थानीय स्तर पर बड़े ही आराम से हो सकता है। जिलाधिकारियों को नए मद में खर्च करने के लिए कोई शासनादेश नहीं जारी किया गया इसलिए पहले से ही ठप बिजनेस की मार सह रहे आपूर्तिकर्ताओं के मन में भी हिचक बनी हुई है।
ऐसे ही एक आपूर्तिकर्ता मनीष कुमार बताते हैं कि कई जिलाधिकारियों ने उन्हे किट बनाने को कहा, मगर वे इस बात का आश्वासन नहीं दे सके कि इसका भुगतान किस मद से होगा। कुछ जिलों के अफसरों ने अपनी पहल पर स्वयं सहायता समूहों के जरिए कुछ निर्माण कराया। जेल के अधिकारियों ने भी काफी मात्रा में आपूर्ति की, मगर इस बारे में अब तक कोई स्पष्ट निर्देश जिलों को नहीं गया है ।
नतीजतन किट और मास्क की किल्लत अभी तक बनी हुयी है. केंद्रीय खरीद का आलम ये हैं की आये दिन घटिया सामानों और बेईमानी की शिकायते सामने आ रही हैं.
सारा नियंत्रण अपने हांथों में ले चुके अफसरों की एक कोटरी ने जनप्रतिनिधियों को बहुत ही करीने से इस पूरे संघर्ष से बाहर कर दिया है। विधायकों और सांसदों की पूरी निधि अब सरकार के कब्जे में जा चुकी है और वे अब स्थानीय स्तर पर मास्क, किट और सैनिटाईजर जैसी जरूरी चीजों को खरीदने में इसका उपयोग नहीं कर सकते।
गुनहगार नंबर 3 : बदतमीज और जिद्दी लोग
बीते करीब डेढ़ महीनों में हमने देखा है कि जगह जगह डाक्टर्स और मेडिकल टीमों पर हमले हुए । इन हमलों के पीछे क्या था ये पता लगाना सरकार और समाजशास्त्रियों का काम है , मगर निश्चित तौर से ये एक बड़ा अपराध है । शुरुआती दौर में इन सबका ठीकरा तबलिगी जमात के लोगों पर फूटा और नतीजा ये हैं कि इन जाहिलों ने अपने पूरे समाज को गुनहगार की कतार में खड़ा कर दिया।
पुलिस लगातार मेहनत कर रही है, लेकिन लोग नहीं मान रहे । जाहिलों की तदात हर धर्म और शहर में है। रईसजादे सड़कों पर फर्राटा भरने से बाज नहीं आ रहे और मौका मिलने पर जन्मदिन के जश्न भी मनाए जा रहे हैं।
अपने छोटे छोटे बच्चों को घरों में छोड़ कर महिला पुलिसकर्मी और नर्से अपने काम में जुटी हुई हैं लेकिन रसूखदारों की मौज नहीं रुक रही।
एक ऐसी बीमारी जिसके खत्म होने या नियंत्रित होने के समय का हमे कोई अंदाजा नहीं है , उसकी लड़ाई में अगली पंक्ति के सिपाहियों को हमने दरअसल उनकी किस्मत के भरोसे छोड़ रखा है।