Monday - 28 October 2024 - 12:25 PM

कोरोना : अब जानवर ही बनेंगे दूसरे जानवरों का चारा

न्यूज डेस्क

इस दुनिया को कोरोना कब अलविदा कहेगा किसी को नहीं मालूम है। कोरोना से पूरी दुनिया बुरी प्रभावित है। तमाम देशों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। इंसान तो इंसान जू के जानवरों के सामने भी भोजन का संकट उत्पन्न हो गया है। लॉकडाउन की वजह से जू भी बंद है जिसकी वजह से उनकी कमाई बंद हो गई है। हालात ऐसे हो गए हैं कि जानवरों के चारे की व्यवस्था नहीं हो पा रही है और ऐसे हालात में जू के जानवर को ही मारकर दूसरे जानवरों को खिलाने के बारे में सोचा जा रहा है।

जर्मनी में नॉयमुंस्टर शहर के जू में ऐसा ही कुछ करने की तैयारी हो रही है। जू ने कहा है कि उसे इतना नुकसान हो गया है कि वह और चारा खरीदने की हालत में नहीं है। नतीजतन जू के ही कुछ जानवरों को मार कर दूसरे जानवरों को खिलाया जाएगा।

यह भी पढ़ें : भारत में कोरोना की पर्याप्त जांच हो रही है?

दरअसल जर्मनी में ईस्टर वीकेंड चार दिन का होता है। गुड फ्राइडे वाले शुक्रवार से लेकर सोमवार तक। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग परिवार समेत जू जाना पसंद करते हैं। आम तौर पर इन चार दिनों में जू की इतनी कमाई हो जाती है कि सर्दियों में जानवरों को खिलाए चारे का सारा पैसा वसूल हो जाता है, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो सका। लॉकडाउन के चलते जू बंद रहे।

डी डब्ल्यू हिंदी के मुताबिक इस जू की निदेशक वेरेना कास्पारी ने बताया, “हां, हमने एक लिस्ट बनाई है कि किन जानवरों को पहले मारना है।” इन जानवरों को वन बिलाव, चील और जर्मनी के सबसे बड़े धुर्वीय भालू को खिलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि सूची में ज्यादातर बकरियां और हिरण हैं।

कास्पारी ने साफ किया कि इसमें ऐसे किसी जानवर को शामिल नहीं किया गया है जो विलुप्ति के कगार पर हो। यह वर्स्ट-केस-सिनारियो है। हम उम्मीद करते हैं कि इसकी जरूरत ना पड़े, लेकिन हमें इसके बारे में पहले से ही सोचना तो होगा ही। इस पर अमल तब किया जाएगा जब धन की कमी के चलते जू के जानवरों के लिए मांस-मछली की डिलीवरी मुमकिन नहीं रह जाएगी।

यह भी पढ़ें : सरकार की इजाजत के बगैर फीस नहीं बढ़ा पाएंगे निजी स्कूल

जर्मनी में 15 मार्च से सारे जू बंद हैं। हालांकि नॉयमुंस्टर का जू बाकियों की तुलना में छोटा है। यहां करीब 700 जानवर रहते हैं। निदेशक वेरेना कास्पारी के मुताबिक अगर 3 मई के बाद जू को खोलने की अनुमति मिलती है तो तब तक उसे 1,75,000 यूरो का नुकसान हो चुका होगा।

वह कहती हैं बर्लिन के जू में करीब 20,000 जानवर रहते हैं और यहां सालाना 50 लाख टिकट बिकते हैं। आम जनता के लिए जू बंद होने पर भी जानवरों के रखरखाव और कर्मचारियों के वेतन का खर्च जारी है। कास्पारी कहती हैं, “हमारी आय शून्य है और खर्चा वही सारा है।”

उन्होंने बताया कि जर्मनी में कुछ जू ऐसे हैं जिन्हें सरकार से आर्थिक मदद मिलती है। सरकार उनका 10 फीसदी खर्च उठाती है, लेकिन कास्पारी का जू केवल चंदे पर चलता है। सरकार से उन्हें कोई मदद नहीं मिलती है और टिकटों की बिक्री कमाई का मुख्य जरिया है।

जर्मनी ही नहीं दुनिया के जिन देशों में लॉकडाउन है वहां जू बंद हैंं। और अधिकांश जगहों पर आर्थिक तंगी शुरु हो गई है। जर्मनी के ही डुइसबुर्ग जू ने जानवरों को खिलाने के लिए दूसरे जानवरों को मारने की अभी कोई योजना नहीं बनाया है लेकिन इस जू ने कर्मचारियों की लिस्ट जरूर तैयार कर ली है। जू के रखरखाव के लिए जो लोग बेहद जरूरी हैं, उनके अलावा बाकियों की निकट भविष्य में छुट्टी की जा सकती है।

जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पीटा) के अनुसार दुनिया भर में जू जानवरों को मारते हैं और इसमें कोई नई बात नहीं है। पीटा के मुताबिक कुछ जू इसके बारे में जानकारी देते हैं तो कुछ इसे छिपाते हैं।

यह भी पढ़ें : क्या वाकई डिस्पोजेबल ग्लव्स कोरोना वायरस से बचा सकते हैं?

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com