Tuesday - 29 October 2024 - 12:52 PM

नहीं बढ़ेगा हवा में प्रदूषण, उठाने होंगे ये कठोर कदम

ओम दत्त

भारत में कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए 25 मार्च को लागू किया गया था। यह लाक डाउन कितना कारगर साबित हुआ यह तो बाद में पता चलेगा लेकिन इसने भारत को एक दूसरी बड़ी समस्या,यानी प्रदूषण से अस्थाई तौर पर राहत जरूर दे दी है।

लाक डाउन के इन बीस दिनों में भारतीय पर्यावरण के  आंकड़ों से साफ जाहिर है कि वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से कम हुआ है। इसका एक बहुत बड़ा कारण, ‘मानव गतिविधि का रूक जाना है’। यद्यपि अर्थव्यवस्था में इस हद तक मन्दी पैदा करके वायु प्रदूषण को कम करने का ये आदर्श तरीका नहीं है, लेकिन कम से कम इससे यह साबित होता है कि अगर यही कायम रहता है तो इसे किया जा सकता है।

फिर भी”स्वच्छ हवा” एक बड़ी कीमत चुकाने पर आई है और इसके अल्पकालिक होने की इसकी संभावना भी है। 1947 की आजादी के बाद से एक बड़े पैमाने पर सैकड़ों शहरों को पलायन के लिए मजबूर करने के बाद, भारत अपने कारखानों और व्यवसायों को फिर से वापस पाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए तैयार हो रहा है।

लॉकडाउन के दौरान प्रदूषण का स्तर संतोषजनक स्तर पर पहुंचने का विश्लेषण हमने अपने लेख में विस्तार से किया है।

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वायरस के साथ-साथ नई गंभीर बीमारियां भी प्रदूषण से पैदा होती हैं जो जानलेवा बन जाती हैं।एक वैश्विक शोध में प्रकाश में आया कि भारत में वायु प्रदूषण के कारण, 2017 में लगभग बारह लाख लोगों की मौत हुई थी।

वैज्ञानिक शोधों से यह जानकारी निकल कर आई है कि, हवा का प्रदूषण किस तरह से कोरोना वायरस के संक्रमण को जानलेवा बनाकर मृत्यु दर का प्रतिशत बढ़ा देता है।

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पर्यावरणविदों के अनुसार लाक डाउन खत्म होने के बाद कम हुआ प्रदूषण,बढ़ सकता है। लेकिन लाक डाउन के इस दौर से सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी सबक लेना चाहिये। विशेषज्ञों की राय है कि कोरोना वायरस के कारण लाक डाउन से हवा में कम होता प्रदूषण का स्तर तभी स्थाई होगा जब वह अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कार्बन सघन क्षेत्रों पर निर्भर रहने के बजाय नए जलवायु के अनुसार उद्योगों में निवेश करने के बारे में मजबूत नीति लायेंगे।

लॉकडाउन  खुलने के बाद प्रदूषण न बढे़ अपनाने होंगे ये उपाय

लाक डाउन खत्म होने के बाद प्रदूषण में बढ़ोतरी रोकना एक बड़ी चुनौती होगी, लेकिन सरकार अभी से मजबूत इरादों के साथ इन विकल्पों पर ध्यान दे तो निश्चित रूप से राह आसान होगी

अल्प अवधि में यह सोचना खतरनाक होगा कि, आर्थिक गतिविधियों में मंदी, प्रकृति के लिए एक लाभ है। “फोना और फ्लोरा इंटरनेशनल” के “मैट वालपोल”ने कहा कि यह महत्वपूर्ण जोखिम है,  लेकिन इस दौर से आम लोग और सरकार यह सबक ले सकती है कि, कुछ कदमों को उठाने से ही वायु प्रदूषण के स्तर को बढ़ने से रोकने में बड़ा योगदान होगा-

  • 1.सरकार गाड़ियों से निकलने वाले धुएं में कमी लाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को मजबूत बना सकती है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ाने के लिए सरकार को लोगों के घरों तक पहुंचाने वाली सेवाओं को विकसित करना होगा। ताकि ऐसे लोगों को बसों तक आने-जाने में दिक्कत का सामना न करना पड़े ।लेकिन सवाल उठता है कि क्या लोग आसानी से पब्लिक ट्रांसपोर्ट को स्वीकार करेंगे।

  • शहरी यातायात सलाहकार “डेनियल गुट” ने कहा कि हवा निश्चित रूप से बेहतर है। मैं साइकिल चलाने वाले और घरों में क्वॉरेंटाइन नागरिक के रूप में वायु गुणवत्ता में सुधार महसूस कर रहा था।

वहां से इस संकट के खत्म होने पर हमें किन परिवहन विधियों को प्राथमिकता देनी चाहिए इस पर विचार करने के लिए हमें इसका उपयोग करना चाहिए।

  • 2.कुछ लोगों का मानना है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के लिए “वर्क फ्रॉम होम” करना संभव नहीं है। फिर भी हफ्ते में दो या तीन दिन “वर्क फ्रॉम होम”कर दिया जाय। सर्विस सेक्टर के लिए यह पूरी तरह संभव है क्योंकि लाकडाउन में भी सर्विस सेक्टर काम कर ही रहा है। चूंकि वायु प्रदूषण ही बहुत खतरनाक है जिसे कम किए जाने की जरूरत है, लेकिन यह सवाल भी बना हुआ है कि क्या कंपनियां और आम लोग इन उपायों के लिए तैयार हैं।

  • आईटी सेक्टर में काम करने वाले रिचेश दत्त बताते हैं कि “वर्क फ्रॉम होम”ठीक तो है। लेकिन कुछ चीजें आमने-सामने बैठने से तेजी से होती हैं।
  • क्लाइमेट चेंज पर काम करने वाले “डॉक्टर कपिल सुब्रमण्यम” मानते हैं, कि सरकारों को आम लोगों और कंपनियों को समझाते हुए कड़े कदम उठाने होंगे।
    वे यह भी कहते हैं कि सिर्फ समझाने से कंपनियां और आम लोग हफ्ते में कुछ दिन वर्क फ्रॉम होम को अपना लेंगे तो यह ठीक नहीं होगा। सरकारों को इसके लिए सख्त कदम उठाने होंगे।

  • 3.सरकार को चाहिए कि वह हमेशा की तरह व्यवसाय में वापस जाने के बजाय एक हरियाली दिशा में स्थानांतरित करने के लिए रिकवरी पैकेज का उपयोग करने पर विचार करे।

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की राय के अनुसार , कंपनियों को राहत पैकेज देते समय सरकार द्वारा यह निर्देश भी होना चाहिए कि इसका इस्तेमाल अन्य जगहों के अपेक्षा क्लीन एनर्जी समाधान कार्यों में करें जिससे प्रदूषण के खतरे को कम किया जा सके।

  • 4. सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव शारीरिक धारणाओं,पर होने की संभावना है। महामारी ने, विशेषज्ञ चेतावनी को नजरअंदाज करने, राजनीतिक विलंब की अनदेखी और अर्थव्यवस्था के लिए मानव स्वास्थ्य और प्राकृतिक दृश्य का त्याग करने के घातक परिणामों का प्रदर्शन किया है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार नए संक्रामक रोगों में से 75 % जानवरों से आते हैं। अतीत की तुलना में ये वन्यजीव तस्करी और वनों की कटाई के माध्यम से मनुष्यों में अधिक तेजी से आते हैं। इस लिये इस पर प्रतिबंध लगाने पर भी जोर देना होगा।

अंततः,सरकारों ने जिस तरह कोरोना वायरस के समय पर लोगों को यह समझाया कि लाक डाउन लागू किया जाना एक मात्र विकल्प है। ठीक, उसी तरह वायु प्रदूषण को कम करने के लिये रचनात्मक कदम उठाने की जरूरत होगी।

(लेखक जुबिली पोस्ट मीडिया वेंचर में एसोसिएट एडिटर के पद पर कार्यरत हैं) 

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