न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली। देश में लगे 21 दिनों के लॉकडाउन ने गरीब और मजदूर वर्ग को तोड़ दिया है। रोजाना दिहाड़ी कर अपना गुजर- बसर करने वाले मजदूरों को सड़कों पर ला दिया है, मजदूरों का जीवन सूखी रेत पर तपती धूप जैसा हो गया है।
हालांकि लॉकडाउन कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगाया गया है लेकिन अब यही लॉकडाउन मजदूरों के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है।
सवाल ये खड़ा हो रहा है देश के करोड़ों मजदूरों तक मुआवजा पहुंचाने का दावा सरकार द्वारा लगातार किया जा रहा, लेकिन एक सर्वे के जरिये ये पता चला है कि हज़ारो मजदूरों के पहचान पत्र, बैंक खाते और रहने का आशियाना का ही किसी को पता नहीं है?
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जिसको जहां काम मिला वो वहां झोपड़ी डालकर रहने लगा। काम खत्म होने के बाद नये काम और नये आशियाने की खोज… तो ऐसे में बड़ा सवाल ये खड़ा हो रहा है कि जो सरकार मजदूरों की मदद करने का दम भर रही है वो इन चुनौतियों से कैसे निपटेंगे।
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एक गैर सरकारी संगठन जन-साहस द्वारा एक सर्वे कराया गया है, जिसके परिणाम काफी चिंताजनक हैं। इस सर्वे के अनुसार देश में गुजरे 3 हफ्तों यानी 21 दिनों में करीब 90% मजदूर अपनी रोजी-रोटी का जरिया खो चुके हैं।
इससे भी ज्यादा दुखद यह है कि सरकार ने जिन लोगों को मुआवजा देने की बात कही है। उनका कहीं कोई लेखा-जोखा न होने के कारण उन्हें मुआवजा नहीं मिल पाएगा। जिससे अधिकतर मजदूर मुआवजे का लाभ नहीं ले पाएंगे।
सर्वे के मुताबिक 94% मजदूरों के पास कोई पहचान पत्र नहीं होता। ज्यादातर मजदूर प्रवासी होते हैं और कुछ समय के लिए कहीं रुकते हैं और काम करते हैं। दिहाड़ी मजदूर मकान, दुकान, बिल्डिंग आदि बनाने में लगे होते हैं।
इस सर्वे में यह भी बताया गया है पहचान न होने की वजह से लगभग 5 करोड़ मजदूर ऐसे हो सकते हैं जो नहीं ले पाएंगे। देश में 5.5 करोड़ मजदूर ऐसे हैं जो बिल्डिंग, मकान आदि निर्माण से सम्बंधित कामों में लगे हैं। ऐसे में एक पहचान पत्र न होने की वजह से इन करोड़ों मजूदरों को सरकारी सहायता का लाभ नहीं मिल पाएगा।
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सर्वे में यह भी सामने आया है कि सर्वे में शामिल कुल मजदूरों में से 17% मजदूरों का कोई बैंक अकाउंट ही नहीं है। यह भी एक बड़ा कारण है जिसके कारण ये मजदूर सरकारी लाभ का फायदा नहीं उठा सकते है।
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ऐसे हालातों में यदि सरकार इन प्रवासी मजदूरों के आधार पहचान, ग्राम पंचायत और डाक घरों में बने उनके खातों में सरकारी लाभ को पहुंचा कर उनकी मदद कर सकते हैं।
सर्वे में यह भी बताया गया है कि सरकारी लाभ और किसी भी मुआवजे की जानकारी मजदूरों को नहीं होती है। कुछ मजदूरों को यह भी नहीं पता होता कि सरकार उनके लिए कुछ कर भी रही है या नहीं। तो कुछ को जानकारी ही नहीं है कि उन्हें मुआवजा भी मिल सकता है।
इस बीच जैसे-जैसे लॉकडाउन के दिन बढ़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे मजदूरों के लिए समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। यह सर्वे बताता है कि कुछ मजदूरों के पास उनका राशन कार्ड नहीं है, न ही उनके पास अब राशन बचा है और न ही पैसे। ऐसे हालातों में ऐसे ही करोड़ों मजदूर लॉकडाउन के बीच एक वक़्त के खाने को भी तरस रहे हैं।
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