- काम से जी चुराने वाले भी दफ्तर जाने को व्याकुल
- लॉक डाउन ने इंसान और जानवरों की बदल दी दिनचर्या
- चुनौती के बीच कुछ सकारात्मक बदलाव भी दिख रहे
राजीव ओझा
लॉकडाउन 21 दिन के बाद भी बढ़ने वाला है। लोग यह सोच सोच कर बेचैन और अधीर हुए जा रहे, पगला रहे हैं। कोरोना संक्रमण के गंभीर खतरे से बचने के लिए लोग घरों में हैं, दिनचर्या पूरी तरह बदल गई है। सैटरडे, संडे, मंडे सब दिन एक समान लग रहे।
सुबह उठाना, मोबाइल पर कोरोना न्यूज़ अपडेट पढना-देखना, नाश्ता करना, टीवी देखना, लंच, दोपहर में सोना, शाम की चाय पीना, पहले मोबाइल फिर टीवी पर कोरोना अपडेट देखना, डिनर के बाद एकबार फिर चैनल बदलना, कोरोना अपडेट लेना, फिर घडी देखना, सोने का यतन करना। लेकिन दोपहर में सोने और दिनभर आराम के बाद नीद आसानी से नहीं आ रही है।
कुछ लोग देर रात तक मोबाइल पर वेब सिरीज, टिकटोक, जोक और फिल्म देख समय बिता रहे हैं। इस दिनचर्या से भी लोग अब ऊबने लगे हैं। लेकिन घरों में कैद रहना ही कोरोना से सबसे बेहतर बचाव है।
वर्क फ्रॉम होम से लोगों का मन भर गया है। ऑफिस में अपने सबोर्डीनेट पर चिल्लाने में जो संतुष्टि मिलती थी वह वर्क फ्रॉम होम में कहाँ, यहाँ चाय या स्नैक्स का असाइंमेंट देते ही उल्टा पत्नी की झाड़ पड़ती है।
घर में बैठे-बैठे सब पगला रहे हैं। यहाँ तक कि बात-बात पर बहाने से छुट्टी लेने वाले कामचोर श्रेणी के कर्मचारी भी ड्यूटी पर जाने को आतुर हैं।
मनःस्थिति ऐसी है कि लगा रहा है जैसे कोरोना संकट समाप्त होने और लॉक डाउन खत्म होते ही सब ऑफिस को टूट पड़ेंगे। आठ घंटे काम करने वाले 12-12 घंटे काम करने के बाद भी उफ़ नहीं करेंगे, छुट्टियां लेंगे ही नहीं। काश, ऐसा हो तो कोरोना के कारण चौपट हुई अर्थ व्यवस्था और उद्योग धंधे जल्द ही पटरी पर आजायेंगे।
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इंसान ही नहीं जानवर भी अटपटाए हुए हैं, उनका व्यवहार बदल गया है। खबर है कि चिड़ियाघर में जानवर लम्बे समय से सन्नाटा देखा कर परेशान हैं। जू में पले-बढ़े जानवरों को यह सब असामान्य लग रहा है। बंदरों ने खाना कम कर दिया है, बाघ और शेर गुमसुम हैं। गलियों में घूमने वाले कुत्ते भी परेशान हैं। उन्होंने भौंकना कम कर दिया है। अब कुत्ते वाहनों को नहीं दौड़ाते। उन्हें लग रहा लोग अचानक कहाँ गायब हो गए।
लेकिन कहावत है- एवरी क्लाउड हैज अ सिल्वर लाइनिंग यानी हर मुश्किल या संकट की स्थिति का भी एक सकारात्मक या उम्मीद भरा पहलू होता है। जैसे कोरोना संकट के कारण लोगों की हाईजीन और सफाई की आदत में सुधार हुआ है।
जंक फ़ूड के बजाय लोग सफाई से बना घरेलू खाना खा रहे हैं। शहर और गाँव की हवा साफ़ हुई है, गन्दगी कम हुई है। नदियों का पानी साफ़ हुआ है। बिजली की खपत कम हुई है। लोगों के घर पहले से ज्यादा व्यवस्थित हुए हैं। अपराध और सड़क दुर्घटनाओं में कमी आई है।
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अब सवाल है कि लोगों की मेंटल हेल्थ खराब होने का जो खतरा बढ़ रहा उससे बचने का क्या उपाय है? पति-पत्नी में नोक-झोंक बढ़ना उतनी बड़ी समस्या नहीं है जितना लोगों में अवसाद के मामले, नकारात्मक सोच, चिडचिडापन और बेचैनी बढ़ना। लॉक डाउन में ढेर सारे आयुर्वेदाचार्य और योगगुरु प्रगट हो गये हैं और मेंटल, इमोशनल, स्प्रिचुअल और फिजिकल हेल्थ के लिए दिन-रात टिप्स दे रहे हैं।
विस्तार में न जाते हुए बस घर में रहते हुए इन बिन्दुओं पर ध्यान दें। पहला है अल्पाहार। कम खाएं गम खाएं। एक समय न भी खाएं तो चलेगा। ध्यान रहे हमारा शरीर ईटिंग मशीन नहीं है। अधिक खाने से संक्रमण का खतरा अधिक होता। जुबान पर काबू रखें और जब बहुत भूख लगे तभी खाएं।
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घर पर हैं इसका मतलब दिन भर चटरपटर न खाएं। भोजन तभी करें जब आपकी नाक का दायाँ छिद्र पूरी तरह खुला हो। मतलब इस समय सौर ऊर्जा का प्रवाह शरीर में बेहतर ढंग से होता है और खाना आसानी से पचता है। संतुलित खाना खाएं। इससे शरीर में सही मात्र में इम्यूनोग्लोब्यूलिन पहुंचेगा।
यह ऐसा प्रोटीन होता है जिसमें बीमारियों से निपटने वाला एंटीबाडी होता है। सही मात्रा में प्रोटीन पहुँचने से शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसी तरह प्राणायाम से फेफड़े मजबूत होते हैं और सकारात्मक सोच बढती। वाणी पर नियंत्रण से हम घर में नकारात्मक विचारों से दूर रह सकते हैं।
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और अंत में कुछ मिनटों के लिए ध्यान जरूरी है। ध्यान से मतलब प्रकृति की ध्वनि को महसूस करना। इससे शारीरिक और मानसिक बेचैनी दोनों दूर होगी। सो घर पर रहें सुरक्षित रहें।
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