न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। पूरी दुनिया जिस कोरोना से खौफ के साये में जी रही है, वही पुलिस दिन रात सड़कों पर मदद करती हुई दिखाई दे रही है। यूपी पुलिस लोगों को रोक तो रही है लेकिन भले की बात करने के लिए, उनको ये बताने के लिए कैसे वो अपनी देखभाल कर सुरक्षित रहे।
ऐसे ही देश सेवा में लगे कुछ योद्धाओं से जुबिली पोस्ट ने ये जानने की कोशिश की उनके परिवार वालो की सोच क्या है? और लम्बी ड्यूटी और भय के वक्त क्या खयाल आता है उनके परिजनों के मन में…
लखनऊ ट्रैफिक पुलिस के इंस्पेक्टर संजय सिंह का कहना है कि जब घर से निकलता हूं तो बच्चे बोलते है कि पापा किसी के पास मत जायेगा, दूर से बात कीजियेगा। मैं भी उनकी हां में हां मिलाकर मुस्कान के साथ घर से निकल आता हूं।
दिन भर घर से फ़ोन आता है… कैसे है, कहां है, सेनिटाइजर लगाया की नहीं, हाथ धोया की नहीं जैसे तमाम सवालों के जवाब देने होते है। लेकिन फिर चौराहे पर खड़ा होकर ये देखा करता हूं कि किसी को दिक्कत हो तो पहले उसकी मदद कर सकूं।
ड्यूटी खत्म होने के बाद जब घर पहुंचता हूं तो वायरलेस से लेकर मोबाइल तक सारा सामान सेनिटाइज कर दूर से सही सबसे बात कर पाता हूं, सबसे दूर रहकर खाना खाता कर कुछ देर बात करता हूं। इसके बाद अपने लिए मैंने अलग कमरे की व्यवस्था की हुई है, जहां मैं अकेले ही सोता हूं ताकि मेरा परिवार सुरक्षित रहे। घर तो रोज जाता हूं लेकिन फिर भी अकेलेपन का एहसास रहता है।
देवरिया के रहने वाले सिपाही रमा शंकर मौर्य की माने तो वो परिवार से बहुत दूर है। परिवार से कई महीनों से नहीं मिल सका है। उसने बताया कि यहां दिन भर तो वाहन चेकिंग में कट जाता है, लेकिन शाम होते ही परिवार की याद सताने लगती है।
लेकिन फ़ोन पे बात होने के बाद तसल्ली जरूर हो जाती है कि परिवार में सब लोग सुरक्षित है। रमा शंकर ने बताया कि परिवार वाले काफी खुश है कि हम समाज की सेवा में योगदान दे रहे है। कभी- कभी खुशी में रो भी देते है। उनके ये भाव कभी- कभी मुझे तोड़ देते है। लेकिन क्या करूं इस मुश्किल घड़ी का सामना भी तो करना है।
सीतापुर के होमगार्ड विजय यादव की माने तो उनका कहना है परिवार काफी याद करता है, लेकिन इस महामारी को रोकने के लिए ये योगदान भी कम है। हम तो लोगों को सही राह दिखने का प्रयास करते है, लेकिन जो लोग सोशल डिस्टन्सिंग का पालन करना भूल जाते है, उनके वाहन रोककर उन्हें समझाते है।