डा. चक्रपाणि पांडेय
जिस बात को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही थी, आखिरकार वह सच साबित हो गई। कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे कई डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। देश के कई हिस्सों में 50 से अधिक हेल्थकेयर प्रोफेशनल कोविड-19 की चपेट में आ गए हैं। यह आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं। देश में जब कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा था तभी से कहा जा रहा था कि डॉक्टरों को कोरोना से लड़ने के लिए बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जाय, नहीं तो आने वाले समय में गंभीर स्थिति होगी। कोरोना से हम फिजिकल नहीं लड़ सकते। यह टेक्नोलॉजी फाइट है, इसलिए हेल्थकेयर प्रोफेशनल को बिना सुविधा मुहैया कराएं हम यह जंग नहीं जीत सकते।
देश में कोरोना के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आने वाले दिनों में इसमें तेजी से इजाफा होगा और इसका सबसे ज्यादा बोझ अस्पतालों पर पड़ेगा। इसलिए अस्पतालों में तैनात डॉक्टर, नर्स और स्टाफ के सभी लोगों को प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स प्रोवाइड कराने की जरूरत है। यह सच है कि हेल्थेयर प्रोफेशनल अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहे हैं।
सिर्फ दिल्ली में कोरोना से पीडि़त डॉक्टरों की संख्या 8 हो गई है। बीते गुरुवार को ही दिल्ली में एम्स के एक डॉक्टर कोरोना वायरस के टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए। इसके बाद यह खबर मिली की उनकी पत्नी जो नौ महीने की गर्भवती हैं वह भी कोरोना पॉजिटिव हैं। यह तो अभी शुरुआत है। यदि समय रहते अस्पतालों में कोरोना से लड़ने वाले प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स मुहैया नहीं करा पाते हैं तो स्थिति और गंभीर होगी।
कुछ दिनों पहले नागपुर के एक डॉक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को डब्ल्यूएचओ ग्रेड वाले प्रोटेक्टिव गियर मुहैया कराने को लेकर एक याचिका दाखिल किया था। 31 मार्च को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा था कि महामारी से जूझ रहे डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को डब्ल्यूएचओ ग्रेड वाले प्रोटेक्टिव गियर मुहैया कराने की मांग पर गौर करें।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत को कम से कम 3.8 करोड़ मास्क और 62 लाख पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) की जरूरत है। भारत सरकार ने सैंकड़ों कंपनियों से जल्द से जल्द इनकी सप्लाई के लिए संपर्क किया है। वहीं स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के दिए गए आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में अलग-अलग हॉस्पिटलों के पास 3.34 लाख पीपीई उपलब्ध हैं। करीब 60,000 पीपीई किट्स खरीदी जा चुकी हैं और इनकी सप्लाई की जा चुकी है। भारतीय रेड क्रॉस ने भी 10,000 पीपीई डोनेट किया है।
ऐसा नहीं है कि सरकार कोशिश नहीं कर रही है। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार हर संभव कोशिश कर रही है। दूसरे देशों के साथ-साथ देश में जो योग्य कंपनियां है उनसे सरकार मदद ले रही है। भारत में पीपीई (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) बनाने वाली कंपिनयों में 11 को योग्य माना गया है। इन कंपनियों को 21 लाख पीपीई के ऑर्डर दिए जा चुके हैं।
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डब्ल्यूएचओ ने दुनिया के सभी देशों को बहुत पहले ही कोरोना की भयावहता को देखते हुए आगाह किया था। 27 फरवरी को डब्ल्यूएचओ ने गाइडलाइंस जारी कर कहा था कि दुनिया के सभी देशों को बड़े पैमाने पर पीपीई का स्टॉक कर लेना चाहिए। डब्ल्यूएचओ ने इंडस्ट्री बॉडीज और सरकारों से इन इक्विपमेंट्स का उत्पादन 40 फीसदी बढ़ाने के लिए भी कहा था।
कोरोना वायरस से निडरता से नहीं बल्कि इक्वीपमेंट से ही लड़ा जा सकता है। जानबूझ कर बिना मास्क या पीपीई के मरीजों के संपर्क में आना खुद को जोखिम में डालना है। डॉक्टर यह बखूबी समझ रहे हैं इसलिए वह बुनियादी सुविधाओं के लिए गुहार लगा रहे हैं। यदि कोई डॉक्टर अस्पताल सुविधा के अभाव में इलाज करने में ना-नुकुर कर रहा है तो आप उसे गलत नहीं कह सकते हैं। सारी सुविधा मिलने के बाद यदि वह ऐसा करता है निश्चित ही उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के हिंदूराव अस्पताल के जिन डॉक्टरों और नर्सों ने पीपीई की कमी के चलते इस्तीफे दे दिए थे उन्हें 1 अप्रैल 2020 को जारी किए गए नोटिफिकेशन में उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की चेतावनी दी गई है। इससे पहले 29 मार्च को एक प्रैक्टिसिंग ऑनकोलॉजिस्ट डॉ. इंद्रनील खान को गिरफ्तार कर लिया गया था।
डॉ. खान को गिरफ्तार इसलिए किया गया था क्योंकि डॉ. खान ने एक दिन पहले ही नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज और कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के उनके पूर्व सहयोगी डॉक्टरों और नर्सों के हॉस्पिटल में बिना पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट पहने कोरोना मरीजों का इलाज करते हुए फोटोग्राफ्स पोस्ट की थीं। हालांकि बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया था।
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डॉक्टर इस बात को बखूबी समझ रहे हैं कि यदि उन्हें समय रहते कोरोना से लडऩे के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट नहीं मिला तो डॉक्टरों में बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलने का खतरा है। कैसे संक्रमण फैलेगा इसको ऐसे समझ सकते हैं। एक तो डॉक्टर कोरोना मरीज के सम्पर्कमें रह रहे हैं और दूसरे जूनियर और सीनियर डॉक्टर एक जगह पर खाते हैं और हॉस्टल साझा करते हैं। एक-एक हास्टल में करीब दो सौ से तीन सौ डॉक्टर एकसाथ रहते हैं। अगर कोई डॉक्टर कोरोना मरीज का इलाज के बाद संक्रमित होता है तो वह जहां जायेगा अपने साथ संक्रमण लेकर जायेगा। इसलिए जरूरी किसी को भी जोश में हीरो बनने की कोशिश से कोई फायदा नहीं होगा।
(डा. चक्रपाणि पांडेय वरिष्ठ फीजिशियन हैं। वह कई हेल्थ जर्नल में नियमित लिखते हैं।)
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