प्रियंका परमार
सिंगापुर, जो जीरों क्राइम, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और अपनी ग्रीनरी के लिए पूरी दुनिया मे जाना जाता है, पिछले तीन माह से कारोना वायरस से जंग लड़ रहा है। वर्तमान में यहां के आंकड़े डराने वाले हो गए है , बावजूद यहां के माहौल में दहशत नहीं है। लोगों में कोरोना को लेकर डर नहीं है। दसअसल इन्हें अपने सरकार पर पूरा भरोसा है। इन्हें पूरी उम्मीद है कि कोरोना को ये लोग हरा देंगे। इसलिए जहां दुनिया के अधिकांश देशों मे ट्रेन, मेटो, बस और फ्लाइट बन्द हैं, वहीं सिंगापुर में सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा है।
फरवरी माह तक चीन के बाद कोरोना वायरस के संक्रमण मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा सिंगापुर में थी। सिंगापुर में कोरोना का पहला मामला 23 जनवरी को सामने आया था, जिसके बाद से सरकार सतर्क हो गई। वैसे सिंगापुर सरकार चीन में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए पहले ही सतर्क हो गई थी, जब डब्ल्यूएचओ को चीन ने बीते साल 31 दिसंबर को ‘सार्स जैसे रहस्यमय निमोनिया’ के मामलों की जानकारी दी थी। उस समय तक यह पुष्ट नहीं हुआ था कि यह वायरस इंसानों से एक-दूसरे में फैल सकता है। वायरस को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं थी, बावजूद तीन दिनों के अंदर ही सिंगापुर ने अपनी सीमाओं पर स्क्रीनिंग शुरु कर दी थी।
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जनवरी अंतिम सप्ताह में जब कोरोना वायरस का मरीज मिला तो सरकार ने कड़े कदम उठाने शुरु कर दिए। सरकार ने कुछ बंद तो नहीं किया लेकिन ऐसी व्यवस्था की जिससे भीड़ न जुटने पाए। सोशल डिस्टेंसिंग पर सरकार ने जोर दिया। यहां जिम, स्विमिंग पूल फूड कोर्ट, मॉल, मेट्रो, बस सभी कुछ आज भी वैसे ही चल रही हैं जैसे कोरोना वासरस के आने से पहले चलता थी। बस ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि एक साथ ज्यादा लोग नहीं आ-जा सकते।
यहां बैंक से लेकर सारे ऑफिस खुले हुए हैं। लोग आफिस आ-जा रहे हैं, लेकिन ऐसी व्यवस्था है कि ऑफिस में ज्यादा भीड़ नहीं होने पा रही है। ऑफिस छूटने के 15 मिनट बाद दूसरी शिफ्ट के लोगों को आना होता है। वहीं आईटी सेक्टर में वर्क फ्रॉम होम या अल्टरनेट डे की व्यवस्था की गई है। एक दिन घर से काम और दूसरे दिन आफिस। ऐसे मैनेज किया जा रहा है।
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फरवरी के दूसरे सप्ताह में जब मरीजों की संख्या में इजाफा होने लगा था तो सरकार ने आरेंज एलर्ट जारी कर दिया गया था। सरकार को मालूम था कि सबसे अधिक खतरा सिंगापुर पर था। फरवरी के मध्य तक चीन के बाहर जिस देश में सबसे अधिक मामले सामने आए थे, उन देशों की सूची में सिंगापुर पहले स्थान पर था। सिंगापुर में तब 80 मामले सामने आ चुके थे। सरकार ने इस खतरे को भांपा और तुरंत ही सख्त कदम उठाए।
कोरोना वायरस के मामले की पुष्टि होने के बाद स्वास्थ्य अधिकारियों ने हर उस व्यक्ति की पहचान की, जो किसी भी तरह से कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया हो। उन्हें क्वारनटीन किया गया। सिंगापुर में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को 14 दिन के लिए क्वारनटीन किया गया और यह सिलसिला आज भी जारी है। यदि आज यहां संक्रमित मरीजों का आंकड़ा हजार तक ही पहुंचा है तो इसके पीछे कड़ी कानून व्यवस्था है। यहां जिसने भी नियम का उल्लंघन किया सरकार ने उसके खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की। कोई लचीलापन नहीं है, शायद इसीलिए यहां कोरोना का संक्रमण उस तरह नहीं फैला पाया जैसे यूरोपीय देशों में फैला।
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वर्तमान में सिंगापुर में संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 900 पहुंच गया है। तीन लोगों की मौत हो चुकी है। यूरोप में मची तबाही और यहां बढ़ रहे आंकड़ों को देखते हुए कुछ अभिभावकों ने स्कूल-कॉलेज बंद करने की सरकार से मांग की है। अभिभावकों का कहना है कि बच्चे स्कूल-कॉलेज मेट्रो से जाते हैं, जो सेफ नहीं है। सरकार ने अभी इस पर कोई फैसला नहीं किया है। सरकार ने एक सख्ती और की है। वह अपने देश में सिर्फ नागरिकता रखने वालों और परमानेंट रेजीडेंस वालों को ही आने दे रही है। लॉंग टर्म पास वालों को एंट्री नहीं मिल रही है। जो यहां है उन्हें तो कोई दिक्कत नहीं है लेकिन जो काम के सिलसिले में दूसरे देश चले गए थे उन्हें सिंगापुर आने से मना कर दिया है। निश्चित ही ऐसा सरकार ने अपने लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए किया है।
सिंगापुर में कोरोना से चल रहे जंग पर कब विराम लगेगा यह नहीं मालूम लेकिन एक बात तो तय है कि यहां कोरोना से लड़ाई सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि यहां के नागरिक भी लड़ रहे हैं, सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन कर के।
(प्रियंका सिंगापुर में रहती हैं। वह आईटी कंपनी में कार्यरत हैं। )