न्यूज डेस्क
कोरोना वायरस का कोहराम पूरी दुनिया में मचा हुआ है। चीन के बाद इटली, अमेरिका जैसे देशों में कोरोना जमकर कहर बरपा रहा है। इसके बाद भारत में भी कोरोना अपने पैर पसार चुका है। इस पर कोरोना की सम्भावना को लेकर अब विशेषज्ञ केंद्र सरकार को आडें हाथों लेने लगे हैं कुछ लोगों का कहना है कि भारत की यह स्थिति ज्यादा स्मार्ट बनने के चक्कर में हुई है।
देश में कोरोना के बढ़ रहे संक्रमण के मामलें पर पूर्व विदेश सचिव शशांक ने कहा कि देश में कई स्तर पर शुरुआत में गड़बड़ियां हो गई। हम चीन के साथ उसके प्रांत वुहान और नेपाल सहित कई देशों को छोड़कर अनजान बने रहे।
देश में ईरान, इटली, ब्रिटेन और यूरोप के लोग आते-जाते रहे। यही नहीं कोरोना के मामले मिलने के बाद भी मार्च के दूसरे सप्ताह तक इंटरनेशनल कामर्शियल फ्लाइट चलती रही। शशांक का मानना है कि देश सही समय पर कोरोना के संक्रमण को लेकर सही आकलन नहीं कर पाया। इसी वजह ये हालात हुए।
पूर्व विदेश सचिव कहते हैं कि चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना संक्रमण से जुड़ी कई जानकारी छिपाई। इसकी चपेट में जब दुनिया आ गई तब इसे उजागर किया गया। और अब भारत भी आ गया। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने काफी पहले कोरोना को विश्व समुदाय के लिए महामारी घोषित कर दिया था। जबकि भारत ने इसे देर से ध्यान दिया।
वहीं, इस मामलें में प्रो. डॉ. राम भी मानते है कि लापरवाही हुई है। उनका कहना है कि अगर कुछ गड़बड़ियां नहीं हुई तो कैसे अब अचानक इतनी संख्या में मरीज क्यों बढ़ रहे हैं। निश्चित रूप से केन्द्र सरकार और हमारी स्वास्थ्य एजेंसियां खतरे का सही आकलन करने में चूक गई।
सजग रहने के समय भारत कर रहा तद दूसरों की मदद
डॉ. अश्विन चौबे बताते हैं कि जब भारत को सजग रहना चाहिए था, तो वह दूसरे देशों की मदद कर रहा था। भारत सरकार ने चीन को कोरोना संक्रमण से उसके प्रभावित होने के बाद बड़े पैमाने पर चिकित्सा सामग्री उपलब्ध कराई है। साथ ही अन्य देशों को भी चिकित्सा मदद दी गई होगी।
हम कैसे घिरे इसके संक्रमण चक्र में?
इस मामले में पूर्व विदेश सचिव शशांक का आकलन कई लोगों को ठीक लग रहा है। उनका कहना है कि कोरोना वायरस का संक्रमण वुहान में फैला। चीन का वुहान प्रांत और चीन दुनिया के कई देशों से सीधा जुड़ा है उसके नागरिक भी विश्व में जगह- जगह रहते हैं चीन से व्यापार हैं और संबंध है।
शशांक मानते है कि शीर्ष स्तर पर कोरोना संक्रमण की गंभीरता का सही मायने में आकलन करना का आवश्यक था। इस मामले में हम दुनिया के तमाम देशों की तरह चूक गए हैं। हमने जर्मनी, फिनलैंड और दक्षिण कोरिया की तरह सावधानी नहीं बरती। सिंगापुर का मॉडल भी नहीं अपनाया। जो जहां है, उसे वहां की सरकार को सुरक्षा देनी चाहिए थी। यह प्रोटोकॉल है।
हमारी सरकार ऐसा कर सकती थी कि जिनके वीजा की अवधि समाप्त हो रही है, उनकी अवधि बढ़ानी चाहिए थी। उन्हें वहां की सरकार से मुफ्त इलाज देने का अनुरोध करना चाहिए था। साथ ही स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च का दूतावास, उच्चायोगों के माध्यम से भुगतान कराने का अनुरोध कर सकती थी। इससे स्थिति ज्यादा सुरक्षित और बेहतर हो सकती थी।